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द्वारकाधीश स्कूल घाटे में दिखाकर किया बंद, 80 बच्चों का भविष्य अधरझुल मे

बच्चों के मौलिक अधिकार राइट टू एजुकेशन से वंचित करता द्वारकाधीश स्कूल 

 

राजसमंद। आए दिन हम समाचार पत्रों के जरिए सुनते आ रहे हैं कि देश में शिक्षा का व्यवसायिकरण होता जा रहा है जिसमें कई पूंजीपतियों और संस्थाओं ने शिक्षण संस्थानों को व्यवसाय में बदल दिया है। जिस कारण से देश के हर गांव शहर में निजी स्कूलों और शिक्षण संस्थाओं का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। कई शिक्षण संस्थान मुनाफा कमा रहे हैं और कई शिक्षण संस्थान घाटे मे होने की बात बताकर बंद भी होते जा रहे हैं । 

ऐसा ही एक मामला राजसमंद जिला मुख्यालय 2 किलोमीटर दूरी पर प्रतापपुरा गांव में देखने को मिला जहां पर अप्रैल माह में द्वारकाधीश स्कूल नामक निजी स्कूल का शुभारंभ हुआ और सात माह बाद स्कूल प्रबंधन की ओर से यह कहकर बंद कर दिया गया की स्कूल में घाटा हो रहा है। द्वारकाधीश स्कूल के इस फैसले से वहां पर पढ़ने वाले 80 बच्चों का भविष्य अधरझुल में लटक गया है। बच्चे न घर के रहे न घाट के जाए तो कहां जाए। 

द्वारकाधीश स्कूल बंद होने की वजह स्कूल प्रबंधन की ओर से बताया जा रहा है कि स्कूल घाटे में चलने की वजह से यह स्कूल बंद किया जा रहा है। द्वारकाधीश स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो के सामने सवाल यह खड़ा हो रहा है कि कहां जाए और कहां नए स्कूल में एडमिशन ले तो कहां ले यह तय कर पाना बच्चों के लिए मुश्किल हो रहा है कई बच्चों ने तो बड़ी मुश्किल से अन्य स्कूलों में बड़ी मुश्किल एडमिशन ले लिया है और कई बच्चे आज भी इधर-उधर भटक रहे हैं । 

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिताओं ने बताया कि इस तरह से स्कूल बंद होना हमारे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उन्होंने बताया कि कोरोना की वजह से 2 साल बच्चों की पढ़ाई डिस्टर्ब हुई थी उसके बाद हमने द्वारकाधीश स्कूल अच्छा स्कूल समझ कर हमारे बच्चों को इसमें एडमिशन करवाया था मगर यह बंद हो जाने से हमारे बच्चों को अन्य स्कूल में पढ़ने और एडमिशन लेने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह साल भी हमारे बच्चों की पढ़ाई खराब हो गई इसका जिम्मेदार कौन होगा?  हम लोग बड़ी मुश्किल से इस महंगाई के जमाने में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए निजी स्कूलों में भेजते हैं मगर निजी स्कूल वाले अपने फायदे और घाटे को देखते हुए स्कूल चलना और बंद करने का फैसला ले लेते हैं।  

बच्चों के माता-पिता ने बताया कि जब यह स्कूल शुरू हुआ था हमने बच्चों को एडमिशन से लेकर किताबें कोर्स स्कूल ड्रेस कई तरह की साधन सुविधाओं को लेकर 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा आया था और कई माता-पिताओं ने तो पूरे साल की फीस भी एडवांस में जमा करवा दी थी स्कूल प्रशासन हमारे साथ धोखाधड़ी करके स्कूल बंद कर रहा है । 

 बच्चों के मौलिक अधिकार राइट टू एजुकेशन से वंचित करता द्वारकाधीश स्कूल 

वर्ष 2009 में आए राइट टू एजुकेशन एक्ट के हिसाब से बच्चों के मौलिक अधिकार शिक्षा का अधिकार से द्वारकाधीश स्कूल पूरी तरह से वंचित कर रहा है।  अप्रैल में अपने स्कूल के नए सत्र की शुरुआत करके मात्र 7 माह में स्कूल का घाटा दिखाकर स्कूल बंद करना, यह स्कूल सरकार के द्वारा बनाए गए शिक्षा के अधिकार जैसे कानून को भी चुनौती दे रहा है । ऐसे स्कूलों के ऊपर शिक्षा विभाग क्या कार्रवाई करता है यह तो आने वाले समय में पता चलेगा मगर आज की स्थिति में इन 80 बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता दिखाई दे रहा है और उन 80 बच्चों के माता-पिताओ की मेहनत की कमाई जो कि स्कूल के नाम पर किया अपने बच्चों के खर्च का का क्या होगा यह सवाल शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन से बनता है।

इनका कहना है 

हमारे साथ द्वारकाधीश पब्लिक स्कूल ने धोखा किया है पहले हमारे बच्चों का एडमिशन किया और अब यह स्कूल बंद हो रहा है इसलिए हमारे बच्चे का दूसरी जगह एडमिशन कराना और नई किताबें लाना और वापस नए सिरे से पढ़ाई करना बच्चों के ऊपर मानसिक दबाव बढ़ेगा और हमारा अप्रैल में 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा हो गया इसका जिम्मेदार कौन होगा सरकार ऐसे लोगों को स्कूल चलाने के लिए क्यों रजिस्ट्रेशन करती है - गोपाल माली अभिभावक सोनियाणा

स्कूल की शुरुआत में मेरे बच्चे के एडमिशन के लिए 30 से 35000 का खर्चा आया अभी यह स्कूल बंद हो रहा है इसलिए इसलिए काफी मानसिक तनाव है बच्चा परेशान है अब नए सिरे से कहां पढ़ाई करेगा यह चिंता हो रही है कार्यवाही करे -पूरणमल कुमावत अभिभावाक स्थानीय