लोहा बाज़ार का लोहा मानता है उदयपुर का व्यापार जगत...एक कहानी...
उदयपुर का लोहा बाज़ार इस शहर के सबसे पुराने व्यापार मंडल में गिना जाता है। उन्नीसवी सदी में स्थापित हुए इस व्यापार क्षेत्र की रचना अपने आप में एक दिलचस्प कहानी है, जिसे उदयपुर टाइमस की टीम (आसिया, फर्हीना) ने आप तक लाने की कोशिश की है। व्यापार की दृष्टि से भारत समेत दुसरे देशों में भी इसका ज़िक्र आता है। इस पोस्ट के ज़रिए हम झीलों की नगरी उदयपुर के लोहा बाज़ार की कुछ ऐसी जानकारी और तथ्यों से आपको अवगत करवाएंगे जिनमें आपको कई रोचक जानकारी प्राप्त होगी।
स्थापना और इतिहास
दरअसल लोहा बाजार की स्थापना भारत में ब्रिटिश राज के चलते ही हो चुकी थी हो चुकी थी, परन्तु उस समय यह आवासीय क्षेत्र हुआ करता था। लोहा बाज़ार उदयपुर के मध्य स्थित चमनपूरा क्षेत्र का अहम् हिस्सा है। उदयपुर की ऐतिसाहिक "वाल्ड-सिटी" के हाथीपोल दरवाज़े से सटा हुआ चमनपूरा उस ज़माने में शम्शेरगढ़ के नामे से जाना जाता था। शमशेरगढ़ के पुराने किले (जिसके मध्य आज मोडल स्कूल चलता है) मौजूद हैं और उस पुराडी दास्ताँ को ओढ़े हुए हैं। शमशेरगढ़ के आस पास के जंगल उदयपुर की शाही विरासत का हिस्सा हैं। इन जंगलों में उस समय के शाही परिवार के लोग शिकार करने आते थे।
दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगो की उद्द्यामिता से यहाँ कच्चे लोहे का व्यापार शुरू हुआ था। इस समुदाय की उस वक्त यहाँ 20-22 दुकान हुआ करती थी। उस ज़माने में भी इस बाजार का आधिपत्य प्रतिष्ठान दाउदी बोहरा समाज के लोगो के पास था और आज भी इस बाजार में इसी समुदाय के लोगो का अधिपत्य है। इस इलाके को चमनपुरा नाम दाऊदी बोरह समुदाय के धर्मगुरु स्येदना ताहिर सैफुद्दीन ने दिया था। हाथीपोल से शुरू होकर शिक्षा भवन चौराहे के बीच चमनपुरा में स्थित लोहा बाज़ार का उदयपुर की अर्थव्यवस्था में अमूल्य योगदान रहा है, जिसकी मिसाल आज भी कायम है।
इस बाज़ार के बारें में और जानकारी हासिल करने के लिए जब उदयपुर टाइम्स की टीम इस बाजार में पहुंची तब वहां हमने उन व्यापारियों से गुफ्तगू की जिनके करूबार यहाँ सदियों से हैं, और कई पीढियां इस बाज़ार का विकास देख चुकी हैं। हमारी टीम ने उन व्यापारियों से भी बात की जिनकी पहली पीढ़ी इस मार्किट में अपना व्यापार जमाए हुए है।
शनि देव महाराज, मस्जिदें और धार्मिक सौहार्द
इस बाज़ार में सबसे पहले दाऊदी बोहरा समाज के व्यापारी क्यों आए और दुसरे समाज के लोग इस इलाके से क्यों दूर रहें, इसकी भी एक रोचक कहानी है। बंदुकवाला इस्पात प्राइवेट लिमिटेड के मालिक तौकीर बंदूकवाला ने इसका प्रमुख कारण, यहाँ स्थित शनि देव महाराज के मंदिर का होना बताया
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव महाराज एक लोहे के रथ पर सवार थे और इसलिए इसे शुभ माना जाता है। इस तथ्य के कारण, हिंदू इस विशेष बाजार में एक व्यवसाय स्थापित नहीं करना चाहते थे, क्योंकि वे लोहे के व्यापार को बुरा शगुन मानते थे। आज भी शनिदेव के अनुयायी शनिवार को लोहा नहीं खरीदते हैं।
हालाँकि इस व्यापार में अन्य समुदाय भी शामिल हो चुके है। विकास और नयी तकनीकी परिवर्तन के साथ लोहा बाजार ने काफी तररकी की है और दाउदी बोहरा समुदाय के लोग इस व्यापार को पीढ़ी दर पीढ़ी सँभालते आ रहे हैं। इस व्यापार में कई ऐसे परिवार है जिनकी 3 और 4 पीढ़ी भी इस कारोबार में शामिल है।
लोहा बाज़ार की जी छोर पर मस्जिद हैं, वहां एक बरसों पुराना कब्रस्तान, एक पुरानी नामी रहमानिया रेस्टोरेंट और उदयपुर का एक मात्र मुस्लिम मुसाफिरखाना (Guest House) भी है।
पुरूष प्रधान बाज़ार में महिलाओं को मौका देने की एक मिसाल
आमतौर पर इस व्यापार में ज़्यादातर पुरुष समाज का योगदान है; आसान शब्दों में कहा जाए तो महिलाये इस व्यापार के क्षेत्र में नहीं है। परन्तु आधुनिक युग में महिलाएं भी हर क्षेत्र में है। पिछले 13 साल से सनवा इंटरप्राइजेज में अपनी सेवा देने वाली नजमा जावरिया से उदयपुर टाइम्स की टीम ने संवाद किया। नजमा ने अपना अनुभव हमारे साथ साझा करते हुए बताया की महिलाएं भी हर क्षेत्र में जा सकती है; महिलाओ के लिए काम की सीमा नहीं है। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा की जब उन्होंने बाजार में कदम रखा था तब उन्हें इस क्षेत्र का ज्ञान नहीं था, परन्तु आज वो इस कार्य को बखुबी तौर पर अंजाम देती है। सनवा एंटरप्राइजेज के संचालको जावेद नाथ और फिरोज नाथ ने एक महिला कर्मचारी को फ्रंटलाइन टीम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करके सामाजिक और व्यापारिक समुदाय के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। वह पूरे बाजार में काम करने वाली एकमात्र महिला हैं। उसके लिए बहुत ही सुरक्षित, स्वस्थ और सहायक कार्य वातावरण प्रदान किया गया है। मेहनताने में भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि एक महिला कर्मचारी की उपस्थिति परिणामस्वरूप फर्म के लिए अधिक सकारात्मकता है।
लोहा बाजार की सबसे पहली कंपनी में से एक, 1898 में स्थापित गुलाब बोहरा एंड कंपनी है। इस फर्म की शुरआत गुलाम हुसैन मुल्ला अली जी ने की थी। वह गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करते थे और उनसे लोहे का स्क्रैप खरीदते थे। समय के साथ उनकी दुकान "गुलाब जी का बाड़ा" नाम से प्रसिद्ध हो गई। उनकी उदारता के परिणामस्वरूप महाराणा फतेह सिंह जी ने उन्हें "थां गुलाम कोणी, ठाणे तो गुलाब जू महेक्नों है" (आप गुलाम नहीं हैं, आप गुलाब की तरह खुशबु देने वाले शख्स हैं) जैसे वाक्यांश का इस्तेमाल किया। इस वाक्य से दिग्गज फर्म गुलाब बोहरा की शुरुआत हुई। उनके बेटे अली मोहम्मद जी ने तब उनका व्यवसाय संभाला। वे मेवाड़ के शाही परिवार को हार्डवेयर, सैनिटरी उपकरण और अन्य सामान्य वस्तुओं की आपूर्ति करते थे। 1920-30 में वे ब्रिटिश रेलवे परियोजनाओं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता थे।
आज 2021 में, 121 सफल वर्षों के पूरा होने के बाद, गुलाब बोहरा अभी भी प्रसिद्ध हैं और अभी भी इस बाजार के किंग कहे जाते हैं। आज लोहा बाजार में उनकी कुल सात दुकानें हैं। वर्तमान में, उनकी 5 वीं पीढ़ी परिवार इस विरासत को आगे बढ़ा रही है। अब्बास अली (गुलाब बोहरा पावर टूल्स एंड मशीनरी के मालिक) के अनुसार, इस बड़ी सफलता के पीछे, उनके पूर्वजों द्वारा रखी गई दृष्टि है जो अभी भी मज़त है। अर्थात पहले, निरंतर नवाचार लाना (इनोवेशन); दूसरा, उत्कृष्ट गुणवत्ता प्रदान करना और कभी भी क्वालिटी से समझौता न करना।
1950 में लोहा बाजार में पहली बार हैंडलूम वायर की निर्माण इकाई शुरू हुई। 10 साल बाद, 1960 में वजन और नापतौल के साधन पेश किए गए थे। इस आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप विकास ने गति पकड़नी शुरू कर दी, बाजार फल-फूलने लगा। इस बाजार से अजमेर और चित्तौड़गढ़ तक लगभग 100 किलोमीटर तक लोहे की सामग्री की आपूर्ति की जाती थी। आज लोहे की कीमतें 20-22 गुना अधिक हैं और भारत लोहे और इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
उस समय ज्यादातर परिवहन घोड़ागाड़ी और बसों के माध्यम से किया जाता था। हाथीपोल, लोहा बज़ार के पास का इलाका तांगा स्टैंड के रूप में इस्तेमाल होता है और यहाँ उदयपुर का एकमात्र बस स्टैंड भी था। सन 1976 में बदलते समय की ज़रूरत के अधीन इस बस स्टैंड को पूरी तरह से हटा दिया गया था। हामिद हुसैन गुरावाला (रॉयल आयरन ट्रेडर्स के मालिक) ने बताया की तब "चमन होटल" मांसाहारी खाने के शौकीनों के लिए चमनपुरा के पूरे क्षेत्र में एकमात्र होटल था। इसके अलावा एक खुले शौचालय था जिसे बाद में ढँक दिया गया था वर्तमान में यहाँ अब बाजार और मकान बन गए हैं।
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पहली पीढ़ी के व्यापारी
समय के साथ नई पीढियां भी इस व्यापार में उतरी और अपना वर्चस्व जमाया। इन व्यापारियों ने अपनी कुशलता और महनत से न तो सिर्फ व्यक्तिगत रूप से अपने आप को समृद्ध बनाया बल्कि साथ-साथ कई लोगों को रोजगार भी दिया ताकि शहर के कई परिवारों की रोज़ी रोटी का ज़रिया बने।
पहली पीढ़ी के बड़े व्यापारियों में एक नाम कत्थावाला ट्रेडर्स का है, जो की 38 साल से इस बाज़ार में अपना वर्चस्व बनाए हुए है। जनवरी 1983 में शुरू हुई कथावाला ट्रेडर्स आज नट बोल्ट एवं पॉवर टूल्स में विशेषता रखते हैं।
70 साल पुरानी सादिक अली मुल्ला अली मोहम्मद के रस्सियों का व्यापार भी अपने आप में अनूठा है। कच्चे लोहे और हार्डवेयर के इस मार्किट में रस्सियों और नेट का व्यापार चला कर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है जिसका वर्चस्व 7 दशक बाद आज भी कायम है।
लोहा बाजार की बाजार संरचना
लोहा बज़ार में कुछ बड़ी फर्में हैं और बड़ी संख्या में कई मध्यम वर्ग के व्यापारी हैं। छोटी बड़ी सभी फर्में एक दूसरे पर अत्यधिक निर्भर हैं। व्यक्तिगत रूप से बड़ी फर्म कुछ चुनिन्दा क्षेत्रों में हावी हैं। उनमें से कुछ हैं गुलाब बोहरा एंड कंपनी, सनवा एंटरप्राइजेज, बन्दूकवाला इस्पात प्राइवेट लिमिटेड, कत्थावाला ट्रेडर्स, सादिक अली मुल्ला अली मोहम्मद (रस्सावाला), कादर रसियाजी वाला परिवार, अग्रवाल बीटी एन्ड संस, रॉयल आयरन ट्रेडर्स, यूनाइटेड आयरन ट्रेडर्स, अजंता आयरन, सैफी स्टील, सनवाड़ी वाला परिवार, क्वालिटी आयरन, हिन्द मशीनरी, आदि। इन सभी ने इस बाजार को सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।
कत्थावाला ट्रेडर्स के पार्टनर अबरार कत्थावाला ने बाते की अनुमान के अनुसार, बाज़ार का सालाना कारोबार Rs. 250-300 करोड़ का, है जो की शहर की अर्थव्यवस्था चलाने में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है। वहीँ उदयपुर से सरकार को जीएसटी की भी एक महत्वपूर्ण और बड़ी मात्रा की राशि लोहा बाज़ार से जाती है जो यहाँ के व्यापारियों को ईमानदार करदाताओं की श्रेणी में लाती है।
अबरार ने बताया की यह बाज़ार कच्चा लोहा और हार्डवेयर में विभाजित है। इस बाजार में वे प्रोडक्ट भी बिकते है जिनका इस्तेमाल औद्योगिक इकाइयों और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में होता है। जैसे मशीन टूल्स, बेयरिंग्स, मार्बल कटर्स ब्लेड इत्यादि जिसमे चुनिन्दा उत्पादों में कुछ फर्मो का एकाधिकार (मोनोपॉली) भी है। वहीँ हार्डवयेर मार्केट में अधिकतर उत्पाद नॉन इंडस्ट्रियलिस्ट है जैसे लॉक्स, लक्ज़री टूल्स, घरो में और रेगुलर इस्तेमाल होने वाली चीज़े शामिल है।
इस में मुख्य समस्या यह है की इस बाजार में ज़्यादा कच्चे लोहे का व्यापार है। बाहर से मंगवाया जाने वाले माल के अवागमन में बहुत सी बार कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। क्योकि बाजार में आयात किए गए लोहे के साधन गंतव्य स्थान तक नहीं पहुँच पाते। उदाहरण के लिए सड़को पर भारी माल वाहन माल वर्जित होता है इन कारणों की वजह से संसाधनों की कमी व इन परेशानियों से बचने के लिए लोहा बाज़ार के कच्चे लोहे के अधिकतर कारोबर्रियों ने अपना गोडाउन और बैठक सुखेर और मादड़ी जैसे औध्योगिक क्षेत्रों में स्थित कर दिया गया। इसके चलते, इन जगहों पर व्यापार से काफी हद तक परेशानिया कम हुई है। आयात निर्यात का व्यय भी काम हो गया है।
समय परिवर्तन के साथ इस बाज़ार के व्यापार को बहुत उन्नति मिली क्यूंकि गाँवों में भी पक्के माकन बनने लगे है, औद्योगिक इकाईयां लगने लगीं, उदयपुर के आस पास फैले टूरिस्ट स्थानों पे होटलें बन्ने लगीं, जिसके कारण कच्चा लोहा, हार्डवेयर की मांग बढ़ गयी। अगर सरल भाषा में कहा जाए तो लोहा बाजार की अर्थव्यवस्था में संपूर्ण प्रतियोगिता (perfect competition), एकाधिकार प्रतियोगिता (monopolistic competition) और साथ ही कुलीनता/अल्पाधिकार (oligopoly) का तत्व है।
प्रतिस्पर्धा या सहकारिता
जब फर्म एक दूसरे पर निर्भर रहती है तब फर्मो के पास दो विक्लप होते है या तो उनके पास दो विकलप होते है। पहला आपस में प्रतिस्पर्धा और दूसरा, आपस में सहकारिता। यदि वह पहला विकलप चुनते है तो अपने प्रतिद्वंदी की कीमत पर स्वयं का मार्केट शेयर बढ़ा सकते है लेकिन अगर दुसरा चुनते है तो मिलकर बाज़ार में संगृहीत मोनोपोली स्थापित कर सकते है।
एक दूसरे पर अत्यधिक निर्भर होने का अर्थ है की प्रतिद्वंदी के अनुसार अपने उत्पाद के कीमतों को बदलना। उदाहरण के लिए लॉक्स, लोहे के सरिये, लोहे की चादर (आयरन शीट) की कीमतों को कोई एक फर्म बदलती है तो अन्य फर्में भी अपने मूल्य दर में परिवर्तन लाती है। एक अनौपचारिक समझौते में कम्पनिया एकाधिकार के रूप से व्यवहार करती है। इस बाजार के साथ बडी समस्या यह भी है की इसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा है। प्रतिस्पर्धा नवीनीकरण, ग्राहक सेवा, उत्पाद की गुणवता आदि के आधार पर नहीं है, बल्कि बाज़ार में कीमतों के आधार पर प्रतिस्पर्धा चलती है।
उदाहरणार्थ वैश्विक महामारी (कोरोना) से पूर्व बाजार में एक व्यापारी द्वारा एक नया प्रोडक्ट बाजार में लाया गया। नए उत्पाद के आने के कारण अन्य व्यापारीयों के बीच आपसी सामंजस्य व सहयोग न होने के कारण उस नए उत्पाद में होने वाले मुनाफे में अत्यधिक गिरावट आ गयी। इस व्यापार में दूसरा मुद्दा यह भी है की नवीन विकास व इंटरनेट के योगदान और सूचना की उपलब्धता के कारण ग्राहक, कीमत से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने में सक्षम है। इंटरनेट पर मौजूद जानकारी से ग्राहक को उतपाद की कीमतों का तो अंदाजा हो जाता है, लेकिन इंटरनेट पर मौजूद जानकारी से उत्पाद की गुणवत्ता और उत्पाद की उपयोगिता पर फैसला नहीं ले सकते। ऐसे में ग्राहक एवं व्यापारी, दोनों को अवसर लागत (opportunity cost) का नुक्सान होता हो।
चुनोतियो में छिपे अवसर
वर्तमान दौर में लोहा बाजार अब आने वाली नई फर्मों को नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चूँकि लोहा व्यापार अपने आप में बहुत बड़ा व्यापार है, इसमें निवेश करने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश करनी पड़ती है। पहले एक बड़ी लागत में पूंजी निवेश करना और दूसरी और व्यापार के लिए स्थायी रूप से खुद की दूकान का होना, जिससे कि पूर्णतः व्यापर में लाभ को अर्जित किया जा सके, क्यूंकि इन निवेश में स्वयं का स्वामित्व रहता है। किसी भी फर्म को शुरू करने से पहले प्राम्भ से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्यूंकि इसमें माल रखने लिए लिए गोदाम, स्टॉक-स्टोर का होना आवश्यक होता है, चूँकि लोहा का व्यापार बड़े पैमाने पर होता है। लोहा एक भारी धातु है जिसे रखने के लिए गोदाम के साथ श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। इस कमी के कारन व्यापारी अपना व्यापार विस्तृत नहीं कर पाते। बड़े पैमाने पर व्यापारियों को बड़े बाज़ारो की आवश्यकता होती है, जो मांग को बढ़ा सके। उदयपुर इस तथ्य के अनुकूल एक छोटा शहर है जिसके कारण सभी व्यापारियों को इस समस्या का सामना करना है। लेकिन जैसे की यहाँ के अनुभवी व्यापारियों ने बताया, सभी को अपना वर्चस्व कायम करने का पूरा मौका मिलता है। फर्क मेहनत और वक़्त का होता है।
इस पूरी पोस्ट को बनाने में जिन लोगो से बात हुई, उसमे यह तो समझ आ गया, की चुनोतियों भरे लोहा बाज़ार में व्यापारियों ने अपनी कामयाबी की कहानी खुद लिखी है। नई पीढि अपने बाप दादाओं के रास्ते पर चलने के लिए तयार हैं। आने वाले दिनों में भी इस बाज़ार का वर्चस्व कायम रहेगा, मगर काम की बढौतरी के लिए यहाँ के व्यापारियों को बाहर निकलना पढ़ेगा और आस पास के बाज़ार पे कब्ज़ा जमाने बाबत औद्योगिक क्षेत्रों में प्रवेश करना पढ़ेगा। लोहा बाज़ार के पुराने और नए, छोटे और बढे व्यापारियों को उनके व्यापार और उदयपुर का कास में महत्वपूर्ण योगदान सराहनीय है।
उदयपुर टाइम्स की टीम अब्बास अली नाथ, अबरार कत्थावाला, हामिद हुसैन गुरावाला, आशिक अली आर वि, अब्बास अली (गुलाब बोहरा), फ़िरोज़ नाथ, अली मज़हर, जावेद नाथ, अराफात हुसैन, मकबूल अहमद, तौकीर बन्दूकवाला, फैसल बन्दूक वाला, आदि का शुक्रिया अता करती है, जिन्होंने जानकारी मुहैय्या कराई।