गाज़ा: युद्ध और इंसानियत की पुकार
सबसे भयानक हकीकत यह है कि भूखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं का पतन गाज़ा को घेर चुका है
October 05, 2025: गाज़ा में चल रहा संघर्ष अब केवल खबर का विषय नहीं रह गया है, बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक गहरा कलंक बन चुका है। महीनों की निरंतर बमबारी और घेराबंदी ने इस पट्टी को खंडहरों में बदल दिया है और यहाँ रहने वाले लाखों लोगों के जीवन को पूरी तरह से छीन लिया है। आज लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं, लेकिन सुरक्षित जगह कहीं नहीं है। मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या भयावह है, और सबसे दुखद बात यह है कि इनमें बच्चों और महिलाओं का अनुपात अत्यधिक है — जो युद्ध के नियमों और मानवता का खुला उल्लंघन है।
सबसे भयानक हकीकत यह है कि भूखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं का पतन गाज़ा को घेर चुका है। मानवीय सहायता की आपूर्ति इतनी कम है कि बड़े हिस्से, विशेषकर उत्तरी क्षेत्र, भयंकर अकाल के कगार पर हैं। लोग भोजन, पानी और दवा के लिए तरस रहे हैं। अस्पताल, जो जीवन के प्रतीक हैं, वे ईंधन, दवाइयों और उपकरणों की कमी के कारण केवल मृत्यु-शैया बन चुके हैं, या फिर नष्ट कर दिए गए हैं। लाखों लोग, जिन्हें दक्षिणी क्षेत्रों, जैसे रफ़ाह, में विस्थापित किया गया है, अत्यधिक भीड़भाड़ और लगातार सैन्य कार्रवाई के खतरे के बीच जीवन यापन कर रहे हैं। यह वह सज़ा है जिसके वे हकदार नहीं हैं।
वर्तमान स्थिति: मानवतावादी प्रयास और चुनौती
कुछ दिन पहले, कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और देश गाज़ा में मानवीय सहायता पहुँचाने के प्रयास में लगे थे। वैश्विक “Sumud Flotilla” के जहाज भोजन, दवा और आपूर्ति लेकर तट की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन अधिकांश को इज़राइल की नौसेना ने रोक दिया। आखिरी जहाज, “Marinette,” को भी गाज़ा तट से केवल 42.5 नाव्टिकल मील दूर रोका गया। अभी तक कोई विश्वसनीय पुष्टि नहीं है कि कोई जहाज सफलतापूर्वक गाज़ा पहुँच पाया। यह दिखाता है कि मानवीय प्रयासों को भी सुरक्षा और राजनीतिक अवरोधों के कारण गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
वैश्विक निष्क्रियता: राजनीति बनाम इंसानियत
यह और भी निराशाजनक है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस भयावह स्थिति के सामने लगभग पंगु बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे महत्त्वपूर्ण मंचों पर स्थायी युद्धविराम के प्रस्ताव बार-बार वीटो हो रहे हैं। बड़ी शक्तियाँ अपने राजनीतिक गठबंधनों और रणनीतिक हितों में उलझी हुई हैं, जबकि वहाँ तत्काल मानवीय हस्तक्षेप की ज़रूरत है। यह केवल राजनीतिक विफलता नहीं, बल्कि सामूहिक नैतिक पतन भी है।
यदि अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार ऐसे संकटों में लागू नहीं हो सकते, तो उनका अस्तित्व किसलिए है? यह संकट हमें यह साफ़ बता रहा है कि मानव जीवन की क़ीमत कई देशों के लिए केवल राजनीतिक दाँव-पेंचों से कम है।
भारत का नैतिक दायित्व और मध्यस्थता की शक्ति
ऐसे समय में, भारत, जो हमेशा से अहिंसा, शांति और मानवीय मूल्यों का पक्षधर रहा है, की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग कर गाज़ा में मानवीय सहायता पहुँचाने और युद्धविराम के लिए दबाव बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री की आवाज़ वैश्विक स्तर पर सुनी जाती है, और उसका प्रभाव अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी प्रेरित कर सकता है।
इंसानियत की सामूहिक आवाज़
युद्ध केवल बंदूकों से नहीं रुकते। वे तब रुकते हैं जब दुनिया एकजुट होकर इंसानियत की सामूहिक आवाज़ को निर्णायक कार्रवाई में बदलती है। गाज़ा की त्रासदी हमें पुकार रही है — यह समय सिर्फ संवेदना व्यक्त करने का नहीं, बल्कि निर्णायक और मानवीय कदम उठाने का है।
आज हमें चाहिए कि हम गाज़ा के लिए आवाज उठाएँ — भूख से जूझ रहे लोगों के लिए भोजन, बीमारों के लिए दवा और बच्चों के लिए सुरक्षित भविष्य की मांग करें। युद्ध केवल गाज़ा का मामला नहीं है; यह पूरी मानवता की परीक्षा है।
अंत में मैं यही कहूंगा
“भारत और पूरी दुनिया को मिलकर गाज़ा में युद्ध नहीं, बल्कि इंसानियत की रक्षा की पुकार उठानी होगी। सुनना होगा, निर्दोषों की सुरक्षा राजनीति से ऊपर है। अब भी समय है कि हम सब इंसानियत की ओर खड़े हों।”
The Author of this post is Kamal Nawal.