विश्व रेडियो दिवस : कहाँ खो गया मेरा प्रिय रेडियो


विश्व रेडियो दिवस : कहाँ खो गया मेरा प्रिय रेडियो

 
World Radio Day 2022 My Memories

आप लोगों के पास ट्रांजिस्टर है? , रेडियो है? कहीं बंद आलमीरा के कोने में धूल से अटा पड़ा! यदि आप पचास, साठ या सत्तर वर्ष के हैं, इस आयु वर्ग ने अपने जीवन में विज्ञानं, तकनीकि व् दूर संचार के क्षेत्र में एक क्रांति को देखा है।  दो पीढ़ी के अंतर में हम साइकिल से बरास्ता स्कूटर से कार पर आ गए। तार से लैंड लाइन फ़ोन फिर सेल फ़ोन व अब स्मार्ट फ़ोन पर है।  आप के आधार से ज्यादा सेल नंबर की महत्ता है।

मुझे 1965 की लड़ाई याद है। मेरे गांव में बिच बाज़ार में मांगी लाल गुर्जर (मांगू दादा) कि साइकल की दूकान थी। युद्ध के समय सुबह 8:10, दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर व् रात 8:45 पर आकाशवाणी के बुलेटिन उनके ट्रांजिस्टर जिसे बीच बाजार स्टूल पर रख कर सारा बाजार सुनता था। एक विलक्षण वास्तु था "रेडियो"।

इस समय रेडियो सीलोन / श्री लंका , विविध भारती व आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस बहुत लोकप्रिय थे। रेडियो सिलोन का बिनाका गीत माला, ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस, अमिन सायानी की आवाज बिनाका गीत माला में। आकशवाणी समाचारों में देवकी नंदन पांडेय।  एक और उद्घोषक श्रीलंका रेडियो से रिपुसूदन कुमार ऐलावादी।

यह रेडियो खरीदने के बाद भारत में लेना पड़ता था और लाइसेंस जिसका शुल्क पोस्ट ऑफिस में जमा होता था। यह लगभग 80 के दशक में समाप्त हुआ.

आज के दिन यूनेस्को 2011 से विश्व रेडियो दिवस मनाती है। विश्व में रेडियो का पहला व्यवसायिक प्रसारण 1906 में शुरू हुआ था, उस समय यह मर्चेंट नेवी के जहाजियों में बहुत लोकप्रिय था. सेना में भी अवकाश के क्षणों में रेडियो मनोरंजन का बड़ा साधन था और फौजी भाइयों के लिए प्रोग्राम विविध भारती से, जो आज भी जारी है. १९७१ की लड़ाई के बाद जिन पाक सैनिको ने आत्म समर्पण किया उनकी सलामती के सन्देश "जंगी कैदियों के पैगाम" नाम से रेडियो पर आते थे. । भारत में बेनेट कोलमैन ग्रुप (आज का टाइम्स ऑफ इंडिया) के प्रयासों से भारत में इसका व्यवसायिक प्रसारण फरवरी 1922 में शुरू हुआ था। भारत में पहला रेडियो क्लब जून 1923 में मुंबई में आरम्भ हुआ था, जहाँ कुछ देर के लिए होनेवाला प्रसारण सुनने के लिए लोग सदस्यता लेते थे। टेलीग्राफिक एक्ट 1885 के तहत इसमें लाइसेंस दिया जाता था, जिसे बाद में वायरलेस एक्ट 1933 के अंतर्गत जारी किया जाने लगा।

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय खबरों को सुनने के लिए रेडियो क्लबों की लोकप्रियता में रुझान आया, ऐसे 1936 में ऑल इंडिया रेडियो की विधिवत स्थापना हो चुकी थी। हिन्दी के विख्यात कवि सुमित्रानंदन पंत इससे जुड़े हुए थे और उन्होंने इसका पुनः नामकरण आकाशवाणी किया था। आकाशवाणी से सम्बद्ध पं. नरेंद्र शर्मा ने विविध भारती कार्यक्रम की शुरआत की थी, जिसने इसमें चार चाँद लगा दिए थे।

भारत में भी 80 के दशक में ट्रांज़िस्टर के आ जाने से रेडियो मृतप्राय सा हो गया, क्योंकि इसमें रेडियो के एंटेना और बैटरी सेट का झंझट नहीं था। समाचार के लिए भारत में BBC सुना जाने लगा और इसके उदघोषक मार्क टली ने भारत में अपना एक मुकाम बना लिया। एशियाड 82 के बाद TV की लोकप्रियता बढ़ी जिसमे श्वेत श्याम टीवी घर घर में हो गए। रामायण व् महाभारत ने टीवी को ग्रामीण क्षेत्रो में पहुँचाया और ट्रांज़िस्टर भी लुप्तप्राय सा हो गया। भारतीय TV प्रसारण का दूरदर्शन नाम भी सुमित्रानंदन पंत का ही सुझाव था।

90 के दशक में एमेच्योर HAM रेडियो प्रसारण ने एक रंग तो बिखेरा, लेकिन लोकप्रिय नहीं हो पाया। आज 21वीं सदी में भी FM बैंड ने इसकी प्रासंगिकता को बनाये रखा है। फिर भी रेडियो / ट्रांजिस्टर बीते हुवे ज़माने की वस्तु रह गई है।

परिवर्तन संसार का शास्वत नियम है , परिवर्तन की आंधी में प्रिय वस्तुएं गुमनामी में खो गई।

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