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वेदों का पाठ पढ़ाता नवलखा महल अब हुआ हाइटेक

आर्ट गैलेरी, म्यूजियम व 16 संस्कारों के मॉडल में मिलेगा वेदिक ज्ञान का आनंद

 

यह महल अब आर्य समाज और स्वामी दयानंद की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का माध्यम बन चुका है


लेकसिटी के प्रमुख पर्यटन स्थल गुलाबबाग के केंद्र में स्थित नवलखा महल अब विविध नवाचारों एवं अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ वेदिक ज्ञान का प्रचार करेगा। 19 वीं शताब्दी में स्थापित यह महल अब आर्य समाज और स्वामी दयानंद की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का माध्यम बन चुका है। वर्तमान में इस महल के रखरखाव एवं संरक्षण का कार्य आर्य समाज ट्रस्ट के माध्यम से किया जा रहा है। इन दिनों ट्रस्ट की पहल पर इस स्थान को अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ हाइटेक बनाने का कार्य किया जा रहा है।

1882 में अगस्त माह में ही उदयपुर आए थे दयानंद:
 दयानंद सत्यार्थ प्रकाश ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक आर्य ने बताया कि महर्षि दयानंद, एक ऋषि और सुधारक थे, जिन्होंने वैदिक शिक्षा को भारत में प्रचारित किया। वे वेदों और शास्त्रों के गहन विद्वान और सिद्ध योगी थे। महर्षि दयानंद 10 अगस्त, 1882 को उदयपुर आए। उन्होंने मेवाड़ साम्राज्य के 72 वें शासक महाराणा सज्जन सिंह के अनुरोध पर झीलों की नगरी का दौरा किया। नवलखा महल कभी महाराणा का शाही अतिथि गृह था जिसे सन् 1992 में सत्यार्थ प्रकाश न्यास को सौंप दिया।
उन्होंने बताया कि महर्षि 27 फरवरी 1883 तक यानि लगभग साढ़े छह महीने तक शहर में रहे और नवलखा महल में ही प्रवास किया।। इस पवित्र नवलखा महल में, महर्षि दयानंद ने युग प्रवर्तक ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश के लेखन को पूरा किया। यह सत्यार्थ प्रकाश मानव जीवन के लिए उसका प्रोटोकॉल था। उन्होंने इसे मानव जाति के कल्याण के लिए और दिव्य ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने के लिए लिखा था। मेवाड़ प्रवास के दौरान महर्षि दयानंद को सुनने वागड़ अंचल से गोविंद गुरु भी आया करते थे। दयानंद से प्राप्त ज्ञान को उन्होंने अनपढ़ आदिवासियों के बीच प्रसारित किया। गोविंद गुरु आदिवासी अंचल में सुधारवादी कार्य करते रहे।
14 अध्यायों में समाया अथाह ज्ञान:
स्वामी दयानंद द्वारा लिखित सत्यार्थ प्रकाश में 14 अध्याय हैं। इसमें उन्होंने बाल-शिक्षा, अध्ययन-अध्यापन, विवाह और गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास-राजधर्म, ईश्वर, सृष्टि-उत्पत्ति, बंध-मोक्ष, आचार-अनाचार, आर्यावर्तदेशीय मतमतान्तर, इसाई मत और इस्लाम के बारे में अपने विचार लिखे हैं। सत्यार्थ प्रकाश मूल रूप से हिंदी में लिखा गया था, लेकिन यह अब तक संस्कृत समेत दुनियाभर की 24 से अधिक भाषाओं में अनुदित हो चुका है।

दिलचस्प है कि संस्कृत में 1924 में लिखे जाने से पहले चार अलग-अलग लेखक इसे अंग्रेजी में लिखे चुके थे। मातृभाषा गुजराती और संस्कृत का अथाह ज्ञान होने के बावजूद महर्षि ने इसे हिंदी में लिखा। संस्कृत छोड़कर हिंदी अपनाने की सलाह उन्हें कलकत्ता प्रवास के दौरान केशवचंद्र सेन ने दी थी।
ऐसा है नवलखा महल: 
आर्य समाज से जुड़ी सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी ललिता मेहरा ने बताया कि यहां एक यज्ञशाला भी है जहाँ वैदिक भजनों और वेदपाठों के साथ सामूहिक यज्ञों सहित यज्ञ प्रतिदिन सुबह और शाम किए जाते हैं। महल की पहली मंजिल में एक चित्र दीर्घा है जहाँ 67 तेल चित्रों में महर्षि के जीवन को, उनके आध्यात्मिक ज्ञान को चित्रित किया गया है।

स्वामी दयानंद सरस्वती के लेखन कक्ष में एक 14-कोण और 14-कहानी वाला ं‘सत्यार्थ प्रकाश स्तम्भ’ ’या टॉवर भी स्थापित है। आंगन के एक तरफ एक हॉल में एक वैदिक पुस्तकालय और पढ़ने का कमरा है। सत्यार्थ प्रकाश के सभी 24 अनुवाद-इसमें संस्कृत, फ्रेंच, जर्मन, स्वाहिली, अरबी और चीनी शामिल हैं। घूमने वाले कांच के मामले सत्यार्थ प्रकाश और महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथों को प्रदर्शित करते हैं। 
 

थियेटर और षोडश संस्कारों के मॉडल का होगा आकर्षण:

 दयानंद सत्यार्थ प्रकाश ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक आर्य ने बताया कि वर्तमान में इस नवलखा महल और स्वामी दयानंद से इसके जुड़ाव के प्रति लेकसिटी में आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से यहां पर एक हाईटेक थियेटर तैयार किया गया है और बहुत ही जल्द यहां पर भारतीय संस्कृति में निर्दिष्ट सोलह संस्कारों की महत्ता को उद्घाटित करने के लिए विशेष मॉडल तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति  प्राप्त आर्टिस्ट की सेवाएं ली जा रही है।