भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के नए फरमान के मुताबिक एसीबी के सभी चौकी प्रभारी और यूनिट प्रभारी को आदेश जारी कर कहा है की अब रिश्वत लेते पकड़े जाने वाले माननीय अफसरों और कर्मचारियों के नाम और फोटो सार्वजनिक नहीं किया जाए। तर्क (कुतर्क) यह है की ट्रैप होने वाला आरोपी दोषी है या नहीं यह न्यायालय तय करेगा। ऐसे में उसे दोषी के रूप में प्रोजेक्ट करना गलत है।
राज्य में पांच साल पहले भी तत्कालीन वसुंधरा सरकार ऐसा ही बिल लेकर आई थी जिनमे प्रावधान था की सरकारी मंजूरी के बिना दागी लोक सेवक का नाम और पहचान उजागर करने पर दो साल की सज़ा होगी। तब सिर्फ विपक्ष ही सत्ता में बैठे कई भाजपाई नेताओ ने भी विरोध जताया था। 'राजस्थान पत्रिका' ने 'जब तक काला तब तक ताला' अभियान चलाया था जिसके तहत जनता के लिए अति आवश्यक सूचनाओं को छोड़कर सरकार के अन्य कार्यक्रम के समाचारो का प्रकाशन 'राजस्थान पत्रिका' में प्रकाशित होने से रोक दिया गया था। तब चौतरफा विरोध के चलते वसुंधरा सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े थे।
भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में एसीबी द्वारा भ्रष्टाचारियो का बचाने का आदेश सरकार के ज़ीरो टोलरेंस की मखौल उड़ाता दिख रहा है। यह कैसा आदेश है कि रिश्वतखोरो के नाम और फोटो सार्वजानिक नहीं किये जाए ? अगर ऐसा है तो मर्डर, बलात्कार, चोरी और अन्य अपराध में पकडे गए आरोपियों की फोटो भी तभी सार्वजानिक किये जाने चाहिए जब उन पर अदालत द्वारा दोष सिद्ध हो जाए।
एसीबी जब भ्रष्टाचारियो को ट्रैप करती है पहले उसके खिलाफ आई शिकायत का सत्यापन किया जाता है फिर कार्यवाही की जाती और अमूमन रिश्वत लेते रंगे हाथो गिरफ्तार करती है ऐसे इस आदेश से तो यह प्रतीत होता है की एसीबी को अपने ही सत्यापन पर भरोसा नहीं ?
आखिर एसीबी भ्रष्टाचारियो के नाम और फोटो क्यों छिपाना चाहती है ? ट्रैप किये गए भ्रष्टाचारी को इस तरह का विशेषाधिकार क्यों देना चाहती है? इससे तो भ्रष्टाचारी ट्रैप होने के बाद और अधिक निडर होकर भ्रष्ट आचरण करेगा। मीडिया में मामला उजागर होने के बाद भ्रष्टाचारी की जो सामाजिक स्तर पर बदनामी होती थी उस पर लगाम लग जाएगी। अब तो उसे बदनाम होने का डर भी नहीं रहेगा।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal