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GMCH - राजस्थान में पहली बार हाइपरथर्मिक इंट्राथोरेसिक कीमोथेरेपी (HITHOC) तकनीक द्वारा रोगी का इलाज 

गीतांजली हॉस्पिटल ने स्थापित किया कीर्तिमान

 

गीतांजली हॉस्पिटल सर्व सुविधाओं से युक्त हॉस्पिटल है। यहाँ आने वाले रोगियों को अत्याधुनिक तकनीकों द्वारा इलाज किया जाता है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री चीरंजीवी योजना के लाभार्थी, उदयपुर के रहने वाले 37 वर्षीय रोगी का प्लूरल मेसोथेलियोमा का काफी चुनौतियों के बाद  गीतांजली कैंसर सेंटर में सफल इलाज करके रोगी को स्वस्थ्य जीवन प्रदान किया गया। इस हाई रिस्क ऑपरेशन को कैंसर सर्जन डॉ. आशीष जाखेटिया, डॉ. अजय यादव, कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ अंकित अग्रवाल, डॉ रेणु मिश्रा एवं एनेस्थिस्ट डॉ . नवीन पाटीदार, ओटी स्टाफ, आई.सी.यू स्टाफ के अथक प्रयासों से सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया। 

विस्तृत जानकारी:

डॉ आशीष ने बताया कि प्लूरल मेसोथेलियोमा (प्लूरल मेसोथेलियोमा एक दुर्लभ कैंसर है जो फेफड़ों की परत में होता है) एक गंभीर प्रकार का कैंसर है। ये फेफेड़े की बाहरी परत जिसे पेराइटल प्लूरा वहां पर इसकी शुरुआत होती है। धीरे-धीरे ये कैंसर पूरे फेफेड़े में फ़ैल जाता है। यह एक दुर्लभ तरह का कैंसर है और इसके इलाज के स्त्रोत भी सिमित हैं। इस कारण इसका सफल इलाज आमतौर पर नहीं हो पाता या सिर्फ बड़े शहरों के हाई सेंटर्स पर ही उपलब्ध है। इस कैंसर के होने के कई कारण हैं जिनमें एस्बेस्टस, माइनिंग, सिलिका प्रमुख हैं। आमतौर पर देखा गया है कि डूंगरपुर, बांसवाड़ा में इस तरह के कैंसर का प्रभाव अधिक है। 

डूंगरपुर के रहने वाले 37 वर्षीय रोगी को जब गीतांजली कैंसर सेंटर लाया गया तब उसे सबसे पहले तीन कीमोथेरेपी के साइकल्स दिए गए। इसके पश्चात् रोगी की सर्जरी की गयी जिसे एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी कहते हैं। एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी एक रोगग्रस्त फेफड़े को हटाने के लिए सर्जरी होती है जिसके अन्दर पेरीकार्डियम का हिस्सा (हृदय को कवर करने वाली झिल्ली), डायाफ्राम का हिस्सा (फेफड़ों और पेट के बीच की मांसपेशी), और पार्शियल प्लूरा (छाती की झिल्ली) का हिस्सा को एक साथ हटाया जाता है। कुछ साल पश्चात् तक इसी तरह के प्लूरल मेसोथेलियोमा कैंसर का इलाज किया जाता था।  

आज के सन्दर्भ में प्लूरल मेसोथेलियोमा कैंसर के लिए एडवांस तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसे एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी रेडिकल सर्जरी कंबाइंड विथ हाइपरथर्मिक इंट्राथोरेसिक कीमोथेरेपी (HITHOC) कहते हैं। इस रोगी का इसी अत्य्धाधुनिक तकनीक द्वारा सफल इलाज किया गया। इसके अंतर्गत सर्जरी के दौरान सारी बीमारी को हटा दिया जाता है परन्तु कुछ माइक्रोस्कोपिक बीमारी रह जाती है जो कि आँखों द्वारा देखना संभव नही है उसके लिए उच्च तापमान की मशीन आती है उसके द्वारा 42 डिग्री तापमान पर कीमोथेरेपी दी जाती है। 

अमूमन इस तरह के ऑपरेशन महंगे होते हैं साथ ही एक ही फेफेड़े को चालू रखकर किया जाता है, इसके अन्दर क्रिटिकल एनेस्थेसिस्ट का प्रमुख रोल होता है क्यूंकि यह सर्जरी एक ही फेफड़े के द्वारा 5-6 घंटे का समय लगता है उसको मैनेज करना पड़ता है। रोगी की छाती में डेड घंटे तक 42 डिग्री तापमान पर कीमोथेरेपी प्रसारित की जाती है ऐसे में  हार्ट अटैक आ सकता है, इसके अलावा रोगी के शरीर पर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। पोस्ट ऑपरेटिव केयर करने के लिए क्रिटिकल टीम का सहारा लिया जाता है। रोगी को लगभग 2-3 दिन तक आई.सी.यू रखना पड़ता है एवं हर आवश्यक सपोर्ट देना होता है। इसके पश्चात् रोगी स्वास्थ लाभ मिलना शुरू होता है।   

एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी रेडिकल सर्जरी कंबाइंड विथ हाइपरथर्मिक इंट्राथोरेसिक कीमोथेरेपी (HITHOC) का ये केस सम्पूर्ण राजस्थान का पहला केस है जो कि मुख्यमंत्री चीरंजीवी योजना के तहत निःशुल्क किया गया है। इस तरह की तकनीक सिर्फ बड़े शहरों के हाई सेंटर पर ही उपलब्ध है। 

गीतांजली हॉस्पिटल के सी.ई.ओ श्री प्रतीम तम्बोली ने कहा कि गीतांजली हॉस्पिटल में अनुभवी टीम, मल्टीडीसीप्लिनरी अप्प्रोच और अत्याधुनिक तकनीकों के साथ यहाँ  वाले रोगियों के जटिल ऑपरेशन किये जा रहे हैं, जिससे रिस्क और भी कम हो जाता है। गीतांजली हॉस्पिटल में इस तरह के हाई-एंड ऑपरेशन स्टेट ऑफ़ आर्ट के दृष्टिकोण को दर्शाता है।  इस ऑपरेशन को सफल बनाने वाली टीम को श्री तम्बोली द्वारा बधाई दी गयी। 

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल पिछले सतत् 15वर्षों से एक ही छत के नीचे सभी विश्व स्तरीय सेवाएं दे रहा है और चिकित्सा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता आया है, गीतांजली हॉस्पिटल में कार्यरत डॉक्टर्स व स्टाफ गीतांजली हॉस्पिटल में आने प्रत्येक रोगी के इलाज हेतु सदैव तत्पर है।