×

कर्नाटक के अगले सीएम सिद्धारमैया, डिप्टी सीएम होंगे डीके शिवकुमार

सोनिया गाँधी के हस्तक्षेप के बाद डीके शिवकुमार राज़ी हो गए

 
शपथ ग्रहण 20 मई को

आखिरकार कल लंबी जद्दोजहद के बाद और सोनिया गाँधी के हस्तक्षेप के बाद डीके शिवकुमार राज़ी हो गए। अब कर्नाटक के अगले CM सिद्धारमैया होंगे। डीके शिवकुमार के पास डिप्टी CM का पद रहेगा। शपथ ग्रहण समारोह 18 मई की बजाय 20 मई को होगा। दोनों नेताओं के साथ कई अन्य मंत्री शपथ भी ले सकते हैं।

CM पद को लेकर पिछले पांच दिनों से बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक कई बैठकें हुईं। सिद्धारमैया रेस में सबसे आगे चल रहे थे। वहीँ शिवकुमार के समर्थक भी अड़े हुए थे। शिवकुमार ने गुरुवार सुबह कहा, 'मैं पार्टी के फॉर्मूले पर राजी हूं। आगे लोकसभा चुनाव हैं और मैं जिम्मेदारियों के लिए तैयार हूं। पार्टी के हित को ध्यान में रखते हुए मैंने सहमति दी है।' हालाँकि डीके के भाई और सांसद डीके सुरेश ने कहा कि मैं पूरी तरह से खुश नहीं हूं।

इससे पहले रविवार को हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सभी विधायकों ने नेता चुनने के लिए खड़गे को अधिकृत किया था। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने ऑब्जर्वर्स से सभी विधायकों से वन-टु-वन बात करने को कहा था। इनमें 80 से ज्यादा विधायकों ने सिद्धारमैया के फेवर में वोट किया था।

डीके शिवकुमार ने मंगलवार सुबह बेंगलुरु में कहा, 'हम सब एक हैं। हम 135 हैं। मैं किसी को डिवाइड नहीं करना चाहता। वे भले ही मुझे पसंद करें या नहीं। मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूं। मैं धोखा नहीं दूंगा और ना ही ब्लैकमेल करूंगा। हमने कांग्रेस पार्टी को बनाया, हमने इस घर को बनाया। मैं इसका हिस्सा हूं।'

उन्होंने कहा, 'एक मां अपने बच्चे को सब कुछ देती है। सोनिया गांधी हमारी आदर्श हैं। कांग्रेस हर किसी के लिए परिवार की तरह है। हमारा संविधान बेहद महत्वपूर्ण है और हमें सभी के हितों की रक्षा करनी है। लोकसभा में 20 सीट जीतना हमारा अगला लक्ष्य है।' 

जाने कौन है सिद्धारमैया 

सिद्धारमैया का जन्म 12 अगस्त 1948 को मैसूरु जिले के सिद्धारमहुंडी गांव के किसान परिवार सिद्धारमे गौड़ा के घर में हुआ। कुरुबा गौड़ा समुदाय में जन्मे सिद्धारमैया पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। 1983 में जनता पार्टी के अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा ने सिद्धारमैया को टिकट देने से साफ मना कर दिया। लेकिन सिद्धारमैया ने हार नहीं मानी और अपने राजनीतिक गुरु अब्दुल नाजीर की सलाह पर चामुंडेश्वरी से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए। इसी बीच लोक दल ने भी सिद्धारमैया को समर्थन दे दिया। बिना किसी राजनीतिक अनुभव के सिद्धारमैया जीत गए और रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार का समर्थन किया।

इसके बाद पुराने मैसूरु क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए देवगौड़ा ने भी उन्हें अपना लिया। 1985 में मध्यावधि चुनाव हुए। सिद्धारमैया लगातार दूसरी बाद चामुंडेश्वरी से विधायक बने। हेगड़े सरकार में सिद्धारमैया ने पशुपालन और परिवहन जैसे मंत्रालयों को संभाला। साल 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सीनियर नेता एम राजशेखर मूर्ति से सिद्धारमैया चुनाव में हार गए। 1992 में वह जनता दल के महासचिव बने।

1994 के चुनाव में सिद्धारमैया चुनाव जीत गए और देवगौड़ा सरकार में वित्तमंत्री बने। साल 1996 में जब देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया तो सिद्धारमैया के CM बनने की संभावना जताई जाने लगी थी, लेकिन जनता दल के ही जेएच पटेल बाजी मार गए। हालांकि, सिद्धारमैया को डिप्टी CM बनाया गया। 1999 में जनता दल में टूट के बाद सिद्धारमैया ने देवगौड़ा का दामन थामा और JDS से जुड़ गए। इस दौरान देवगौड़ा ने उन्हें कर्नाटक में JDS का अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।

2004 में कांग्रेस और JDS ने मिलकर कर्नाटक में सरकार बनाई। कांग्रेस के धरम सिंह मुख्यमंत्री बने। वहीं सिद्धारमैया को डिप्टी CM बनाया गया। सिद्धारमैया JDS के चेहरे के तौर पर तेजी से उभर रहे थे और खुद को पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में स्थापित करने लगे। इसी बीच अनुभवी राजनेता आरएल जालप्पा ने 'अहिंदा' बनाया जो अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों को एकजुट करता है। जालप्पा के साथ सिद्धारमैया भी अहिंदा को आगे बढ़ाने में जुट गए। साथ ही एक के बाद एक तीन अहिंदा सम्मेलन बुलाया गया। इसने सिद्धारमैया का कद बढ़ा दिया।

साल 2005 में सिद्धारमैया को जेडीएस पार्टी से बाहर कर दिया गया था। भाजपा की विचारधारा से असहमति जताते हुए सिद्धारमैया 2006 में अपने समर्थकों के साथ बेंगलुरु में सोनिया गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हो गए। सिद्धारमैया ने अहिंदा के जरिए JDS की कुरुबा जाति के वोट को कांग्रेस के वोट में बदलने के साथ ही OBC और दलित वोटों को मजबूत किया। इससे कांग्रेस में सिद्धारमैया का कद काफी बढ़ गया। कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा के बाद कुरुबा तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है।

2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया। अब सवाल था मुख्यमंत्री कौन बनेगा? एक तरफ 7 साल पहले कांग्रेस में शामिल हुए सिद्धारमैया थे। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के बड़े दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे। यहां सिद्धारमैया ने बाजी मारी और मुख्यमंत्री बन गए।

मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धारमैया अपनी सामाजिक-आर्थिक सुधार योजनाओं से कर्नाटक में काफी बदलाव लाए। उन्होंने गरीबों की सबसे बुनियादी समस्या भोजन पर काम किया। सिद्धारमैया की अन्न-भाग्य योजना जिसमें 7 किलो चावल दिया जाता है, क्षीर-भाग्य जिसमें स्कूल जाने वाले सभी छात्रों के लिए 150 ग्राम दूध और इंदिरा कैंटीन ने उन्हें गरीबों का समर्थन दिलाया। सिद्धारमैया ने भूख, शिक्षा, महिला और नवजात मृत्यु दर से निपटने वाली योजनाओं में सभी जातियों और समुदायों के गरीबों को कवर कर अहिंदा के आधार पर उन्हें बढ़ाया। सभी बजट में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कुछ न कुछ किया। जैसे ग्रेजुएट होने तक मुफ्त शिक्षा, कॉलेज छात्रों के लिए लैपटॉप, पंचायतों में महिलाओं का होना अनिवार्य और गर्भवती होने के बाद से 16 महीने तक महिलाओं के लिए पौष्टिक भोजन देने की योजना ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया। 

जाने कौन है डीके शिवकुमार

1989 में डीके शिवकुमार पहली बार कर्नाटक की साथनूर सीट से चुनाव जीते और एस. बंगारप्पा की सरकार में मंत्री बने। तब उनकी उम्र 27 साल थी। वे तब सबसे कम उम्र के मंत्री थे। 1999 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व PM देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी को साथनूर से हरा दिया। डीके शिवकुमार लगातार 4 बार 1989, 1994, 1999 और 2004 में साथनूर से चुनाव जीते। मार्जिन हमेशा 40 हजार से ज्यादा ही रहा। 2008 से डीके कनकपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं और अब तक कभी नहीं हारे। 1990 में कांग्रेस ने डीके को टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस बार भी उनके सामने एचडी देवगौड़ा थे, पर शिवकुमार ने उन्हें हरा दिया।

इस जीत ने साबित किया कि कर्नाटक में एक कद्दावर नेता खड़ा हो चुका है। उनके सियासी रणनीति में माहिर होने का पहला सबूत साल 2004 में दिखा। लोकसभा चुनाव थे, डीके ने कनकपुरा लोकसभा सीट से बिना अनुभव वाली कांग्रेसी नेता तेजस्विनी गौड़ा को टिकट दिलवाया और तेजस्विनी ने देवगौड़ा को एक लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया। इस जीत से डीके बेंगलुरु रूरल एरिया से बड़े नेता के तौर पर उभरे।

उनकी साख इतनी मजबूत हो गई कि समर्थक उन्हें 'कनकपुरदा बंदे' यानी कनकपुरा की चट्टान बुलाने लगे। 2004 में मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा ने शिवकुमार को शहरी विकास मंत्री बनाया। डीके कई बार कांग्रेस को मुश्किल से निकाल चुके हैं। महाराष्ट्र की देशमुख सरकार को बचाना हो या गुजरातमें अहमद पटेल की राज्यसभा सीट पर जीत पक्की करने का श्रेय उन्ही को जाता है। यही नहीं कर्नाटक के पिछले चुनावो में भाजपा के फ्लोर टेस्ट में विफल रहने के बाद जेडीएस के साथ सरकार के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।