उदयपुर शहर में एक चाय की थड़ी लगाने वाली महिला के संघर्ष की कहानी
महिला दिवस पर विशेष
प्रत्येक वर्ष 8 मार्च का दिन पूरी दुनिया के लिए बहुत खास होता है। इस दिन ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है। एक ऐसा दिन जब महिलाएं अपनी आजादी का खुलकर जश्न मनाती हैं। यह दिवस इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज की महिला पुरुषों से पीछे न रहते हुए अपने सपनों की उड़ान भरने में यकीन रखती है। जीवन के हर फील्ड में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने और अपने अधिकारों से अनजान महिलाओं को इस संबंध में जागरूक करने के उद्देश्य से ही हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।
आईये जानते है उदयपुर शहर की एसी ही एक महिला की कहानी जो की चाय की थड़ी लगाती है
हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी एक अलग जगह बना रही हैं। हम आज जिस महिला की बात करेंगे। उदयपुर में नीमच खेड़ा मार्ग की रहने वाली महिला एक चाय का ठेला लगाती हैं। 27 वर्षीय नेहा दर्जी कहती हैं कि पहले मैं किसी की बेटी, बहन, पत्नी और माँ के नाम से पहचानी जाती थी लेकिन अब मुझे मेरे काम और मेरे नाम की पहचान मिल गयी है। यह उनके लिए बहुत खुशी की बात है।
नेहा को शुरूआत में कई दिक्कतो का सामना करना पड़ा
नेहा कहती है की महिला होते हुए उनके पास पैसे कमाने के और भी तरीके थे। लेकिन वे अपने मेहनत के कमाई से अपना,अपने बच्चो का भरण-पोषण करना चाहती थी। वे बताती है की पहले हॉस्पिटल में केयर टेकर, वार्ड लेडी और हाउसकीपिंग का काम करती थी। लेकिन उनको 4 महीने का वेतन कंपनी ने नही दिया। तो फिर उन्होंने सोच लिया की अब जॉब करने से कोई मतलब नही है क्यूंकि कभी वेतन कम मिलता है, तो कभी वेतन लंबे समय तक देते ही नही है। फिर उन्होंने टफन ग्लास बेचने का काम शुरू किया उन्होंने यह काम कंपनी से सीखा था। वह तीन साल से यह काम करती है और साथ में कोस्मेक्टिक भी बेचती है।
हाल ही में उन्होंने चाय का ठेला खोलने का काम शुरू किया है। इनके पति कूरियर डिलीवरी का काम करते है। और इनके चार बच्चे है 2 बेटे और 2 बेटियाँ है । नेहा बताती है की घर में एक इंसान के कमाने से घर का खर्चा नही निकलता है। आज के महंगाई के जमाने में बच्चो की पढाई,उनकी जरूरते,घर का रेंट और अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने सोचा की क्यों ना टफन ग्लास बेचने के साथ वह एक चाय का ठेला भी लगाए जिसे वह भी अपने बच्चो के बेहतर भविष्य के लिए और मेहनत कर सके।
उन्होंने पिछले हफ़्ते से पुरी और सब्ज़ी बना के बेचने का भी काम शुरू किया है। इसमें वे 9 पुरी के साथ सब्ज़ी मात्र 30 रूपए में बेचती है,इसमें जो मजदूर व गरीब लोग होते है तो दो रोटी में उनका पेट नही भरता है। इसी बहाने उनको भी सुविधा हो गई। और आर्थिक रूप से मेरी साहयता हो गयी। नेहा कहती है की मुझे शुरू से आत्मनिर्भर रहना पसंद है, मुझे किसी की गुलामी कर पैसे नही कमाने है, ना ही किसी से मांग कर अपने बच्चो व घर को चलाना है। इमानदारी से काम कर अपने बच्चो को पढ़ना है। तो यह थी उदयपुर शहर में चाय का ठेला चलानी वाली नेहा दर्जी की कहानी ।