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बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने पहुंची लद्दाख के नून कुन के माउंट कुन पर उदयपुर की पर्वतारोही: रुचिका जैन

2022 में दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट फ़तेह करना चाहती है

 
यह उदयपुर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान के लिए गर्व की बात है की लड़कियों में से राजस्थान की केवल एक बालिका और देश में सिर्फ 12 पर्वतारोहीयों में से सिर्फ 6 लोगो ने इस कार्य को पूर्ण किया है।

बालिका शिक्षा एक शिक्षित समाज और बढ़ते समाज के लिए एक आधारभूत नीव है।  इसी नींव को बनाये रखने और समाज और जन हित में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उदयपुर की पर्वतारोही रुचिका जैन ने लद्दाख के सबसे ऊँचे पर्वत नून-कून के माऊंट कून की 6500 मीटर (21325 फ़ीट) चढाई पूरी की।  माउंट कुन का शिखर 7077 मीटर है। सुनने से ही लग रहा है की रुचिका जैन ने इस यात्रा को पूरी कर एक बहुत ही साहसिक कार्य किया है जिसमे उनका उद्देश्य था बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिले। यह उदयपुर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान के लिए गर्व की बात है की लड़कियों में से राजस्थान की केवल एक बालिका और देश में सिर्फ 12 पर्वतारोहीयों में से सिर्फ 6 लोगो ने इस कार्य को पूर्ण किया है। 

उदयपुर से लद्दाख का सफर 

जानकारी के लिए बता दें की रुचिका जैन ने इस यात्रा का आगाज़ 22 अगस्त  2021 को किया जो की 12 सितंबर को अंजाम पर पहुंचा। यह सफर राजस्थान के उदयपुर जिले से शुरू होते हुए दिल्ली, श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर ), कारगिल (लद्दाख) तक चला जहाँ लगभग माइनस 30 का तापमान और खड़ी चढ़ाई का कठिन सफर रहा।

जैसे जैसे लद्दाख की ऊंचाई की और जाते वैसे ही वहां के ऑक्ससीजन में कमी आती है ऐसे कठिन परिस्थिति में भी पर्वतरोहिणी रुचिका जैन ने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की प्राप्ति की और बढ़ती चली गयी। राह में भोजन की बात की जाए तो पैक्ड फ़ूड का सहारा था और बर्फ का पिघला पानी ही पीने के लिए उपलब्ध था। 

बेसिक माउंटटेनियरिंग का किया था कोर्स 

रुचिका जैन ने बताया की उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक माउंटेनियरिंग का कोर्स 2019 में पूरा किया था। जिसके बाद लद्दाख की सबसे कठिन चादर ट्रेक -35 डिग्री और साथ ही 8 हिमालयन माउंटेन एक्सपीडिशन को पूरा कर चुकी हैं। उन्होंने बताया की उनका अगला लक्ष्य भी बालिका शिक्षा को लेकर है और अपने इसी लक्ष्य को लेकर वह 2022 में दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट फ़तेह करना चाहती है।  


 
इस साहस का श्रेय उन्होंने अपनी माता आशा जैन, पिताजी नरेंद्र हंडावत, भाई उमंग जैन, मामा डॉ जिनेन्द्र शास्त्री, मनोहर शास्त्री और पुरे परिवार और मित्र गण प्रिया सचदेव, नेहा जैन एवं शिवांगी बरोला को दिया जिन्होंने इसका हौसला बढ़ाया और सहयोग दिया।