बांसवाड़ा शहर विधानसभा सीट पर 1977 से कांग्रेस का दबदबा रहा है। राजस्थान के कद्दावर कांग्रेसी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी का इस सीट पर एकछत्र राज रहा है। 1977 से 2003 तक यह सीट सामान्य उम्मीदवारों के लिए थी। लेकिन 2008 से यह एसटी के लिए रिज़र्व कर दी गई।
इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हरिदेव जोशी इस सीट से 1977 की जनता लहर में भी विजयी रहे थे। 1967 से 1993 तक लगातार इस सीट का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। हरिदेव जोशी इससे पूर्व 1957 और 1962 से घाटोल सीट से चुनाव लड़ कर विधानसभा में पहुंचे थे।
वर्तमान कांग्रेसी विधायक अर्जुन सिंह बामनिया राज्य सरकार में आदिवासी इलाके (स्वतंत्र प्रभार) और पीएचइडी और भूजल विभाग में राज्यमंत्री है। वह भी इस सीट से दो बार प्रतिनिधित्व कर रहे है।
भाजपा इस सीट से केवल दो बार 2003 और 2013 में विजयी रही है। 2013 में यहाँ से धन सिंह रावत विधायक थे जबकि 2003 में भवानी जोशी ने भाजपा से जीत दर्ज की थी।
पिछली विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो कांगेस के अर्जुन सिंह बामनिया ने 88 हज़ार से अधिक मत प्राप्त कर भाजपा के हकरू मईडा को 70 हज़ार मत प्राप्त हुए थे। कांग्रेस ने भाजपा को 18 हज़ार से अधिक मतों से परास्त किया था। हालाँकि इसी चुनाव में भाजपा से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे धनसिंह रावत ने करीब 32 हज़ार प्राप्त किये थे।
जबकि 2013 की मोदी लहर में भाजपा के धन सिंह रावत ने कांग्रेस के अर्जुन सिंह बामनिया को करीब 30 हज़ार मतों से परास्त किया था। इस चुनाव में भाजपा को 86 हज़ार, कांग्रेस को 56 हज़ार और जेडीयू के राजेश कटारा को 22 हज़ार मत प्राप्त हुए थे।
वहीँ 2008 में कांग्रेस के अर्जुन बामनिया ने भाजपा के धन सिंह रावत को 16 हज़ार मतों से हराया था। इस चुनाव में कांग्रेस को 47 हज़ार, भाजपा को 31 हज़ार और जेडीयू के राजेश कटारा को 20 हज़ार जबककी समाजवादी पार्टी के धीरजमल घनावा को 13 हज़ार मत मिले थे।
वर्ष 2003 में भाजपा ने यहाँ पहली बार जीत दर्ज की थी। भाजपा के भवानी जोशी ने कांग्रेस के रमेशचंद्र पंड्या को 23 हज़ार मतो से परास्त किया था। इस चुनाव में भवानी जोशी को 60 हज़ार से अधिक मत मिले थे जबकि कांग्रेस 37 हज़ार मत मिले थे। पहली बार कांग्रेस ने यहाँ से हार का मुंह देखा था।
इससे पूर्व 1998 में कांग्रेस के रमेशचंद्र पंड्या ने भाजपा के भवानी जोशी को 26 हज़ार मतों से हराया था। इस चुनाव में कांग्रेस 50 हज़ार जबकि भाजपा को 24 हज़ार और निर्दलीय पवन रोकड़िया को 9 हज़ार से अधिक मत प्राप्त हुए थे।
इससे पूर्व 1967 से लेकर 1993 लगातार कांग्रेस के हरिदेव जोशी ने इस सीट पर विजय दर्ज कर अपना एकछत्र राज किया था। हालाँकि हरिदेव जोशी ने अपने चुनावी सफर की शुरुआत 1957 में बांसवाड़ा ज़िले की घाटोल सीट से की थी। 1962 में भी हरिदेव जोशी घाटोल से ही चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद 1967 से 1993 तक लगातार इसी सीट से चुनाव लड़कर हर बार विजय प्राप्त की।
स्वर्गीय हरिदेव जोशी 1973 से 1977, 1985-88, 1989-90 में प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। हरिदेव जोशी की वजह से यह सीट कांग्रेस का इतना मज़बूत गढ़ बन गई की 1977 से देश में चली परिवर्तन की आंधी और जनता लहर में भी यह सीट कांग्रेस का किला बनी रही। कांग्रेस के यह किला 2003 में ध्वस्त हुआ तब से दो बार 2003 और 2013 में इस सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।
आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस सीट को बचाने की भरसक प्रयास करेगी। इस बार भी इस सीट से कांग्रेस से अर्जुन सिंह बामनिया ही मज़बूत दावेदार है। भाजपा इस बार किसे मौका देगी यह दिलचस्प होगा क्यूंकि पिछली बार भाजपा के बागी धन सिंह रावत ने भाजपा का खेल खराब कर दिया था। लगभग दो लाख 63 हज़ार मतदाताओं वाली यह सीट वैसे तो एसटी के लिए रिज़र्व है हालाँकि यहाँ ब्राह्मण मतदाता भी निर्णायक संख्या में है।
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