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21 हज़ार फ़ीट के कपडे पर लिखा जायेगा मानगढ़ धाम के शहीदों का परिचय

17 नवंबर 1913 में बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ नामक स्थान पर जनजाति  क्रांतिकारी गोविन्द गुरु के नेतृत्व में लगभग डेढ़ हज़ार आदिवासियों ने अपने प्राणो की आहुति दी थी

 

आगामी 1 नवंबर को प्रधानमंत्री के मेवाड़ वागड़ के आदिवासियों के तीर्थ कहे जाने वाले मानगढ़ धाम की प्रस्तावित यात्रा पर आने वाले है। कल गुरुवार को ही कांग्रेस के आदिवासी नेता रघुवीर मीणा ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है। 

मानगढ़ धाम में आज़ादी के संघर्ष में अंग्रेज़ो से लोहा लेते हुए 17 नवंबर 1913 में बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ नामक स्थान पर जनजाति  क्रांतिकारी गोविन्द गुरु के नेतृत्व में लगभग डेढ़ हज़ार आदिवासियों ने अपने प्राणो की आहुति दी थी।  एक प्रकार से यह पंजाब के जलियांवाला बाग़ से भी बड़ा नरसंहार था जिन्हे इतिहास के पन्नो में उतनी जगह नहीं मिली जितनी यह घटना हक़दार थी। 

कौन थे गोविंद गुरु 

भील समुदाय में कभी कविताओं के मध्यमा से कभी अंग्रेज़ो के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले क्रांतिकारी गोविन्द गुरु का जन्म 1858 में डूंगरपुर ज़िले के बांसिया गांव में हुआ था। अत्याचारों के खिलाफ उनकी आवाज़ अंग्रेजी शासन को हमेश हिलाती रही।  1883 में उन्होंने अपनी सभा की स्थापना की जिनमे शराब नहीं पीना, सूद नहीं देने इत्यादि के सन्देश देने से शराब व्यापारीयो और सूदखोरों की आँखों में खटकने लगे थे।  

घटना वाले दिन मानगढ़ की पहाड़ी पर सैंकड़ो आदिवासी जमा हो गए थे ,तब अंग्रेज़ो ने मेवाड़ की सेना को बुला लिया और स्थानीय रजवाड़ो ने यह खबर फैला दी कि आदिवासी कब्ज़ा करने के इरादे से पहाड़ पर जमा हुए है। 12 नवंबर 1913 को भील प्रतिनिधि ने मांग पत्र सेना के मुखिया को सौंपा लेकिन बात नहीं बनी और 17 नवम्बर 1913 को छावनी की अंग्रेजी सेना ने अंधाधुंध फायरिंग करके लगभग डेढ़ हज़ार आदिवासियों को मौत के घाट उतार डाला। 

इसी घटना के दौरान गोविन्द गुरु को पैर में गोली लगी और उन्हें गिरफ्तार क्र लिया गया और उन पर मुकदमा चला कर फांसी की सजा सुना दी थी। लेकिन 1923 में अच्छे आचरण के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। 1931 में इनका देहांत हो गया था। 

इतिहास के पन्नो में छूटे इन अनजान शहीदों को दुनिया के सामने लाने का बीड़ा उदयपुर के मनोज आंचलिया और उनकी साथी सीमा वैद ने उठाया और छह साल पहले देश भर के गुमशुदा शहीदों को ढूंढकर उन्हें 21 हज़ार फीट कपडे में नाम और इतिहास लिखा था। हाल ही में इन दोनों ने मानगढ़ के शहीदों पर काम करना शुरू किया है। 

उन्होंने बताया की उन्होंने 1500 में कुछ ही शहीदों की जानकारी जुटा पाए है और लगातार जुटे हुए है लेकिन आदिवासी अंचल से जानकारी जुटाना बहुत कठिनकर कार्य है।  हालाँकि वह लगातार इस कार्य में जुटे हुए है और लगभग 21 हज़ार फ़ीट के कपडे पर उनका नाम और इतिहास लिखने का कठिन काम कर रहे है।  उन्होंने बताया की यह अपने आप में एकमात्र पट्टिका है जहाँ इन शहीदों का नाम अंकित किया जाएगा।