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Magnus Hospital के डॉ मनोज अग्रवाल पर नवजात की आंखों की रोशनी छीनने का आरोप

माता पिता ने लापरवाही और गलती छुपाने के लिए डिस्चार्ज समरी तक बदलने के लगाए आरोप

 

उदयपुर में एक नवजात के माता पिता ने शहर के एक निजी हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ लापरवाही कर हमेशा के लिएउसे अंधा बना देने जैसे गंभीर आरोप लगाए है।

नवजात के परिजनों ने हॉस्पिटल प्रबंधन और चिकित्सकों पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की है। यह पूरा मामला उदयपुर के मैग्नस अस्पताल (Mangnus Hospital) का है जहां एक प्रिमेच्योर बेबी के जन्म के बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने उसका आर.ओ.पी Retinopathy of prematurity (ROP) टेस्ट नहीं लिखा और डिस्चार्ज समरी परिजनों को देते हुए बच्चे को स्वस्थ्य बताकर उन्हें सौंप दिया।

लेकिन अब 10 माह का बच्चा पूर्ण रूप से अंधा हो चुका है जिसका हैदराबाद में इलाज जारी है। पीड़ित योगेश जोशी ने बताया कि उसकी पत्नी अपूर्वा के गर्भवती होने के बाद वे गायनिक डॉक्टर शिल्पा गोयल से इलाज लेने गए थे।

 जहां 7 महीने तक उनका रूटीन चेकअप और जांचे चलती रही, जो सभी नॉर्मल थी। 7वें महीने में डॉक्टर गोयल ने सोनोग्राफी करवाई और उसमें AMNIOTIC FLUID (एमनियोटिक फ्लूड) कम होने की बात कहते हुए डिलीवरी करवाने का दबाव बनाया। जांच रिपोर्ट में एमनियोटिक फ्लूड की वैल्यू 3.9 थी, जो नॉर्मल 8 से 9 के बीच होनी चाहिए। 

ऐसे में परिजनों ने उसी दिन वही सोनोग्राफी अर्थ डायग्नोस्टिक पर करवाई जिसमे उसकी वैल्यू 8.2 आई, जो नॉर्मल थी। ये बात जैसे ही परिजनों ने डॉक्टर शिल्पा गोयल को बताई तो उन्होंने मैग्नस अस्पताल में फिर से सोनोग्राफी की, जिसमे वही वैल्यू 5.8 आ गई। इससे साफ है कि एक ही अस्पताल में चार घंटे के अंतराल में की हुई दो सोनोग्राफी की रिपोर्ट में ही अंतर है।

जबकि अर्थ पर हुई जांच में रिपोर्ट नॉर्मल आई है। इसके बाद भी डॉक्टर गोयल ने उन्हें अगले ही दिन भर्ती होकर डिलीवरी करवाने का दबाव बनाया। गर्भवती महिला और उसके परिजन काफी डर गए और डॉक्टर की सलाह मानते हुए डिलीवरी करवा दी। डिलीवरी के बाद जन्मे प्रिमेच्योर बेबी को मैग्नस अस्पताल के एनआईसीयू में करीब 21 दिन भर्ती रखा और उसके बाद डिस्चार्ज किया गया। ऐसे में उस अस्पताल में एक डिलीवरी का बिल करीब 4 से 5 लाख तक बन गया, जो पीड़ित की ओर से चुका दिए गए।

इसके बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज अग्रवाल की निगरानी में बच्चे का इलाज चलता रहा। परिजनों ने बताया कि डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने लापरवाही बरतते हुए बच्चे का ROP टेस्ट नहीं करवाया, जिस कारण नवजात ने हमेशा के लिए अपनी आंखों की रोशनी खो दी है। जबकि हर प्रिमेच्योर बेबी का ROP टेस्ट आवश्यक होता है। जब नवजात 3 माह का हुआ तो उसकी आंखें एक जगह स्थिर नही रहकर 360° रोटेट हो रही थी। इस पर परिजनों ने फिर से डॉक्टर को बताया तो उन्होंने सब ठीक है कहकर भगा दिया। 

लेकिन 6 माह तक भी नवजात आंखों को स्थिर नही कर पा रहा था ऐसे में परिजनों ने फिर से डॉक्टर अग्रवाल को दिखाया, इस पर उन्होंने मधुबन स्थित ए एस जी अस्पताल (ASG Hospital) में दिखाने को बोला। ए एस जी अस्पताल में डॉक्टर रोहित योगी ने नवजात को देखते ही दिल्ली एम्स में सर्जरी कराने की सलाह दी। उसके बाद मैग्नस के डॉक्टर अग्रवाल ने परिजनों को फिर से अपने पास बुलाया और एम्स में अपॉइंटमेंट दिलाने के बहाने ओरिजनल फ़ाइल उनके पास रख ली जो एक दिन बाद वापस लौटाई गई। इस दौरान डॉक्टर अग्रवाल ने अपनी गलती छुपाने के लिए पुरानी डिस्चार्ज समरी निकाल कर नई डिस्चार्ज समरी बनाई और फ़ाइल में रख दी, जिसमे ROP टेस्ट लिखा हुआ था। 

एक दिन बाद परिजन 6 माह के नवजात को लेकर एम्स गए जहां डॉक्टर्स ने उन्हें कहा कि अब इसकी आंखों की रोशनी लाने का कोई इलाज नही है, जन्म से 30 दिन में ROP टेस्ट हो जाता तो रोशनी लाने का इलाज संभव था। पीड़ित ने बताया कि जब उन्हें पहली बार ओरिजनल डिस्चार्ज समरी दी थी उस वक़्त उन्होंने सभी दस्तावेजो की फोटो कॉपी करवा कर अपने पास रख ली थी। पहली वाली डिस्चार्ज समरी की फ़ोटो कॉपी और बाद में बदली गई डिस्चार्ज समरी में अंतर साफ देखा जा सकता है। अब बच्चे का हैदराबाद के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है जिसमे भी रोशनी लौटने की संभावनाएं ना के बराबर है। 

पीड़ित का कहना है कि मैग्नस अस्पताल और डॉक्टर मनोज की लापरवाही के कारण ना सिर्फ एक मासूम ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी है बल्कि इस इलाज में अब तक उनके 14 लाख से ज्यादा खर्च हो चुके है। 

इस पूरे मामले पर पीड़ित परिवार एसपी के सामने भी पेश हुआ और डॉक्टर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है। लेकिन एसपी ने डॉक्टर्स पर सीधा मुकदमा नही होने का हवाला देते हुए जांच कमेटी बनाकर जांच की बात कही है। पीड़ित ने बताया कि जांच कमेटी बनाने की बात को भी दो महीने हो चुके है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

वही जब इस मामले को लेकर अस्पताल के डॉक्टर मनोज जोशी से बात की गई तो उन्होंने उन पर लगे सभी आरोपों से इनकार कर दिया और उन्हें निराधार ठहराया। उन्होंने कहा कि वह पिछले 15 सालों से प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्होंने दिल्ली के मशहूर अस्पताल में, उदयपुर के भंडारी चाइल्ड हॉस्पिटल में भी सेवाएं दी है और पिछले 4 सालों से लगातार मैगनस हॉस्पिटल में कार्यरत हूं। इन पिछले 4 सालों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी फ्री मेच्योर नवजात का ROP टेस्ट नहीं कराया गया हो। जब भी कोई प्रीमेच्योर नवजात हॉस्पिटल में पैदा होता है तो उसके डिस्चार्ज से चार दिन पहले ही यह प्लान कर लिया जाता है कि उसका ROP टेस्ट करवाया जाएगा, इस मामले में भी नवजात और उसकी मां को 15 अगस्त 2023 को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया था और उसके एक दिन पहले 14 अगस्त को उसके परिजनों को ROP टेस्ट करने के लिए कहा गया था। 

डॉक्टर ने कहा कि मैगनस हॉस्पिटल में डॉक्टर रोहित योगी जो कि एएसजी हॉस्पिटल में कार्यरत है उनके द्वारा ROP  टेस्ट कराया जाता है। इस मामले में भी जब बच्चे के परिजनों को ROP टेस्ट करने के लिए कहा गया तो उन्होंने अपने स्तर पर ROP टेस्ट एएसजी हॉस्पिटल के डॉक्टर रोहित योगी के पास जाकर करवा लेने की बात कही थी जिसके बाद उन्हें उनके आश्वासन मिलने के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया था। डॉ जोशी ने उन पर लगाए गए आरोपी को झूठा बताया।

जब डॉक्टर जोशी से बच्चे की डिस्चार्ज समरी में छेड़खानी करने की बात पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस मामले में कोई भी जानकारी होने से इनकार कर दिया उन्होंने कहा कि उन्हें रिपोर्ट में किसी भी तरह की कोई छेड़खानी किए जाने की कोई जानकारी नहीं है साथ ही जो डिस्चार्ज समरी बच्चों के परिजनों द्वारा दिखाई गई है उसमें उनके सिग्नेचर भी नहीं है सिर्फ हॉस्पिटल की सील ही लगी हुई है जो अक्सर हॉस्पिटल के रिसेप्शन से ही डिस्चार्ज होने वाले मरीज़ के परिजन लगवा लिया करते हैं।

उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपी को झूठा बताया और साथ ही उनका और बच्चे के परिजनों का वायरल हो रहा एक ऑडियो पर उनसे जब सवाल किया गया तो उन्होंने उसे भी झूठा बताया।