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दुर्घटनाग्रस्त वाहनों से किया जुगाड़, पुरानी बसों पर लगाए नए नंबर

ऐसे वाहनों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है
 

उदयपुर, 10 नवंबर। आदिवासी बहुल इलाकों में चल रही जुगाड़ बसें हादसों का कारण बन रही हैं। अधिकांश खस्ताहाल व जर्जर बसें अपनी आयु पूरी करने के बावजूद परिवहन विभाग की मेहरबानी से जुगाड़ के नम्बरों से रूट पर दौड़ रही हैं।

पुराने टायरों के भरोसे रूटों पर चलने वाली अधिकांश बसें उखड़-खाबड़ व मोड़ भरे रास्तों पर जाने की वजह से चालक इन पर रिट्रेडिंग (ठंडा रबर चढ़ा) टायर काम में लेते हैं। यह टायर कुछ ही दिनों में घिस जाते हैं। और बार-बार मार्ग में लगने वाले ब्रेक के बावजूद घिसे हुए टायरों पर बसें दौड़ती रहती है, जिससे हर समय दुर्घटना का भय बना रहता है। वहीं, ऐसे वाहनों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

उदयपुर-गोगुन्दा, झाड़ोल, कोटड़ा व सलूम्बर मार्ग पर चलने वाली अधिकांश बड़ी व छोटी बसें अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पार कर चुकी है। करीब पन्द्रह से बीस वर्ष पुरानी यह बसें नए नम्बरों से दौड़ रही है। जिसके हर थोड़े अंतराल में दुर्घटना के रूप में परिणाम सामने आते हैं। जिससे तमाम यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। सरकारी नियमों की बात करें तो एक बस की आयु करीब दो लाख किलोमीटर या सात वर्ष की अवधि तक निर्धारित है।

नए नम्बर के कागज औने- पौने दामों पर लेकर गाडियों पर चस्पा कर देते हैं

रूटों पर चलने वाली बसें पुरानी होने पर उनके मालिक चालान से बचने के लिए दुर्घटनाग्रस्त बसों के नए नम्बर के कागज औने- पौने दामों पर लेकर गाडियों पर चस्पा कर देते हैं।

असल में अगर इनकी जांच की जाए तो इंजन व चेसिस नम्बर इन गाडियों की पोल खोल देंगे। पुलिस विभाग ऐसी बसों में ओवरलोड पर यदाकदा कार्रवाई कर अपने मासिक आंकड़ों की पूर्ति करता है, लेकिन परिवहन विभाग का दस्ता तो पूरी मिलीभगत से वाहनों को चलवा रहा है। मार्ग पर बड़ा हादसा होने पर इस विभाग के अधिकारी उन दिनों में तीन से चार माह की खानापूर्ति एक साथ कर धड़ल्ले से चालान काटते हैं। इन बसों में रोजाना सफर करने वाले ग्रामीण व पुलिस खुद इस बात को स्वीकारते हैं।