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उदयपुर वन विभाग द्वारा कथौडी श्रमिक परिवारों को कम्बल वितरण एवं बच्चों को प्राथमिक अध्ययन की पहल

कथौडी श्रमिक प्रमुख रूप से झाडोल तहसील के ग्राम ओगना, पडावली, समीजा, कुकड़ाखेडा, रोहिमाला एवं बिरोठी में निवास करते हैं, जो अक्टूबर से मार्च माह तक लगभग 6 माह बांस कूपों में अपने परिवारों सहित प्रवास पर रहते हैं। बांस विपनन से राज्य साकार को प्रतिवर्ष रु 3 करोड़ से अधिक की आय भी होती है।
 

वन विभाग के विभागीय कार्य मंडल द्वारा वर्तमान में कोटडा-देवला के सुन्दर जंगलों में अक्टूबर से मार्च माह में बांस विदोहन कार्य किया जा रहा है। इस अवधि में झाडोल तहसील के कथौडी श्रमिक परिवार अपने बच्चों सहित जंगलों के बीच में ही अस्थाई झौपें बनाकर डेरों के रूप में रहते हैं। उप वन संरक्षक, विभागीय कार्य मंडल, उदयपुर अशोक महरिया द्वारा पहल करते हुए समाज के इस पिछड़े वर्ग को संबल देते हुए श्रमिक कल्याण हेतु बांस कूपों में विशेष प्रावधान किया गया।

बांस विदोहन का कार्य इन जंगलों में अक्टूबर से मार्च माह तक चलता है। यह कार्य बनास विदोहन में दक्ष कथौडी श्रमिकों के साथ-साथ स्थानीय श्रमिकों द्वारा भी किया जाता है। कथौडी श्रमिक प्रमुख रूप से झाडोल तहसील के ग्राम ओगना, पडावली, समीजा, कुकड़ाखेडा, रोहिमाला एवं बिरोठी में निवास करते हैं, जो अक्टूबर से मार्च माह तक लगभग 6 माह बांस कूपों में अपने परिवारों सहित प्रवास पर रहते हैं।

इस अवधि में यह कथौडी परिवार अपने बच्चों सहित जंगलों के बीच में ही अस्थाई झौपें बनाकर डेरों के रूप में रहते हैं।

उप वन संरक्षक, विभागीय कार्य मंडल, उदयपुर अशोक महरिया द्वारा पहल करते हुए उन्होंने श्रमिकों हेतु जंगल में ही प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था करवाने के साथ-साथ कथौडी परिवारों के बच्चों के लिए प्राथमिक अध्ययन की भी व्यवस्था करवाई।

साथ ही सर्दी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए सभी श्रमिक परिवारों को उच्च गुणवत्ता में ऊनी कम्बल भी प्रदान किए जाने की व्यवास्था की गई। कुल 180 कथौडी परिवार वर्तमान में जंगलों के बीच बांस विदोहन हेतु कार्यरत हैं – इन सभी परिवारों को कम्बल प्रदान किया जाना है। कम्बल वितरण कार्यक्रम विभिन्न बांस कूपों में दिनांक 29 दिसंबर 2020 से सहायक वन संरक्षक संजय कुमार गुप्ता की उपस्थिति में प्रारम्भ किया गया।

उल्लेखनीय है कि बांस विदोहन कार्य, विभागीय कार्य मंडल द्वारा प्रतिवर्ष वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा स्वीकृत कार्य आयोजन / कार्य स्कीम के अनुसार राज्य सरकार की स्वीकृति प्राप्त होने पर करवाया जाता है।

इन कार्यों पर लगभग 200 कथौडी परिवार एवं 300 स्थानीय आदिवासी परिवार आश्रित हैं। इसके साथ ही बांस विपणन से प्रतिवर्ष राज्य सरकार को रु. 3 करोड़ से अधिक की आय भी होती है।