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श्रद्धांजलि: भारत में हरित क्रांति के जनक, प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन

नाज़ हैं भारत को ऐसे माटी के लाल पे, जिसने बचपन में युवाओं के सपनों का भारत में निबंध में लिखा था की मेरा सपना हैं यहाँ कोई भूखा ना रहे और उसको चरितार्थ करके दिखा दिया।

 
Content and Imagery by Dr. Kamal Singh Rathore, BN University, Udaipur

प्रो. मेनकोंबू संबाशिवन स्वामीनाथन, एक प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक और भारत की हरित क्रांति के पीछे प्रेरक शक्ति का गुरुवार 28 सितम्बर 2023 को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

आपका जन्म कुम्भकोणम, तंजौर, तमिलनाडु में 7 अगस्त 1925 को एम.के संबाशिवन और पार्वती थैंगमल सम्बशिवन के यहाँ द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ था। इनकी शिक्षा केरल विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट, वेजनिंगेंग यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और विस्कोसिन यूनिवर्सिटी में हुई थी। इन्होंने इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट में शिक्षक (1954-1972] के रूप में अपना कैरियर शुरू किया तथा इंडियन कॉउन्सिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च (1972-1980)और इंडियन राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट (1982-1988) के निदेशक के पद पर कार्य किया और कई इबारते स्थापित की। 2004 में आपको नेशनल कमीशन फॉर फार्मर्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा "आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक" के रूप में जाने जाने वाले और भारत में हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन के 1960 और 1970 के दशक में अभूतपूर्व कार्य ने भारतीय कृषि में क्रांति ला दी, जिससे देश को व्यापक अकाल से निपटने और खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिली।

स्वामीनाथन के अग्रणी प्रयासों में गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास और परिचय शामिल था, जिससे पूरे भारत में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
एम एस स्वामीनाथन ने बहुत सी पुस्तकें लिखी थी उनमे से कुछ प्रमुख : बायोडाइवर्सिटी, इम्प्लिकेशन्स फॉर ग्लोबल फूड सिक्योरिटी, प्लांट्स एंड सोसाइटी, टुवर्ड्स ए हंगर फ्री वर्ल्ड, एग्रीकल्चर कांट वेट इत्यादि है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, "हमारे देश के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में, कृषि में उनके अभूतपूर्व काम ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और हमारे देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। सोशल नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म अनगिनत वैज्ञानिकों और नवप्रवर्तकों पर निशान।"

कृषि के प्रति उनके अभिनव दृष्टिकोण, स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों की गहरी समझ के साथ आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के संयोजन ने अनगिनत कम आय वाले किसानों के जीवन को बदल दिया और देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान दिया।

उनके उल्लेखनीय योगदान के सम्मान में, स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने पुरस्कार राशि का उपयोग चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना के लिए किया, जिससे टिकाऊ और समावेशी कृषि प्रथाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और मजबूत हुई।

उनकी अन्य उल्लेखनीय प्रशंसाओं में 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार, 1999 में इंदिरा गाँधी पुरस्कार,2000 में फ्रीडम फ्रॉम वांट पुरस्कार, 2013 में इंदिरा गाँधी शान्ति पुरस्कार, शान्ति स्वरुप भटनागर पुरस्कार शामिल हैं। उन्होंने एम एस स्वामीनाथन फाउंडेशन, चेन्नई और इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर दी सेमी एरिड ट्रॉपिक्स की भी स्थापना की थी।

भारत में अपने काम के अलावा, स्वामीनाथन वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, जिन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कृषि और पर्यावरण पहल में योगदान दिया। टाइम पत्रिका द्वारा उन्हें 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक नामित किया गया था, जो उनके दूरगामी प्रभाव को दर्शाता है। उन्हें 1967 में पद्म श्री, 1972 में पद्म भूषण  और 1989 में पद्म विभूषण  अलंकरण से नवाज़ा गया था। वें राज्य सभा में नामित सांसद भी रह चुके हैं। एम एस स्वामीनाथन के परिवार में उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन और तीन बेटियां सौम्या, मधुरा और नित्या हैं। सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन में उप निदेशक के पद पर वर्तमान में आसीन हैं।

उनका निधन भारतीय कृषि में एक युग का अंत है। एक अपूरणीय क्षति हैं। नाज़ हैं भारत को ऐसे माटी के लाल पे, जिसने बचपन में युवाओं के सपनों का भारत में निबंध में लिखा था की मेरा सपना हैं यहाँ कोई भूखा ना रहे और उसको चरितार्थ करके दिखा दिया।