1200 KM पैदल यात्रा पर निकले वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर विराग पहुंचे उदयपुर
पर्यावरण बचाने का संदेश देते 31000 से ज्यादा लगा चुके है पेड़
उदयपुर। पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन का संदेश देते हुए आमजन को वृक्षारोपण के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से 1200 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकले गायक विराग मधुमालती 961 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी करते हुए बुधवार को उदयपुर पहुंचे।
गायक विराग नवी मुंबई से 14 सितंबर को निकले थे जो नाकोड़ा जी तक जाएंगे। उदयपुर पहुँचने के साथ उन्होंने 24 घंटे लगातार 111 किलोमीटर पैदल चलकर पर्यावरण के जागरूकता हेतु इतिहास रच दिया। वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक ऑफ इंडिया (World Record Book Of India ) ने लेकर उनके नाम रिकॉर्ड दर्ज करवाया है।
वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर विराग इससे पहले पांच बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड मे अपना नाम दर्ज करवाकर भारत का मान बढ़ा चुके है। बुधवार को उदयपुर पहुंचे विराग ने पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि इस सेव मदर अर्थ मिशन के जरिये उनका लक्ष्य 1 लाख पेड़ लगाने का है और अब तक उनकी टीम 31000 से ज्यादा पेड़ लगा चुकी है। उन्होंने बताया कि यह यात्रा 14 सितंबर को नवी मुंबई से शुरू हुई थी जो नाकोड़ा भैरव देव के दर्शन के साथ विराम लेगी। इस 1200 किलोमीटर की पैदल यात्रा मे उनकी पत्नी वंदना वानखडे भी साथ है जो पूरी टीम की व्यवस्थाएं सम्भाल रही है। उन्होंने कहा कि वे एक पाश्र्वगायक है
वी मुंबई से शुरू इस पैदल यात्रा के दौरान सुबह चलना शुरू करते है और जहां मुमकिन है वहां वृक्षारोपण करते है। इसी के साथ रात्रि विश्राम के दौरान भक्ति संगीत के माध्यम से आसपास के लोगो को पर्यावरण बचाने के लिए प्रेरित करते है। पर्यावरण रक्षा के लिए उन्होंने आजीवन प्लास्टिक की बोटल मे पानी नहीं पीने का भी संकल्प लिया है।
नेत्रदान की जागरूकता के लिए 100 दिन तक बिताया अंधे का जीवन, खुद की आँख पर बांधी पट्टी
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने 1200 किलोमीटर की पैदल यात्रा का संकल्प ले चुके विराग की पत्नी वंदना ने बताया कि इससे पहले भी वे नेत्रदान के लिए लोगों को जागरूक कर चुके है। एक बार उनकी मुलाकात एक दृष्टिबाधित गायक से हुई थी उसके बाद उन्होंने भी 100 दिन तक अपनी आँखों पर पट्टी बांधे रखी। वे आँखों पर पट्टी बाँधकर ही कई जनजागृति के कार्यक्रम करते थे। इस दौरान उनकी तबियत खराब हो गई और आँखों की पट्टी ना खोलने पर आजीवन अंधे हो जाने की नौबत आ गई। लेकिन उसके बाद भी उन्होंने 100 दिनों के बाद ही पट्टी खोली और नेत्रदान के लिए लगातार जागरूकता फैलाते रहे।