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भील प्रदेश राज्य की मांग को लेकर प्रदर्शन

भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के बैनर तले ज़िला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा

 

उदयपुर 15 जुलाई 2024। भारत के आदिवासी समुदाय से जुड़े ज्वलंत मुद्दे एवं संविधान के अनुच्छेद 3 (क.ख, ग, घ, ङ) के तहत् पश्चिमी भारत के भील आदिवासी सांस्कृतिक क्षेत्र के चार राज्यों का सीमाई इलाका एवं एक केन्द्र / शासित प्रदेश को जोड़कर "भीलप्रदेश राज्य" गठन किए जाने की मांग को लेकर सोमवार को आदिवासी समाज ने कलेक्टरी के बाहर प्रदर्शन किया।

इसके तहत बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी इकठ्ठा हुए, उन्होने जमकरी नारेबाजी की और भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के बैनर तले ज़िला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा।

अपने ज्ञापन के माध्यम से प्रदर्शनकारियों ने निवेदन किया की "भारतीय उपमहाद्वीप में 20 लाख साल पहले से रह रहे आखेटक-खाध्य संग्राहक मानव समूह के वंशज आदिवासी है।” पुरातात्विक स्थल विन्ध्याचल-सतपुडा-अरावली पर्वतमाला में क्रमशः बेलन नदी घाटी, भीमबेटका एवं साबरमती नदी बेसिन में मिले है। 

उन्होंने कहा की भारत की इस मूल संस्कृति मानव समूह के संरक्षण के लिए “भील प्रदेश राज्य" गठन आवश्यक है। भारत भूमि की मूल मिट्टी की मूल उपज भील आदिवासी है। पश्चिमी भारत के इस इलाके में ईरानी, यूनानी, पार्थियन, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मुगल विदेशीयों के वंशज भी आकर बसे जिससे भारत की मूल संस्कृति, सभ्यता, बोली, धर्म के अस्तित्व की रक्षार्थ भील सांस्कृतिक भाषाई- ऐतिहासिक क्षेत्र को जोड़कर "भीलप्रदेश राज्य" गठन होना चाहिए था, मगर आजादी बाद  (Scheduled Area) में संविधान के अनुच्छेद 244 (1) की मूल भावना अनुरूप प्रशासन में आरक्षण लागू किया जाए।

उन्होने ज्ञापन में बताया की आदिवासी इलाकों (अनुसूचित क्षेत्र पांचवी अनुसूची टेरीटरी) में पुलिस प्रशासन में सामंतवादी लोगों की ही भर्ती की जा रही है, जो रजवाड़ों की स्थापना से आदिवासियों के दमन में लगे है, हमारी मांग है कि 'पुलिस थाना क्षेत्र की आदिवासी जनसंख्या के अनुपात में आदिवासी पुलिस कर्मीयों को अनिवार्ययतः प्रतिनिधित्व दिया जाये।' भील वंश एवं उप समूह (गरासिया, डामोर, भीलाला, बारेला, पटलिया, राठवा, नायक, वारली, पारधी, मानकर, कोली बारिया, कूकणा, पावरा, वसावा, गावित, पाडवी, महादेव कोली) गोंडवाना लैण्ड के विभाजन के समय पृथक हुए भारतीय खंड में जीवों के क्रमिक विकास से उपजा होमोसेपियंस मूलवंश है। जो अरावली-विंध्याचल-सातपुडा एवं इन पर्वतमालाओं की नदियों की उम्र के बराबर काल से भारतभूमि पर निरंतर रहवास कर रहे है। जो पश्चिम दिशा में सिंध से पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी से त्रिपुरा राज्य तक फैले हुए है। भारतीय उप महाद्वीप में विकसित हडप्पा-मोहनजोदड़ो सभ्यता (सिंधुघाटी सभ्यता) भील सहित आदिवासी पूर्वजों की देन थी। हड़प्पाई संस्कृति आज भी आदिवासी समुदाय में जीवित देखी जा सकती हैं इसे संरक्षित करने के लिए भील आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में 'भीली संस्कृति बोर्ड का गठन हो ।

उन्होंने बताया कि  विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली धरती पर सबसे पहले ठंडा होने वाले इलाके का भाग है जहाँ सबसे पहले पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु पैदा हुए। अरावली पर्वतमाला से निकलने वाली मानसी वाकल, साबरमती, सेई नदीयों के सबसे समृद्ध पाट स्थल कोटडा तहसील में दो बाँध बुझा बाँध (कूकावास, झेड, बाखेल माण्डवा, कोदरमाल पंचायत) सक सांडमारिया बाँध (घघमता खजूरिया, बिकरनी रूजिया खूणा पंचायत) की समतल उपजाऊ जमीन डूब क्षेत्र में जा रही है।