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मशहूर हिंदी कमेंटेटर पद्म श्री सुशील दोशी के कहानी उन्ही की ज़ुबानी

प्रभा खेतान फाउंडेशन की कलम सत्र के दौरान अपने सफर और क्रिकेट जगत से लेकर वर्ल्ड कप फाइनल तक की चर्चा की

 

उदयपुर 23 नवंबर 2023। प्रभा खेतान फाउंडेशन ने उदयपुर में आयोजित 'कलम' के सत्र में करीब पांच दशकों से हिंदी क्रिकेट कमेंट्री कर रहे पद्म श्री सुशील दोशी जिन्होंने लाखो करोडो क्रिकेट प्रेमियों को आँखों देखा हाल सुनाया है। वहीँ सुशील दोशी के साथ कार्यक्रम में आये हुए आगंतुकों को एक रोमांचक यात्रा पर ले गया। कलम प्रभा खेतान फाउंडेशन की एक पहल है। यह कार्यक्रम श्री सीमेंट्स द्वारा उनकी सीएसआर पहल के तहत होटल रेडिसन ब्लू के आतिथ्य में उदयपुर की एहसास वूमेन के सहयोग से आयोजित किया गया।

इस अवसर पर क्रिकेट में मशहूर हिंदी कमेंटेटर सुशील दोशी ने हिंदी कमेंट्री के प्रसार की भावना को छूने के अपने अनुभवों को साझा किया। वहीँ सुशील दोशी की लिखी आत्मकथा 'आँखों देखा हाल' भी प्रदर्शित की गई। 

उदयपुर टाइम्स की टीम ने जब उनसे पूछा कि आत्मकथा लिखने का ख्याल कब आया तो उन्होंने कहा कि जीवन में अब वह मोड आ गया कि लोगो को अपने सफर से रूबरू करवाया जाये। आत्मकथा तभी लिखी जाती है जब व्यक्ति अपनी कमज़ोरियों को भी स्वीकार करे इस आत्मकथा में उन्होंने अपनी सभी कमज़ोर पहलु का भी ज़िक्र किया है। उन्होंने कहा कि जब आप यह किताब पढ़ेंगे तो लगेगा की आप कमेंट्री सुन रहे है। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में उन्हें बहुत वक़्त मिला जब बहुत कम मैच खेले गए तब उन्होंने खाली समय में यह आत्मकथा लिखी।    

सुशील दोशी की 'आँखों देखा हाल' नामक आत्मकथा क्रिकेट जगत से जुड़े मशहूर क्रिकेटरों गावस्कर, सर विवियन रिचर्ड्स, कीथ मिलर से लेकर सचिन, धोनी और कोहली से जुड़े किस्सों और खेल जगत की अंदरूनी कहानियो से आपको रूबरू करवाती है। यह आत्मकथा बताती है कि क्रिकेट और हिंदी कमेंट्री ने कैसे एक दूसरे के सहारे लोकप्रियता हासिल की।    
 कैसे शुरू की अपनी यात्रा 

सुशील दोशी ने बताया कि जब वह मात्र 13 वर्ष की आयु के थे तब उन्होंने मुंबई में मैच देखने की ज़िद की थी लेकिन टिकट नहीं मिला आखिरकार एक पुलिस वाले ने चौथे दिन उन्हें लंच के समय किसी प्रकार ब्रेबोर्न स्टेडियम के अंदर पहुँचाया। जब वह मैदान में पहुंचे तो उन्हें लगा कि मैच देखने का सबसे अच्छा स्थान कमेंट्री बॉक्स है। तब से उन्होंने कमेंट्री बॉक्स में जाने की सोची, लेकिन उन दिनों हिंदी में कमेंट्री नहीं होती थी। 

1968 में जब क्रिकेट बोर्ड ने हिंदी कमेंट्री का निर्णय लिया तब वह 17 वर्ष के थे और इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे तब कमेंटेटर के लिए इंटरव्यू देने गए लेकिन उन्हें बाहर निकाल दिया गया। किस्मत से कोई भी इंटरव्यू देने नहीं पहुंचा तो आयोजकों ने सुशील दोशी को मौका दे दिया और ब्रेबोर्न स्टेडियम से उनका सफर शुरु हुआ जो कि इतिहास बन गया। हालाँकि उनकी पहली कमेंट्री की अखबारों में जमकर आलोचना हुई जिससे उनका मन भी दुखी हुआ लेकिन उन्होंने आलोचना से हार न मानते हुए अपना सफर जारी रखा। उन्होंने माना कि वे बहुत होशियार नहीं थे, लेकिन ईश्वर के आशीर्वादों से उन्हें बहुत मौके मिले।    

उन्होंने कहा, "कमेंट्री का मतलब सत्य बोलना और खेल को महसूस करना है।" उन्होंने कहा की जब आप सफल होते हैं, तब ही दुनिया आपकी बातें सुनती है। उन्होंने बताया कि  उस समय हिंदी में स्क्वेयर लेग और फाइन लेग के लिए शब्द नहीं थे, उन्होंने हिंदी में यह शब्द पेटेंट कर दिया।

अपना एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया 1977 में, उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लिए टेस्ट सीरीज़ मैचों के लिए तीन महीने के लिए गए थे, जहां किसी ने अंग्रेजी के अलावा किसी भी भाषा में कमेंट्री सुनी नहीं थी। जब वह कमेंट्री कर रहे थे तब ऑस्ट्रेलियन आल राउंडर कीथ मिलर ने जिन्हे हिंदी समझ नहीं आती थी फिर भी उनके बोलने की गति और लय से प्रभावित होकर तारीफ़ की थी जिनका ऑस्ट्रेलियन मीडिया में कवर भी किया गया।      

राजस्थान के प्रतापगढ़ ज़िले में जन्मे और मध्य प्रदेश के इंदौर में पले बढे सुशील दोशी ने बताया कि वैसे तो वह बड़े नर्वस किस्म के व्यक्ति है लेकिन जब माइक्रोफ़ोन के सामने, उनका रूप बदल जाता था और उन्हें भावनाओं से भर जाता था। उन्होंने बताया की एक बार इंदौर के एक प्रोग्राम में महान क्रिकेटर सैयद मुश्ताक अली ने हज़ारो की भीड़ के सामने कहा की ऊपर वाले ने लता मंगेशकर को गीत गाने के लिए, उन्हें (मुश्ताक अली को) बल्लेबाज़ी करने के लिए और सुशील दोशी को हिंदी में कमेंट्री करने के लिए भेजा है। 

हाल ही सम्पन्न हुए वर्ल्ड कप फाइनल (World Cup final) का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत को दिमाग से हराया है भारत की टीम पिच को पढ़ ही नहीं पाई। ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज़ो ने इस पिच पर जो की कभी कम तो कभी ज़्यादा उछाल दे रही थी उस पिच पर शार्ट पिच गेंदों पर फंसाया लेकिन ऑस्ट्रेलिया की टीम बल्लेबाज़ी को उत्तरी तो पिच का न सिर्फ व्यवहार बदल गया बल्कि ओस ने भी बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि पिच भारत के लिए सही नहीं था, हमें फाइनल गेम मुंबई के वानखेड़े या कोलकाता के ईडन गार्डन में रखना चाहिए था। 

उन्होंने विराट कोहली का ज़िक्र करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपने छोटे परिवार से निकलकर दिल्ली में हर दिन स्कूटर पर सफर कर रणजी में अपनी पहली मैच में विफलता के बावजूद खेलना जारी रखा। रणजी के दूसरे मैच में जब तीसरे दिन क्रीज़ पर विराट मौजूद थे लेकिन चौथा दिन शुरू होने से पहले उनके पिता की मौत के बावजूद खेलना जारी रखा और कर्नाटक के खिलाफ 97 रन बनाकर दिल्ली को हार से बचाया। हलांकि इसी मैच में 97 रन पर उन्हें अंपायर के गलत निर्णय का शिकार भी होना पड़ा। 

दिन के पंद्रह रुपये मेहनताना से लेकर आज दिन के 65 हज़ार मेहनताना का सफर तय करने वाले सुशील दोशी ने बताया की आज के युग में कमेंट्री के लिए हिंदी के एक्सपर्ट को नहीं बल्कि नामी पूर्व खिलाड़ियों को बुलाया जाता ही ताकि टीआरपी बरकरार रहे। हालंकि कुछ क्रिकेटरों को खेल की समझ होने वह  बेहतर कमेंट्री करते है लेकिन कई बार ऐसे पूर्व क्रिकेटर जिन्होंने मैदान में कुछ नहीं किया वह भी एक्सपर्ट खिलाड़ियों के खेल में मीन मेख निकालने लग जाते है। 

सुशील दोशी से साक्षात्कार लेने की ज़िम्मेदारी रिद्धिमा दोशी ने निभाई जबकि स्वाति अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया और मुमल भंडारी ने आभारी नोट दिया। कार्यक्रम की मेजबानी रैडिसन ब्लू हॉटेल्स ने की।