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ऑक्सीजन की कमी और मछलियों का मरना झीलों के लिए नहीं शुभ संकेत

नगर निगम झील की सफाई पर ध्यान देने की बजाय झील में क्रूज़ और नावों से होने वाली आय पर केन्दित है

 

झील की साफ़ सफाई का जिन पर है जिम्मा वह नहीं दे रहे ध्यान 

उदयपुर 20 अक्टूबर 2021 । झीलों की नगरी के नाम से विख्यात उदयपुर की पिछोला झील शहर के शान ही नहीं बल्कि यह शहरवासियों की प्यास भी बुझाती है। पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने वाली इस झील में अमरकुंड और रंगसागर में पसरी जलकुंभी और गंदगी की वजह से झील में ऑक्सीजन की कमी से मछलियां दम तोड़ रही है। नरक निगम बन चुका उदयपुर नगर निगम, जिन पर इस झील की साफ़ सफाई की ज़िम्मेदारी है वह लापरवाह बने हुए है। नगर निगम झील की सफाई पर ध्यान देने की बजाय झील में क्रूज़ और नावों से होने वाली आय पर केन्दित है। 

कल मंगलवार को पिछोला चांदपोल क्षेत्र मे झील मे मृत मछलियों को देख झील विकास एवं सुरक्षा समिति के सदस्य तेजशंकर पालीवाल मौके पर पंहुचे व जिला प्रशासन को सूचना दी, जिस पर संबंधित विभागों के अधिकारी हरकत मे आये। 

पालीवाल विगत कई दिनों से झीलों की नियमित सफाई का आग्रह कर रहे हैं। इसके अभाव मे झीलों पर प्रदूषण का भार बढ़ रहा है। पालीवाल ने कहा कि शहर को डस्ट बिन फ्री कर रहे है लेकिन झीलें एक डस्ट बिन बन कर रह गई है। यह दर्दनाक है।  प्रशासन को झीलों की नियमित सफाई की व्यवस्था तुरंत बनानी चाहिए। 

उल्लेखनीय है कि गत रविवार को झील प्रेमियों ने चांदपोल क्षेत्र मे झील के पानी का रंग काला पाया था। जिसका सीधा अभिप्राय है कि झील मे घुलनशील ऑक्सीजन नही है। 

मछलियों के मरने के संबंध मे झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि गंदे पानी के निरंतर झील मे प्रवाह व अन्य कार्बनिक कचरे के झील मे विसर्जन से झील की घुलनशील ऑक्सीजन का निरंतर क्षरण हो रहा है। सोमवार को बादल छाए रहने से सूर्य रोशनी उपलब्ध नही हुई व प्रकाश संश्लेषण नही हो पाया। और इस क्रिया से झील को मिलने वाली आक्सीजन भी नही मिल पाई। फलत: आक्सीजन शॉक से मछलियाँ मर गई। 

क्या है प्रकाश संश्लेषण?

फोटो सिंथेसिस से झील मे आक्सीजन उपलब्ध होती है। मेहता ने कहा कि सोलर संचालित एयरेटर से झीलों मे आक्सीजन बनाई रखी जा सकती है। खासकर रात्रि को निरंतर एयरेटर चलने चाहिए क्योंकि उस वक्त सूर्य रोशनी नही होने से प्रकाश संश्लेषण नहीं होता। 

पर्यावरणविद नंद किशोर शर्मा ने कहा कि अमर कुंड मे अभी भी सीवर समा रहा है। इसके लिए गड़िया देवरा से चांदपोल तक की शहरकोट दीवार की ग्राउटिंग जरूरी है। साथ ही झीलों की जल गुणवत्ता की निरंतर निगरानी होनी चाहिए।