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बुलडोज़र एक्शन पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट 

कोर्ट बुलडोजर ऐक्शन पर पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी 

 

13 नवंबर 2024। झारखण्ड विधानसभा के पहले चरण की सीटों और कई राज्यों की रिक्त विधानसभा और लोकसभा सीट पैट उपचुनाव के बीच अपराधियों पर बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना रहा है। 

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने अपनी टिप्पणी में कई अहम बातें कही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर एक्शन कानून नहीं होने का भय दिखाता है। कोर्ट बुलडोजर एक्शन  पर पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी करेगी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। 

पिछली सुनवाई में, अदालत ने अपराधों के आरोपियों को निशाना बनाने वाली अवैध विध्वंस कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की कार्रवाई का एक भी उदाहरण संविधान की भावना के खिलाफ है। साथ ही इस तरह के मामलों में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। आवास का अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। यदि लोगों को उनके घरों से बेदखल करना पड़े,तो अधिकारियों को यह साबित करना चाहिए कि ध्वस्तीकरण ही एकमात्र उपलब्ध विकल्प है। घर के एक हिस्से को ध्वस्त करने के बजाय अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए।

कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर सकती। केवल आरोप के आधार पर यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर तोड़ती है,तो यह कानून के शासन के बुनियादी सिद्धांत पर प्रहार करेगा। कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती और न ही किसी आरोपी की संपत्ति को ध्वस्त करने का निर्णय ले सकती है। 

जस्टिस गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने फैसला पढ़ते हुए साफ कहा कि प्रशासन मनमाने ढंग से किसी का घर नहीं गिरा सकते। अगर ऐसा कोई भी अधिकारी किसी का भी घर मनमाने या अपनी मर्जी से गिराता है, तो उसपर कार्यवाई भी होनी चाहिए। पीठ ने आगे कहा कि अगर यह पाया गया कि घर अवैध तरीके से गिराया गया है तो, उसके लिए मुआवजा भी मिलेगा। बिना किसी का पक्ष सुने कार्यवाही न की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्राशसन जज नहीं बन सकता।

बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई ध्वस्तीकरण नहीं किया जाना चाहिए, जो या तो स्थानीय नगरपालिका कानूनों में दिए गए समय के अनुसार या सेवा की तारीख से 15 दिनों के भीतर (जो भी बाद में हो) प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यह नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम से मालिक को भेजा जाएगा और संरचना के बाहरी हिस्से पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, विशेष उल्लंघन का विवरण और डेमोलेशन के आधार शामिल होने चाहिए।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आप आरोपी के कारण उसके पूरे परिवार को परेशान नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हमारा यह फैसला किसी एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है। इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि कार्रवाई के लिए नोटिस डीएम को दी जाए। नोटिस में यह भी बताएं कि यह मकान कैसे अवैध है या कौन सा हिस्सा अवैध है। बेंच ने कहा कि 3 महीने में पोर्टल बनाकर नोटिस साझा किए जाएं। यही नहीं, अवैध निर्माण को गिराने के लिए पहले से बताना जरूरी है। कोर्ट न कहा कि हमने आर्टिकल 142 के तहत फैसला सुनाया है।