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भारतीय सेना दिवस के अवसर पर भारत माँ के सपूतों को नमन करते भारतीय नेता

 
भारतीय सेना दिवस के अवसर पर भारत माँ के सपूतों को भारतीय नेताओं ने दी श्रद्धांजलि 

भारतीय सेना आज अपना 74वां स्थापना दिवस मना रही है, जिसमें देश की जनता सहित कई नेता भारत माँ के सपूतों की शहादत को याद करते और उन्हें श्रद्धांजलि देते नज़र आ रहे हैं। इस हेतु देश के अपने माइक्रोब्लॉगिंग ऐप, कू पर कई पोस्ट की गई हैं, जिनमें से कुछ चुनिंदा पोस्ट इस प्रकार हैं:

बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस कहते हैं:

"भारत माता के सभी वीर सपूतों और उनके परिवारों को हमारे राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ सेवा के लिए नमन!
#ArmyDay की हार्दिक शुभकामनाएं!
#भारतीयसेनादिवस"

कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू कू पर पोस्ट के माध्यम से वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहते हैं:

"आइए हम सब मिलकर #ArmyDay मनाएं ताकि हमारे बहादुर सैनिकों का सम्मान किया जा सके जो हमारे गौरव और हमारी मुस्कान के पीछे कारण हैं।
सेना के सभी जवानों और उनके परिवारों को बधाई। मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। #IndianArmy #IndianArmyDay2022 "

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री, अर्जुन मुंडा भारतीय सैनिकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं:

सेना दिवस पर, मैं सभी बहादुर सैनिकों और उनके परिवारों को सलाम करता हूं। वे हमारे देश का गौरव हैं। हमारा देश, देश की सेवा में उनके बलिदान के लिए साहसी और प्रतिबद्ध सैनिकों का हमेशा आभारी रहेगा। #armyday

यह है इतिहास 

भारतीय सेना द्वार हर साल 15 जनवरी के दिन भारतीय सेना दिवस मनाया जाता है, जिसका कारण यह है कि आज ही के दिन फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने भारत की आजादी के बाद साल 1949 में ब्रिटिश जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की पूरी कमान ली थी। फ्रांसिस ने भारत में अंतिम ब्रिटिश जनरल के रूप में काम किया और इसके बाद भारतीय सेना की कमान फील्ड मार्शल केएम करियप्पा को सौंप दी गई और करियप्पा भारतीय सेना के पहले कमांडर इन चीफ बने। केएम करियप्पा के भारतीय थल सेना के शीर्ष कमांडर का पद संभालने के ही उपलक्ष्य में हर साल 15 जनवरी के दिन भारतीय सेना दिवस मनाया जाता है।

फील्ड मार्शल है सर्वोच्च पद

दरअसल फील्ड मार्शल का पद भारतीय सेना का सर्वोच्च पद है। यह पद सम्मान स्वरूप दिया जाता है। भारतीय सेना के इतिहास में यह सम्मान केवल दो लोगों के ही नाम पर है, पहला सैम मानेकशॉ, जिन्हें 1973 में इस पद से सम्मानित किया गया। वहीं दूसरे हैं केएम करियप्पा, जिन्हें वर्ष 1986 में इस पद से सम्मानित किया गया था।