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बालश्रम से जुड़े तथ्यों पर बालश्रम प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या से मुलाक़ात 

बालश्रम रोकने के लिए केवल कानून ही नहीं बल्कि सामाजिक चेतना भी ज़रूरी - डॉ शैलन्द्र पंड्या

 
इस अभियान के मुख्य सूत्रधार डॉ शैलेन्द्र पंड्या से उदयपुर टाइम्स की टीम ने बातचीत की जिसके अंश से हम अपने पाठको को रूबरू करवाने जा रहे है।

उदयपुर जिले में 13 जून से 20 जून 2022 तक राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राजस्थान सरकार के सदस्य एवं बालश्रम प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, भारत सरकार के निर्देशन में जिला प्रशासन द्वारा संचालित ‘‘बालश्रम मुक्त उदयपुर‘‘ अभियान चलाया गया था।  

13 जून से शुरू हुए रेस्क्यु अभियान के समापन तक कूल 91 बच्चो को रेस्क्यु किया गया जिसमें 81 बच्चे बालश्रम एवं 10 बच्चे भिक्षावृति के कार्यो में संलग्न पाए गए। साथ ही नियोक्ताओ के खिलाफ भी कार्यवाही की गई थी। इस अभियान के मुख्य सूत्रधार डॉ शैलेन्द्र पंड्या से उदयपुर टाइम्स की टीम ने बातचीत की जिसके अंश से हम अपने पाठको को रूबरू करवाने जा रहे है। 

डॉ शैलेन्द्र पंड्या ने बताया की पूरे भारत में 75 जिला मुख्यालयों में उक्त अभियान चलाया गया था जिनमे राजस्थान राज्य में राजधानी जयपुर और आदिवासी बाहुल्य दक्षिणी राजस्थान के सबसे बड़े जिले उदयपुर में बालश्रम के विरुद्ध एक मुहीम छेड़ी गई थी। डॉ पंड्या ने बताया की अभियान के तहत रेस्क्यु सप्ताह का यह समापन हो सकता है, परन्तु उदयपुर को बाल मित्र जिला बनाने की यह अच्छी शुरूआत है। आगे भी नियमित रूप से सम्बन्धित पुलिस थाने के बाल कल्याण पुलिस अधिकारी यह ट्रेक करे की उनके क्षैत्र में आने वाले कार्यस्थलो पर बालश्रम नही होता हो। 

इन क्षेत्रो में पाया जाता है अधिक बालश्रम 

डॉ शैलेन्द्र पंड्या ने बताया की होटल्स, छोटे बड़े रेस्टॉरेंट्स, ढाबे पर वेटर और बर्तन धोने के काम में अक्सर बच्चों को काम में लिप्त पाया जाता है। राजस्थान मूल और आसपास के ग्रामीण और शहरी कच्ची बस्तियों के गरीब बच्चे इनमे शामिल है। जबकि राजस्थान में रह रहे यूपी, बिहार, बंगाल आदि क्षेत्रो के आर्थिक रूप में कमज़ोर और प्रवासी मज़दूर परिवारों के बच्चे hazardeous जॉब जैसे ज्वेलरी उद्योग और कई फैक्ट्रियो में कार्यरत पाए जाते है। हालाँकि दिलचस्प तथ्य है की उदयपुर के बड़े उद्योगों और कारखानों में बालश्रम की संख्या लगभग नगण्य है। अधिकतर बच्चे छोटे मोटे और घरेलू उद्योगों में मज़दूरी करते पाये जा सकते है।

आदिवासी क्षेत्रो में अधिक कार्य करने की ज़रूरत 

दक्षिणी राजस्थान उदयपुर संभाग का अंचल चूँकि आदिवासी बाहुल्य है। गरीबी, बेरोज़गारी और अशिक्षा के चलते यहाँ के आदिवासी / जनजाति के बच्चे बालश्रम के आसान शिकार बनते है। गुजरात और मध्यप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रो के लिए सस्ते मज़दूर की पूर्ति इन्ही क्षेत्रो से पूरी होती है। दक्षिणी राजस्थान से सस्ते मज़दूर के रूप में बालको/बालिकाओ को दलाल के ज़रिये बाहर भेजने की ख़बरें अक्सर मीडिया की सुर्खियां बनती है। हालाँकि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएँ अपने स्तर पर कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन भी चलाती है। लेकिन यह प्रयास नाकाफी है। 

डॉ शैलेन्द्र पंड्या ने बताया की वर्ष 2019 में गुजरात के सूरत शहर से तत्कालीन जिला कलेक्टर आनंदी और पुलिस अधीक्षक कैलाश विश्नोई की मदद से 137 बच्चो को बालश्रम से रेस्क्यू किया गया था।  यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन था। 

कानून सख्त है लेकिन क्रियान्वयन मुश्किल  

बालश्रम के खिलाफ बने कानून में बालश्रम करवाना एक अपराध की श्रेणी में आता है।  जिनमे नियोक्ता को एक वर्ष की सज़ा और एक लाख रूपये का आर्थिक दंड की सजा मिल सकती है।  यदि कोई नियोक्ता बार बार अपराध को दोहराता है तो उन्हें सज़ा और आर्थिक दंड दोनों ही मिल सकता है और अतिरिक्त आर्थिक दंड भी मिल सकता है। रिपीटर नियोक्ताओं के खिलफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत भी सख्त कार्यवाही की जा सकती है। हालांकि कानून में कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन कानून का सुचारु क्रियान्वयन में शिथिलता पाई जाती है। डॉ पंड्या ने कहा की कानून के साथ साथ लोगो में जागरूकता भी आवश्यक है।  

बालश्रम से मुक्त किये गए बच्चो का पुनर्वास 

अक्सर लोगो के ज़हन में सवाल उठता है की बाल संरक्षण से जुडी संस्थाएं बच्चो को बालश्रम से मुक्ति तो दिलवा देती है। लेकिन रेस्क्यू किये गए बच्चो का भविष्य क्या होगा ? क्यूंकि बालश्रम में लिप्त बच्चे अमूमन गरीब परिवारों से जुड़े होते है जहाँ रोज़ी रोटी का संकट पहले ही मौजूद रहता है। ऐसे में रेस्क्यू बच्चो का रोज़गार भी छिन जाता है और परिवार पर आर्थिक मार भी पड़ती है। ऐसी स्थिति में बच्चे पुनः बालश्रम का शिकार हो जाते है। 

डॉ पंड्या ने बताया रेस्क्यू किये गए बच्चो को शेल्टर होम में रखा जाता है। जहाँ से उसके परिजन पुनः छुड़ा के ले जाते है। यदि कोई गरीब परिवार का बच्चा है या अनाथ बच्चा है या परिवार में कमाई का स्त्रोत वही होता है तो सरकारी स्तर पर प्रदेश सरकार पर मदद देने की कोशिश करती है। यदि बच्चे का कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं है तो उसका रहना, खाना, शिक्षा और सभी आधारभूत ज़रूरतों को शेल्टर होम या आश्रय स्थल प्रदान करती है।

यदि बच्चा शेल्टर होम या आश्रय केंद्र में नहीं रहना चाहता है और अभिभावक की आर्थिक स्थिति कमज़ोर है तो राजस्थान सरकार ने 'पालनहार योजना' के तहत आर्थिक मदद बी देती है। पहले ऐसे बच्चो को इस योजना के तहत 1000 रूपये की मासिक आर्थिक मदद दी जाती थी। अभी पालनहार योजना के तहत ऐसे बच्चो को ढाई हज़ार रूपये प्रति माह की मदद मुहैया करवाई जाती है।  डॉ पंड्या ने बताया की अशोक गहलोत सरकार की पालनहार योजना का अनुसरण कई राज्यों में शुरू हुआ है। 

किसे माना जाए बालश्रम 

एक अहम् सवाल अक्सर ज़हन में आता है कि बालश्रम किसे माना जाये ? यदि कोई बच्चा पारिवारिक परम्परागत व्यापार, उद्योग या कृषि में घर परिवार की मदद करता है तो उन्हें बालश्रम नहीं माना जा सकता है। बशर्ते की उनके कार्य करने की वजह से उनकी पढाई या आधारभूत सुविधाओं का उल्लंघन न होता हो और बच्चो से खतरनाक कार्य न करवाए जा रहे हो जहाँ उन्हें जान को कोई खतरा और अथवा शारीरिक तौर पर शोषण न होता हो।  

बालश्रम रोकने हेतु हेल्प लाइन न. 1098 से कर सकते है

डॉ शैलेन्द्र पंड्या ने उदयपुर को बालश्रम मुक्त जिला बनाने का आह्वान करते हुए आमजन से अपील की है कि यदि कहीं भी बच्चो से बालश्रम होता दिखे तो हेल्प लाइन न. 1098 पर सूचित कर सकते है।  यदि कोई अपना नाम गोपनीय रखना चाहता है तो पूरी गोपनीयता रखी जाएगी। 13 से 20 जून तक चले बालश्रम मुक्त अभियान में जिन लोगो ने सूचना के माध्यम से बालश्रम से अवगत करवाया उन्हें जिला स्तर पर सम्मानित भी किया जाएग।