गुजरात में AAP का बढ़ता प्रभाव, बीजेपी को फायदा, कांग्रेस का सिरदर्द

गुजरात में AAP का बढ़ता प्रभाव, बीजेपी को फायदा, कांग्रेस का सिरदर्द 

आप की एंट्री से कांग्रेस को होने वाला नुक्सान सीधा सीधा एंटी इंकम्बेंसी से जूझ रही भाजपा की झोली में जाएगा

 
Gujrat election

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में आने वाले दिनों विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है।  पहाड़ी राज्य हिमाचल में चुनावो की तारीख घोषित हो चुकी है जबकि गुजरात  में चुनावो के लिए किसी भी समय तारीखों का ऐलान हो सकता है।  हालाँकि दोनों राज्यों में एक साथ चुनावो की घोषणा हो सकती थी लेकिन बकौल कॉग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश के गुजरात में सत्ता पक्ष को चुनावी फायदों के लिए कुछ उद्घाटन और घोषणा करना बाकी है। 

इन घोषणाओं में एक महत्वपूर्ण घोषणा हमारे शहर उदयपुर से जुडी हुई है. वह है उदयपुर अहमदाबाद ब्रॉडगेज का उद्घाटन जिसका उदयपुर ही नहीं सम्पूर्ण मेवाड़ को बेसब्री से इंतज़ार है।  संभव है इसी महीने किसी भी समय यह खुशखबरी मेवाड़ वासियो को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कर्मभूमि से दे सकते है। 

खैर, चुनावो की बात की जाए तो पहले हिमाचल के चुनाव होने है। इस बर्फीली पहाड़ी राज्य के चुनाव पर चर्चा जल्द करेंगे फिलहाल गुजरात के चुनावो की चर्चा कर लेते है। गुजरात में 1995 से लगातार 27 साल तक भाजपा काबिज़ है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे है।  2017 के चुनावो में कांग्रेस ने पिछले 27 सालो में पहली बार भाजपा को कुछ हद तक कड़ी टक्कर दी थी लेकिन कांग्रेस बहुमत के 92 सीट के मुकाबले खुद के बल पर 77 और गठबंधन  के साथ 80 सीटों पर ही अटक गई। 

AAP का बढ़ता प्रभाव 

2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा था। हालाँकि न तो उन्हें कोई सीट नहीं मिली और न ही वोट शेयर कुछ खास था। मात्र 1 फीसद वोट हासिल किया था आम आदमी पार्टी ने। लेकिन 2021 में सूरत म्युन्सिपल इलेक्शन में आप ने 21 सीट जीतकर हर किसी को चौंका दिया था।  इस चुनावो में आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल गुजरात में धुंआधार दौरे कर रहे है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो आम आदमी पार्टी अपने वोट शेयर में 14 फीसदी का इज़ाफ़ा कर सकती है। अब सवाल यह है आप का बढ़ता प्रभाव किसे नुक्सान पहुँचाएगा ?

ज़ाहिर है आप का बढ़ता प्रभाव एंटी इंकम्बेंसी से जूझ रही भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगा। संघर्षरत कांग्रेस को इसका सर्वाधिक खामियाज़ा उठाना पड़ेगा।  जहाँ जहाँ आम आदमी पार्टी ने पैर फैलाये वहां वहां कांग्रेस का ही बंटाधार हुआ है।  दिल्ली और पंजाब इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। पिछले विधानसभा चुनावो में 77 सीट जीतने वाली कांग्रेस आने वाले चुनावो से पहले ही अपने 8 विधायक खो चुकी है। जो की कांग्रेस का हाल बयान करने के लिए काफी है। 

हालाँकि चुनौतियाँ भाजपा के सामने भी कम नहीं है। गुजरात में मोदी युग के बाद भाजपा को तीन तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़ चुके है। पिछले 27 सालो से भाजपा के गढ़ रही गुजरात में पार्टी एंटी इंकम्बेंसी से जूझती नज़र आ रही है। भाजपा का एकमात्र सहारा मोदी शाह का चेहरा है। लेकिन आप की एंट्री से कांग्रेस को होने वाला नुक्सान सीधा सीधा एंटी इंकम्बेंसी से जूझ रही भाजपा की झोली में जाएगा। 

जहाँ भाजपा को पिछले चुनावो के मुकाबले बढ़त हासिल करने का दबाव है वही कांग्रेस को पिछले चुनावो में मिली बढ़त को न सिर्फ बढ़ाने बल्कि बरकरार रखने का दबाव है।  पिछले चुनावों में कांग्रेस को आदिवासी बेल्ट, उत्तरी गुजरात और कच्छ सौराष्ट्र में बढ़त मिली थी जबकि भाजपा को मध्य गुजरात और दक्षिणी गुजरात के बड़े शहरों में बढ़त मिली थी। यहाँ एक दिलचस्प तथ्य यह है की आप का प्रभाव ग्रामीण और छोटे शहरों की अपेक्षा सूरत जैसे बड़े शहरो में अधिक तरजीह मिल रही है जो की भाजपा का गढ़ माने जाते है। 

आदिवासी क्षेत्रो में BTP का बढ़ता प्रभाव 

कांग्रेस का गढ़ रहा आदिवासी बेल्ट भी अब कांग्रेस के लिए सुरक्षित नहीं दिखाई दे रहा है।  पिछले चुनावो में आदिवासी बहुल नर्मदा ज़िले की डेडियापाड़ा और भडूच ज़िले की झगडीया सीट पर बीटीपी ने सेंधमारी करते हुए दो सीट जीती थी।  दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी गुजरात और गुजरात के अन्य आदिवासी इलाको में इस पार्टी की भी आदिवासियों में स्वीकार्यता बढ़ रही है जिसका सीधा सीधा प्रभाव कांग्रेस पर ही पड़ने वाला है। 

क्या संभव है AAP और BTP का गठबंधन 

राजनीति में कुछ भी असम्भव नहीं होता है। यदि बीटीपी और आप का गठबंधन होता है तो निश्चित तौर पर यह गठबंधन कांग्रेस ही नहीं भाजपा के लिए भी सिरदर्द बढ़ा सकता है। शहरी क्षेत्र में आप और आदिवासी क्षेत्रो में बीटीपी प्रभावी साबित हो सकते है।  इस गठबंधन के लिए बीटीपी के छोटू भाई वसावा ने पूर्व में कोशिश भी की लेकिन बात फ़िलहाल बनी नहीं। हालाँकि भविष्य में कुछ भी असम्भव नहीं। 

क्या कहता है गुजरात का राजनितिक इतिहास 

मुंबई स्टेट से 1960 में अलग हुए गुजरात में 1960 से 1967 तक कांग्रेस का शासन रहा है। जीवराज नारायण भाई मेहता गुजरात के पहले मुख्यमंत्री थे।  1967 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेंद्र देसाई ने कांग्रेस (ओ) में रहकर 1971 तक शासन किया। 1972 से 1974 तक क्रमशः घनश्याम ओझा और चिमनभाई पटेल ने कांग्रेस सरकार का प्रतिनिधित्व किया। 1974 के गुजरात नवनिर्माण आंदोलन से कांग्रेस के पैर उखड़ने शुरु हो गए थे। हालाँकि 1980 और 1985 में माधव सिंह सोलंकी और अमर सिंह चौधरी जैसे नेताओ के कुशल नेतृत्व में कांग्रेस ने वापसी भी की।  

1989 मे पूरे देश में चली परिवर्तन की आंधी और जनता दल की लहर से गुजरात भी अछूता नहीं रहा। 1989 में पहली और आखिरी बार चिमनभाई पटेल ने जनता दल की सरकार बनाई हालाँकि जनता दल की टूट के बाद चिमनभाई पटेल जनता दल (गुजरात) की सरकार कांग्रेस की सहयोग से चलाई। 1995 में पहली बार शंकर सिंह वाघेला ने अपने दम पर भाजपा की सरकार बनवाई। 1996 से 1998 तक भाजपा के आलाकमान से विवाद के चलते शंकर सिंह ने राष्ट्रीय जनता पार्टी के बैनर तले सरकार चलाई। 

1998 के चुनावो में भाजपा ने केशुभाई पटेल के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था। भाजपा द्वारा बीच में ही केशुभाई को साइडलाइन करने के बाद नरेंद्र मोदी को भाजपा ने सत्ता की चाबी सौंपी थी।  2002 के गुजरात दंगे के बाद हिन्दू ह्रदय सम्राट बने नरेंद्र मोदी ने 2014 तक गुजरात में एकछत्र राज किया और केंद्र में चले गए। आज भी भाजपा को नरेंद्र मोदी का ही सहारा है। मोदी युग के बाद भाजपा को तीन तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े है। पहले आनंदी बेन पटेल, फिर विजय रुपाणी और अब भूपेंद्र पटेल। 

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