राजस्थान के युग पुरुष भैरों सिंह शेखावत:जन्म शताब्दी 23 अक्टूबर


राजस्थान के युग पुरुष भैरों  सिंह शेखावत:जन्म शताब्दी 23 अक्टूबर 

1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनने की बारी आई तो ये नेता राजस्थान का मुख्यमंत्री बन गया

 
Bhairon Singh Shekhawat

भैरोंसिंह शेखावत का जन्म तत्कालिक जयपुर रियासत के गाँव खाचरियावास में हुआ था। यह गाँव अब राजस्थान के सीकर जिले में है। इनके पिता का नाम श्री देवी सिंह शेखावत और माता का नाम श्रीमती बन्ने कँवर था। गाँव की पाठशाला में अक्षर-ज्ञान प्राप्त किया।

हाई-स्कूल की शिक्षा गाँव से तीस किलोमीटर दूर जोबनेर से प्राप्त की, जहाँ पढ़ने के लिए पैदल जाना पड़ता था। हाई स्कूल करने के पश्चात जयपुर के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया ही था कि पिता का देहांत हो गया और परिवार के आठ प्राणियों का भरण-पोषण का भार किशोर कंधों पर आ पड़ा, फलस्वरूप हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस में सब-इंस्पेक्टर बन गए। बाद में उनका विवाह सूरज कंवर से करा दिया गया। पुलिस की नौकरी में मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। 

1952 के चुनावों में जनसंघ ने उनके भाई बिशन सिंह को चुनाव लड़ने का ऑफर आया और बड़े भाई ने छोटे भाई को टिकट दिला दिया। जो चुनाव लड़ने के लिए बीवी से 10 रुपये का नोट लेकर घर से निकल गया और जीत गया। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनने की बारी आई तो ये नेता राजस्थान का मुख्यमंत्री बन गया। नाम था भैरो सिंह शेखावत।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात लोकतंत्र की स्थापना में आम नागरिक के लिए उन्नति के द्वार खोल दिए। राजस्थान में वर्ष 1952 में विधानसभा की स्थापना हुई तो शेखावत ने भी भाग्य आजमाया और विधायक बन गए। फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा तथा सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति पद तक पहुँच गए।

भैरोंसिंह शेखावत (23 अक्टूबर 1923-15 मई 2010) भारत के उपराष्ट्रपति थे। वे 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे। वे 1977 से 1980, 1990 से 1992 और 1993 से 1998 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे। वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे। "राजस्थान का एक ही सिंह" (राजस्थान का एकमात्र शेर) या "बाबोसा" (राजस्थान के परिवार के प्रमुख) के रूप में जाने जाते थे। वर्ष में उसकी जनता पार्टी 1977 में राजस्थान के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। मुख्यमंत्री बनने के दौरान भैरो सिंह शेखावत विधायक भी नहीं थे, वो राज्यसभा के सांसद थे। राजस्थान में शेखावत के नेतृत्व में राज्य विधानसभा चुनावों में जेपी 200 सीटों में से 151 सीटें जीता।

1980 मे शेखावत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। 1989 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल के बीच गठबंधन लोकसभा और विधानसभा में भी 140 सीटों में और लोकसभा की सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की। शेखावत एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 1993 में चुनाव में, शेखावत ने 96 सीटों पर जीत, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के लिए नेतृत्व किया. तीन भाजपा समर्थित निर्दलीय भी सीटें जीती और भाजपा समर्थित जो अन्य निर्दलीय 116 को अपने समर्थन में लिया। शेखावत तीन बार नेता प्रतिपक्ष भी रहे  (15 जुलाई, 1980 से 10 मार्च, 1985 तक, 28 मार्च, 1985 से 30 दिसम्बर, 1989 तक और 8 जनवरी, 1999 से 18 अगस्त, 2002 तक)।

1952 में पहली विधानसभा में दाता रामगढ़ से चुने जाने के बाद भैरो सिंह शेखावत की जीत का सिलसिला अगले तीन चुनावों में बदस्तूर जारी रहा। इस दौरान खास बात यह रही कि वो हर चुनाव में अपनी सीट बदल लेते थे। 1957 में वो सीकर की श्री माधोपुर सीट से चुनकर आए। 1962 और 1967 में उन्हें जयपुर की किशनपोल सीट से विधायक चुना गया। 1972 में वह जयपुर की गांधी नगर सीट से मैदान में थे। बाद में वे आमेर, निम्बाहेड़ा, बाली से जीतकर आये।

वर्ष 2002 में भैरों सिंह शेखावत सुशील कुमार शिंदे को हराकर देश के उपराष्ट्रपति चुने गए। विपक्षी दल को 750 में से मात्र 149 मत मिले। जुलाई 2007 में उन्होंने नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस के समर्थन से निर्दलीय राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश वह चुनाव हार गए और श्रीमती प्रतिभा पाटिल चुनाव जीतीं और देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। इसके बाद भैरों सिंह शेखावत ने 21 जुलाई 2007 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया।

भैरों सिंह शेखावत को उनकी कई उपलब्धियों और विलक्षण गुणों के चलते आंध्रा विश्वविद्यालय विशाखापट्टनम, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी, और मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपुर ने डी.लिट. की उपाधि प्रदान की। एशियाटिक सोसायटी ऑफ मुंबई ने उन्हें  फैलोशिप से सम्मानित किया तथा येरेवन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी, अर्मेनिया द्वारा उन्हें गोल्ड मेडल के साथ मेडिसिन डिग्री की डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की गई।

भैरों सिंह शेखावत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा, बालिकाओं का उत्थान व उनका कल्याण, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और शारीरिक विकलांग लोगों की स्थिति में सुधार पर बल दिया। उनका मुख्य उद्देश्य गरीबों तक अधिकारों का लाभ पहुंचाना था। उन्होंने लोगों को परिवार नियोजन और जनसंख्या विस्फोट का राज्य के विकास पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया। लोगों की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने नई निवेश नीतियां शुरू की, जिनमें उद्योगों का विकास, खनन, सड़क और पर्यटन शामिल है। उन्होंने हेरिटेज होटल और ग्रामीण पर्यटन जैसे योजनाओं को लागू करने का सिद्धांत दिया, जिससे राजस्थान के पर्यटन क्षेत्र में वृद्धि हुई। इस प्रकार उनके कार्यकाल के दौरान राजस्थान की अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिति बेहतर रही।

आजीवन राष्ट्रहित में काम करने वाले जननेता शेखावत जी ग़रीबों के सच्चे हितेषी और सहायक थे। उन्होंने एक बार कहा था कि- "मैं ग़रीबों और वंचित तबके के लिए काम करता रहूँगा ताकि वे अपने मौलिक अधिकारों का गरिमापूर्ण तरीक़े से इस्तेमाल कर सकें।" देश के अत्यंत ग़रीब लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए चलाई जाने वाली "अंत्योदय अन्न योजना" का श्रेय उन्हीं को जाता है। उनके इस कदम के लिए तत्कालीन विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट मैक्कनमारा ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें भारत का रॉकफ़ेलर कहा था। अपने जीवन काल की एक अन्य चर्चित घटना "रूप कंवर सती कांड" के दौरान अपनी लोकप्रियता और राजनीतिक कैरियर की परवाह न करते हुए भैरोंसिह शेखावत ने 'सती प्रथा' के विरोध में आवाज़ बुलंद की थी।

शेखावत जी का राजनीतिक कार्यकाल ग़रीबों की बेहतरी और विकास को समर्पित रहा था। ग़रीबों की भलाई के लिए उन्होंने कई योजनाएँ क्रियांवित की थीं, जैसे- 'काम के बदले अनाज योजना', 'अंत्योदय योजना', 'भामाशाह योजना' और 'प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम' इत्यादि।

अपनी योजनाओं के माध्यम से शेखावत जी ने ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का जो सपना देखा था, वह आज काफ़ी हद तक साकार हो रहा है। राजनीति के इस माहिर और मंझे  हुए खिलाड़ी ने सरकार में रहते हुए ऐसे ना जाने कितने काम किये, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है। उनके द्वारा शुरू किये गये 'काम के बदले अनाज' योजना की मिसाल दी जाती है।

भैरों सिंह शेखावत का निधन 15 मई 2010 को जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हो गया। वह कैंसर से भी पीडि़त थे। उनके अंतिम संस्कार में प्रसिद्ध राजनेताओं के अलावा हजारों लोग शामिल हुए। उन्हें पुलिस और अफसरशाही व्यवस्था पर कुशल प्रशासन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा भैरों सिंह शेखावत को राजस्थान में औद्योगिक और आर्थिक विकास के पिता के तौर पर भी जाना जाता है। राज्यसभा में उन्हें अतुलनीय प्रशासन और काम-काज के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेताओं से सराहना मिली। भैरों सिंह शेखावत को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के सबसे ऊँचे नेता के तौर पर संबोधित किया था।

उनके परिवार में उनकी पत्नी सूरज कंवर और उनकी इकलौती बेटी रतन राजवी थीं, जिनकी शादी भाजपा नेता नरपत सिंह राजवी से हुई है। राजस्थान के प्रसिद्ध कांग्रेस कैबिनेट खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भैरों सिंह जी के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह जी के सुपुत्र हैं। भैरों सिंह जी का व्यवहार और आत्मीयता के उनके विरोधी भी कायल थे। वे एक युगपुरुष थे, सदैव लोगों की स्मृतियों में रहेंगे।

Article By Prof. Kamal Singh Rathore

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