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जीवदया की अनूठी मिसाल बनी उदयपुर की डॉ. माला मट्ठा

सैकड़ों मासूम जीवों की बचा चुकी हैं जान

 

अब चला रही परिंडे एवं गौरैया के नन्हें घर लगाने की मुहिम

उदयपुर, 18 मई 2022 । “हम बोल नहीं सकते, फिर भी जज्बात रखते है, जिसे कह दिया अपना, उसे हर दम साथ रखते हैं...” बेजुबानों की खासियत है कि एक बार वे जिसे अपना मान लें, उसकी वफादारी वे हमेशा करते हैं। चाहे फिर इंसान उनकी तौहीन ही क्यों न करे... लेकिन फिर भी आज के आपाधापी के जमाने में बेजुबानों की परवाह करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। इसी बीच जीव दया एवं संरक्षण के लिए अपना सब कुछ लगा देने वाली उदयपुर डॉ.माला मट्ठा की कहानी अपने आप में एक मिसाल है।

उदयपुर की डॉ माला मट्ठा जानवरो की सेवा मे पिछले 12 सालों से कार्यरत है। विभिन्न दुर्घटनाओं व अन्य कारणों में घायल और लोगों द्वारा मारे-पीटे जाने से पीडि़त सैंकड़ों गायों, श्वानों एवं अन्य जीव-जंतुओं की जान बचा चुकी हैं। माला मट्ठा अपनी संस्था के सदस्यों के साथ उदयपुर शहर की सौ किलोमीटर परिधि में किसी भी मासूम जानवर की दुर्घटना या बीमारी जैसे मामलों में तुरंत पहुँच कर उनकी सहायता एवं उपचार कर रही हैं, यही नहीं, उपचार के उपरान्त ठीक होने पर उस जीव को पुनः उसके गाँव या क्षेत्र में ले जाकर छोड़ दिया जाता है। जीवदया के लिए इनका जज्ब़ा तो इस कदर है कि लोग यदि किसी जीव को पीटते हैं तो उन्हें यह सहन नहीं होता और अब तक उन्होंने खुद आगे आकर इन जानवरों को बचाया है।

जीवदया की माला कर रही कई सारे जतन

डॉ.मट्ठा द्वारा ने हाईवे पर रह रहे जीवों को सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए रेडियम कॉलर पहनाने की मुहिम चला रखी है तो गर्मियों में बेजुबानों के दाना-पानी की व्यवस्था का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा है। भीषण गर्मी में वे पक्षियों के पानी के लिए परिंडें और अन्य जानवरों के लिए पानी की छोटी-छोटी टंकिया भी लगा रही है। 

डॉ. मट्ठा बताती हैं कि इन्होंने इस वर्ष उदयपुर शहर के कई क्षेत्रों में गायों एवं श्वानों के लिए लगभग 200 से अधिक बड़ी पानी की टंकियां, पक्षियों के लिए 1000 से अधिक लटकाने एवं रखने वाले परिण्डें लगवाएं एवं वितरित किए हैं ताकि बेजुबान जानवरों एवं पक्षियों को भीषण गर्मी में पीने का साफ पानी और रहने के लिए सुरक्षित स्थान मिल सके।

गोरैया के लिए बना रही रंग-बिरंगा आशियाना

इन दिनों क्षेत्र में पक्के मकानों के बनने और मोबाइल रेडियेशन के कारण कम हो रही गोरैया की आबादी को ध्यान में रखते हुए डॉ. मट्ठा ने खुद अपने हाथों से 100 से ज्यादा कृत्रिम घौंसलें तैयार किए है और लोगों को निःशुल्क वितरित किए हैं। इसके लिए वे बाजार से गोल गुल्लक खरीद कर उसमें चिडि़या के प्रवेश के लिए छेद बनाती है और फिर इस पर आकर्षक रंग कर लटकाने के लिए तार आदि लगा कर लोगों को बांट रही है ताकि हमारे घर-आंगन की शान गोरैया चिडि़या को उसका आशियाना मिले।  

बेजुबानों के लिए छोड़ी नौकरी और न की शादी

डॉ. मट्ठा बताती हैं कि कभी वह एक निजी अस्पताल में नौकरी करती थी परंतु उस पेशे में इन बेजुबानों के लिए समय नहीं निकाल पाती थी इसलिए उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी। इसी प्रकार शादी न करने का फैसला भी महज इसलिए लिया ताकि उनके भावी परिवार को इनके बेजुबानों के प्रति प्रेम से कोई परेशानी पैदा न हो। वह बताती है कि इन बेजुबानों के साथ प्यार बांटकर वो अपने पेशे और परिवार से भी ज्यादा संतुष्टि पा रही है और अब तो यही उसके जीवन का मकसद भी बन चुका है।  

एनिमल वेलफेयर ऑफिसर नियुक्त हुई माला

डॉ. मट्ठा की जीवों के प्रति की जाने वाली सेवा को देखते हुए एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया से इन्हें उदयपुर के लिए ऑनरेरी एनिमल वेलफेयर ऑफिसर के पद पर नियुक्त किया है, जिससे इनके कार्यों को और प्रोत्साहन मिला है। डॉ माला मिसाल है उन लोगों के लिए जो बेवजह मासूम जानवरों को प्रताडि़त करते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं।

सहकारिता से होता जीवदया का काम

डॉ. मट्ठा बताती है कि जीवदया का काम अकेले के बस की बात नहीं। इसके लिए उनके साथ कई सारे साथी जुड़े हुए हैं। एनिमल प्रोटेक्शन सोसायटी के बैनर तले डॉ. मट्ठा के साथ विशाल होलोरिया, मनीष पंचाल, नरेश जणवा, शुभम बड़ाला, गुड्डी पटेल, सीतारामजी के साथ लव शर्मा, कोमल, रवि और दीपांकर सहयोग करते हैं।

माला की मासूम अपील

डॉ. मट्ठा यह भी बताती हैं कि चिलचिलाती गर्मी में भूख और प्यास के साथ सड़क पर रहने वाले जीवो में सन स्ट्रोक भी होता है जिससे कई जीव-जंतु मारे जाते हैं। ऐसे में सभी का कर्तव्य है कि अपने आस-पास रहने वाले उन मासूम बेजुबानों की रक्षा के लिए भी कदम उठाएं। जो अपनी पीड़ा हमसे कह नहीं सकते, उनके बारे में जानकारी मिलते ही संबंधित लोगों को बताएं ताकि उनका जीवन बचाया जा सके।