राजस्थान का ये गांव तीर-कमान बनाने के लिए देशभर में मशहूर
उदयपुर 03 अक्टूबर 2025 - बांसवाड़ा ज़िले के उदयपुर मार्ग पर स्थित चंदूजी का गढ़ा तीर-कमान बनाने के लिए प्रसिद्ध है। यहां तैयार किए जाने वाले तीर-कमान की सप्लाई राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के मेलों में बड़े पैमाने पर की जाती है।
तीर के लिए उपयोग होने वाली लकड़ी की खेती भी होती है इसी गांव में
तीर के लिए उपयोग होने वाली लकड़ी की स्थानीय खेती भी गांव की पहचान है, जिसे हराड़ी कहा जाता है, जबकि कमान बांस की लकड़ी से बनाई जाती है। तीर-कमान की इस परंपरा का उल्लेख प्रतियोगी परीक्षाओं में भी मिलता है। वर्ष 2016 में RAS सहित कई परीक्षाओं में चंदूजी का गढ़ा किसके लिए प्रसिद्ध है, ऐसा प्रश्न पूछा गया था।
यह गांव जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर उदयपुर मुख्य मार्ग पर बसा हुआ है।
गांव के लोगों के अनुसार, हराड़ी का बीज अब कहीं नहीं मिलता। खेती पूर्वजों के समय से चली आ रही है। गन्ने की तरह इसकी जड़ों को उखाड़कर दुबारा रोप दिया जाता है। बारिश के मौसम में रोपाई होती है और फसल हर साल दीपावली के आसपास तैयार होती है। इसी से मिलने वाली आय से कई परिवारों का जीवन-यापन चलता है।
गांव के कारीगर मणिलाल तीरगर और चेतन तीरगर ने बताया की तीर-कमान बनाना उनका पुश्तैनी पेशा है। चंदूजी का गढ़ा में तीरगर समाज के 215 मकान हैं, जिनमें से वर्तमान में 15 से 20 परिवार ही इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
यहां तैयार होने वाले तीर-कमान मेलों में लोगों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
अन्य राज्यों में भी है इनकी ख़ास मांग
गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के मेलों में इनकी खास मांग है। कुछ कच्चा माल मध्यप्रदेश के व्यापारी भी खरीदकर ले जाते हैं। गांव के बस स्टैंड के पास रोजाना दुकान लगती है, जहां से राहगीर इन्हें खरीदते हैं।
कारीगरों ने बताया कि अब वे आधुनिक डिजाइन वाले फोल्डिंग सिस्टम धनुष भी बना रहे हैं, जो जयपुर में आयोजित एक कैंप से प्रेरित हैं। बाजार में ऐसे धनुष की कीमत 7000 रुपये तक बताई जाती है, जबकि कारीगर इन्हें 2500 रुपये में बेचते हैं। कारीगरों की मांग है कि सरकार उन्हें विशेष परिचय पत्र, लोन और मेलों में स्टॉल की सुविधा दे, ताकि उत्पादन और बिक्री बढ़ सके तथा बाहर राज्यों में जाते समय पुलिस द्वारा परेशान न किया जाए।
गांव के धूलजी तीरगर ने तीरंदाजी में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर गांव का नाम रोशन किया है। उन्होंने राज्य स्तरीय पुलिस प्रतियोगिताओं में तीन गोल्ड और एक कांस्य पदक जीता है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। वर्तमान में वे चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पुलिस थाने में एएसआई के रूप में सेवाएं दे रहे हैं।
चंदूजी का गढ़ा आज भी अपनी परंपरा, कला और कारीगरों की मेहनत के चलते तीर-कमान निर्माण की अनोखी पहचान बनाए हुए है।