ऊँट नहीं राजस्थान की शान है ये जानवर, तेज तर्रार और सुन्दरता के लिए है फेमस
जानें खासियत
उदयपुर, 5 दिसंबर । राजस्थान की आन बान व शान का जिक्र करे और घोड़ों जिक्र न हो ऐसा संभव नही है क्योंकि यहां पर घोड़ों को रखना शान मानते हैं। ऐसे ही घोड़ो मे मारवाड़ी नस्ल के घोड़े विश्व विख्यात है जो फुर्तीले और कद काठी के होने के साथ-साथ अपनी सुन्दरता और बहादुरी के कारण भी जाने जाते है। इनका कद काफी बड़ा होता है । वही यह घोड़े तेज दौड़ के लिए भी जाने जाते है। यह नस्ल के घोड़े प्रदेश के कई जिलों में कम हो गए है। 2012 की तुलना में 2019 में उदयपुर संभाग में इस नस्ल के घोड़ों की संख्या 7.65 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि अजमेर संभाग में ये घोड़े 53.61 प्रतिशत कम हुए हैं।
संभागवार मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की स्थिति
संभाग | वर्ष 2012 | वर्ष 2019 |
अजमेर | 7144 | 3314 |
जयपुर | 4911 | 6446 |
कोटा | 3544 | 4227 |
भरतपुर | 2958 | 3488 |
जोधपुर | 9025 | 6356 |
उदयपुर | 4052 | 4362 |
इतिहास के अनुसार महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा मारवाड़ी नस्ल का ही था। आज भी सेना, पुलिस, इस नस्ल के घोड़ों का उपयोग करती है। इनकी खुराक अच्छी होती है, लेकिन सस्ती होने के कारण इसके पालन को लेकर परेशानी नहीं होती।
मेवाड़ में रोजगार की संभावनाएं
उदयपुर संभाग में इस घोड़े से रोजगार की संभावना अधिक है। उदयपुर पर्यटन क्षेत्र होने के साथ ही यहां तांगा, बग्घी के साथ कुछ वर्षों से होर्स सफारी भी करवाई जाने लगी है। इसके साथ ही ये घोड़े एंडियोरेंस, टेंट पैगिंग, जम्प, ड्रेसाज, प्लेजर राइडिंग एरिना पोला आदि खेलों के लिए काफी अच्छे रहते हैं। सरकार को इन खेलों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
यह घोड़ा सबसे अच्छा लड़ाई के मैदान के लिए होता है
उदयपुर के अश्वशक्ति सोसायटी के अध्यक्ष अनंत सिंह राठौड़-केलवा ने कहा की मारवाड़ घोड़ों का स्टेमिना लंबा होता है। एंडियोरेस की जांच में मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा आगे रहा है। यह घोड़ा सर्दी, गर्मी, बरसात सभी मौसम को झेल जाता है। इसके कान लेयर शेप इयर (घुमावदार) होते हैं। इस नस्ल के घोड़े का मुंह, आंख, फेस प्रोफाइल स्ट्रेट होती है। आंख काली एवं अच्छी साइज की होती है। नोस्टील्स बड़े और गोल होते हैं।
इनकी चमड़ी पतली एवं मुलायम होती है। ऐसे घोड़े अतिसुंदर होते हैं। पूछ और गर्दन के बाल पतले और कम होते हैं। गर्दन की बनावट नीचे से चौड़ी और कान तक जाते हुए पतली और घुमावदार होती है। मजबूत और गठिला शरीर होने के चलते यह घोड़ा 60 से 80 किलो वजन के सिपाही के साथ ही राशन भी लेकर चल सकता है। यह घोड़ा सबसे अच्छा लड़ाई के मैदान के लिए होता है।