कहीं महंगी न पड़ जाए महंगाई के खिलाफ रैली

कहीं महंगी न पड़ जाए महंगाई के खिलाफ रैली

मजे की बात यह है की एक तरफ संक्रमण फिर पसर रहा है और दूसरी तरफ जिस राज्य में पेट्रोल, डीज़ल और बिजली ज्यादातर राज्यों से महंगी है उसी राज्य के कर्णधार महंगाई के खिलाफ रैली आयोजित कर रहे है।

 
Congress Rally in Jaipur Opinion Rising Prices
मेनस्ट्रीम मीडिया को भी आजकल दृष्टिदोष हो चूका है - इन राजनैतिक रैलियों को मिडिया कभी मास्टरस्ट्रोक बताती है, तो कभी इन रैलियों को वह जन आंदोलन बताती है।

पिछले दिनों देश के गृह मंत्री ने राज्य में कार्यकर्ताओ की भव्य रैली की तो राज्य के मुख्यमंत्री भला कैसे पीछे रहते। उन्होंने आगामी रविवार को महंगाई के विरुद्ध बड़ी रैली का आह्वान किया है। इस रैली में प्रत्येक जिले से 10 हज़ार लोगो को एकत्र करने का टारगेट दिया गया है। एक तरफ राज्य की दोनों ज़िम्मेदार राजनैतिक पार्टियां रैली रैली खेल रही है। वहीँ दूसरी तरफ धीरे धीरे पुनः कोरोना पर पसार रहा है। राज्य में लगातार केस बढ़ते जा रहे है। नए वैरिएंट ओमिक्रोन ने भी राज्य में दस्तक दे दी है।

सवाल यह उठता है की क्या रैली से महंगाई कम हो जाएगी?  मात्र एक दिन की रैली से बढ़ती महंगाई पर लगाम नहीं लगने वाली उसके लिए तो सड़को पर लम्बा संघर्ष करना पड़ता है जैसा की किसानो के कर दिखाया। क्या ऐसी इच्छाशक्ति राजनैतिक दलों में है ? यकीनन नहीं बस रैली के बहाने शक्ति प्रदर्शन की कवायद से ज़्यादा कुछ नहीं। मज़े की बात यह है की जिस राज्य में पेट्रोल डीज़ल और बिजली ज्यादातर राज्यों से महंगी है उसी राज्य के कर्णधार महंगाई के खिलाफ रैली आयोजित कर रहे है।   

रैली के प्रचार प्रसार के लिए उदयपुर आये प्रभारी मंत्री के अनुसार रैली में भीड़ आने से कोई खतरा नहीं क्यूंकि सूबे के मुख्य सेवक कोरोना प्रबंधन के बेहतरीन  मैनेजमेंट गुरु है जिसकी तारीफ़ स्वयं देश के प्रधानसेवक कर चुके है इसलिए राज्य की जनता को घबराने की आवश्यकता नहीं है। 

एक तरफ डूंगरपुर जिले में मात्र 5 केस होने पर कर्फ्यू लगाया जा रहा है वहीँ दूसरी तरफ जयपुर में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन के 9 केस होने के बावजूद कन्टेनमेंट जोन तक नहीं बनाया गया। कारण महंगाई के खिलाफ रैली जयपुर में ही निकाली जानी है जबकि नए वैरिएंट के फैलने की रफ़्तार छह गुणा बताई जा रही है। 

राज्य के चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा के अनुसार तो ओमीक्रॉन बहुत कमज़ोर है, इसलिए कन्टेनमेंट जोन बनाने की आवश्यकता नहीं है। वहीँ एक अन्य मंत्री के अनुसार तो नया वैरिएंट पुराने वैरिएंट को मारने आया है। इसी तरह कोरोना के शुरूआती दौर में महाराष्ट्र में केंद्र सरकार से जुड़े एक नेताजी ने तो कोरोना भगाओ रैली तक निकाल दी थी, राजस्थान के ही एक सांसद महोदय ने 'भाभीजी के पापड़' खा कर कोरोना भगाने का ज्ञान बांटा था। ताली थाली पीटकर कोरोना भगाने वाले नेताओ से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। 

आने वाले वर्ष में देश के बड़े सूबो में चुनाव का त्यौहार सर पर है। मतलब जमकर रैलियों, रोड शो और चुनावी सभाओ में किराये की भीड़ जमा होने वाली है। और यह किराये की भीड़ हमारे ही देश के बेरोज़गारो की भीड़ है जो की दिहाड़ी मज़दूरों की तरह एक दिन की रोटी सब्ज़ी और चंद नोट के बदले रैली को सुपरहिट बनाने का टूलकिट बनेगी। 

चुनाव सम्प्पन होने के बाद अस्पतालों में बेड और दवाईंयों के लिए भटकती फिरेगी। मंदिर मस्जिद शमशान कब्रिस्तान के नाम पर वोट देने वाली जनता अपने लिए अस्पताल ढूंढती फिरेगी। कोई नयी कहानी नहीं बस वहीँ पिछले साल की घटनाओं की पुनरावृति होने वाली है। वहीँ गंगा मैया होगी और उसी में तैरती खामोश लाशें होगी जो पूरी दुनिया को दिखाई देंगी सिवाय हमारे मिडिया के।  

मिडिया का दृष्टिदोष 

हमारी मेनस्ट्रीम मीडिया को भी आजकल दृष्टिदोष हो चूका है। मिडिया इन राजनैतिक रैलियों को कभी मास्टरस्ट्रोक बताती है तो कभी इन रैलियों को वह जन आंदोलन बताती है। हालाँकि इन रैलियों में जनता की कोई भागीदारी नहीं होती। किराये की भीड़ ज़रूर होती है। मिडिया को रैली में भारी भीड़ नज़र आ जाती है लेकिन बेरोज़गारो की भीड़ नज़र नहीं आती। वहीँ मिडिया जिनको पड़ौसी मुल्क के आलू सेब टमाटर और आटे तक के भाव मालूम है लेकिन अपने देश की महंगाई नज़र नहीं आती।
 

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