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कौन हो सकते है उदयपुर शहर सीट से भाजपा और कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार

इसी वर्ष के अंत में होने है राज्य विधानसभा के चुनाव 

 

उदयपुर 20 अगस्त 2023 । इसी वर्ष होने विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता आया है लिहाज़ा दोनों ही पार्टी से चुनाव लड़ने वाले दावेदार भी कमर कस चुके है। उदयपुर सीट पर 1998 से भाजपा का दबदबा रहा है। लेकिन भाजपा के दिग्गज के चुनावी राजनीती से दूर होने के बाद दोनों ही पार्टी के टिकिटार्थियो की इस सीट पर पैनी नज़र है।    

अमूमन भारतीय राजनीती में किसी नेता के राजनितिक कैरियर उस वक़्त समाप्त माना जाता है जब उन्हें राज्यपाल बनाया जाता है। लिहाज़ा राज्यपाल बनने के बाद अब कटारिया की मेवाड़ में चुनावी राजनीती का अध्याय भी लगभग समाप्त हो गया। अब वह संवैधानिक पद पर नियुक्त हो चुके है। इससे पूर्व कांग्रेस ने भी मेवाड़ के कद्दावर नेता मोहनलाल सुखाड़िया को राज्यपाल बनाकर उनका राजनैतिक जीवन समाप्त कर लिया था। 

उदयपुर शहर से विधायक के लिए भाजपा के पास क्या है विकल्प ?

सवाल यह है कटारिया के बाद विकल्प कौन होगा ? अगर जैन उम्मीदवार पर भाजपा टिकी रहती है तो उदयपुर नगर निगम में उपमहापौर पारस सिंघवी और भाजपा महिला नेता अल्का मूंदड़ा और पूर्व मेयर रजनी डांगी भी एक विकल्प है। हालाँकि राह यहाँ भी आसान नहीं जैन उम्मीदवारों में ताराचंद जैन, प्रमोद सामर, आकाश वागरेचा जैसे कई नेता कतार में है। 

यदि भाजपा ब्राह्मण चेहरे पर फोकस करती है वर्तमान जिलाध्यक्ष रविंद्र श्रीमाली भी एक विकल्प है। डूंगरपुर के सभापति और स्वच्छ्ता अभियान से अपनी राजनीति चमकाने वाले के के गुप्ता भी प्रबल दावेदार बने हुए है। और अगर हाल ही की राजनैतिक घटनाक्रम और राजनीती में दिलचस्पी के चलते मेवाड़ के पूर्व राजघराने के लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ भी एक चेहरा हो सकते है। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ राजनीती में आने की इच्छा भी जता चुके है। या फिर कटारिया परिवार से ही किसी चेहरे को आगे ला सकती है भाजपा। 

उदयपुर शहर से विधायक के लिए कांग्रेस के पास क्या है विकल्प ?

बात कांग्रेस की जाए तो कांग्रेस के लिहाज़ से उदयपुर शहर सीट एक कठिन सीट मानी जा रही है। भाजपा के गुलाबचंद कटारिया ने कांग्रेस के मोहनलाल सुखाड़िया के बाद इस सेट पर अब तक एकछत्र राज किया है। 1998 के बाद इस सीट पर अब तक कोई कांग्रेसी उम्मीदवार नहीं जीत सका है। पिछली बार केंद्र सरकार में पूर्व मंत्री रह चुकी वरिष्ठ नेता गिरिजा व्यास को हार का सामना करना पड़ा था। अब जबकि कटारिया उदयपुर की चुनावी राजनीती से दूर है तो कांग्रेस की नज़र भी इस सीट पर लगी हुई हैं। 

लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस इस स्थिति का फायदा कैसे उठा सकती है। भाजपा की तरह यहाँ भी एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। फ़िलहाल फिज़ाओ में उदयपुर सीट से गहलोत के करीबी और डूंगरपुर ज़िले के सागवाड़ा निवासी जैन समुदाय से आने वाले नेता दिनेश खोड़निया का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। कांग्रेस के प्रवक्ता प्रोफेसर गोविन्द वल्लभ पंत भी चर्चाओं में है। गिरिजा व्यास के गिरते स्वास्थ्य और उम्र को देखते हुए इस बार कांग्रेस शायद ही उन पर दांव लगाना चाहेगी। 

वहीँ कांग्रेस के स्थानीय नेताओ में पंकज कुमार शर्मा भी एक विकल्प हो सकते है। जबकि 2013 में कटारिया के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले दिनेश श्रीमाली भी है। हालाँकि श्रीमाली की संभावना कुछ ख़ास नहीं है।