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गीतांजली हॉस्पिटल उदयपुर में मात्र 3 वर्षीय बच्चे का हुआ सफल कॉकलियर इम्प्लांट

कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  सामान्य रूप से बेहोश करके की जाती है।

 

उदयपुर, 7 जून । गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल उदयपुर सभी चिकित्सकीय सुविधाओं से परिपूर्ण है l यहां निरंतर रूप से जटिल से जटिल ऑपरेशन इलाज कर रोगियों को नया जीवन दिया जा रहा है गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के ई.एन.टी. विभाग में जन्म से बहरेपन से पीड़ित 03 साल 6 महिने के बच्चे का सफल कॉकलियर इंप्लांट किया गया है।

विभागाध्यक्ष डॉ. प्रितोष शर्मा ने बताया कि बच्चे को सीआई 632 कॉकलियर इंप्लांट लगा है, जो विश्व के नवीनतम आधुनिक इंप्लांट में से एक है और दक्षिणी राजस्थान का पहला इंप्लांट है। इस सफल ऑपरेशन में ई.एन.टी. विभाग के डॉ. प्रितोष शर्मा, डॉ नितिन शर्मा, डॉ अनामिका, डॉ रिद्धि, डॉ विक्रम राठौड और निश्चेतना विभाग से डॉ अल्का, डॉ क़रुणा एंव टीम का योगदान रहा। बच्चे की सर्जरी के दौरान दिल्ली के प्रख्यात सर्जन डॉ सुमिल म्रिघ को मेंटर के रूप में आमंत्रित किया गया था। ऑपरेशन के बाद बच्चे को रिहैबिलिटेशन ट्रेनिंग दी जाएगी। जिससे बच्चा सुन बोल पाएगा। यदि आपका बच्चा बोलने/सुनने में सक्षम नहीं है तो ई.एन.टी. विभाग में अवश्य दिखाऐं।

क्या होता है कॉकलियर इम्प्लांट?

कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  सामान्य रूप से बेहोश करके की जाती है। सर्जन कान के पीछे स्थित मस्तूल की हड्डी को खोलने के लिए एक चीरा लगाते हैं। चेहरे की नस की पहचान की जाती है और कॉकलिया का उपयोग करने के लिए उनके बीच एक रास्ता बनाया जाता है और इसमें इंप्लांट इलेक्ट्रोड्स को फिट कर दिया जाता है। इसके बाद एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जिसे रिसीवर कहते हैं, उसे कान के पीछे के हिस्से में चमड़ी के नीचे लगा दिया जाता है और चीरा बंद कर दिया जाता है।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल पिछले सतत् 17 वर्षों से एक ही छत के नीचे सभी विश्वस्तरीय सेवाएं दे रहा है और चिकित्सा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता आया है, गीतांजली हॉस्पिटल में कार्यरत डॉक्टर्स व स्टाफ गीतांजली हॉस्पिटल में आने प्रत्येक रोगी के इलाज हेतु सदेव तत्पर है|