हर महिला का गर्व और सबसे प्रिय गहना कहलाता है ये लाख की चूड़ियां। ये चूड़ियां प्राचीन काल से औरतों के हाथों की शोभा बढ़ाती आई है, दिवाली हो मांगलिक कार्य हो या सुहागनों की कोई रस्म, हर पर्व पर लाख की चूड़ियों को शामिल किया जाता है।
लाख की चूड़ियों के महत्व
लाख की चूड़ियों ने कला और शिल्प की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। उदयपुर में हर साल भारी संख्या में सैलानी और यात्री आते हैं। इनमें से कई लोग इन चूड़ियों को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। दस्तकारों के अनुसार इन चूड़ियों की ख़ासियत इनमें इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की शुद्धता है। लाख एक प्राकृतिक पदार्थ है और लाख की चूड़ी बनाने में कोई कैमिकल इस्तेमाल नहीं होता। दूसरी तरह की चूड़ियां पहनने पर जहां त्वचा पर खुजली या ख़ारिश हो सकती है, वहीं लाख की चूड़ियों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं होती। तीज और गणगौर जैसे स्थानीय त्यौहारों के दौरान लाख की चूड़ियों की बिक्री बढ़ जाती है। वसंत के दौरान त्यौहारों पर ख़ासकर लहरिया चूड़ियां बहुत बिकती हैं। लहरिया शब्द का इस्तेमाल स्थानीय कपड़ो की बंधेज रंगाई के लिये भी किया जाता है जिनका अपने विशिष्ठ पैटर्न होते हैं।
कैसे होता है लाख इस्तेमाल
लाख का इस्तेमाल श्रृंगार सामग्री में ही नहीं बल्कि हैंडीक्राफ्ट, मूर्तियाँ, गोलियाँ, सजावट की वस्तुएं, फर्नीचर पॉलिश सहित अनेकों जगह होता है। राजस्थानी परंपराओं के मुताबिक़ लाख की चूडियाँ के बिना शादी नहीं होती और ये इन रस्मों में अलग ही महत्व रखती है।
उदयपुर में लाख की चूड़ियां बनाने की कला उतनी ही पुरानी है जितना पुराना ये शहर है। लेकिन क्या आपको पता है कि उदयपुर के व्यस्त बाज़ार की एक पुरानी संकरी गली, में हाथ से बनाई जाने वाली एक ख़ास तरह की चूड़ियों के लिये मशहूर है? उदयपुर के Old City Area में “28, ब्रह्मपोल रोड”, चांद पोल के अंदर चुड़ी चमके (Chudi Chamke) नाम की दुकान है जहां प्रसिद्ध कारीगर 1980 से लाख की सुंदर चूड़ियां बनाते है।
क्या आप जानते हैं कि बड़े-बड़े उद्योगपति और बॉलीवुड स्टार्स तक को इनकी लाख की चूड़ियां काफ़ी पसंद है और इन चूड़ियों की डिमांड उदयपुर की रॉयल फै़मिली में प्रिंस लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के परिवार के रोयल प्रोसेशन में अम्बा देवी प्रिंस के परिवार की राजकुमारियों को लाख की चूड़िया पहनाने जाती है। साथ ही कई बॉलीवुड के जाने-मानें स्टार्स जैसे चिरंजीवी (साउथ अभिनेता) और जया परदा, रवीना टंडन व हंसिका मोटवानी के भाई की शादी में भी इन्होंने लाख की चूड़िया पहनाई थी।
सुरेश चन्द्र लखारा ने 1980 में इस काम की शुरूआत की थी। और आज यह पूरा कारोबार इनका पूरा परिवार मिलकर संचालन करता है. इनमें सुरेश चन्द्र लखारा (पिता), अम्बा देवी(माँ), मनोज और उनके भाई श्याम व दोनों भाइयो की पत्नी संगीता व उमा सभी इस कारोबार को मिलकर संचालित करते है।
लाख का कैसे होता है उत्पादन
भारत लाख का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला देश है। कुछ राज्यों में लाख पैदा होती है, लेकिन सर्वाधिक खपत राजस्थान में ही होती है। लाख, कीटों से उत्पन्न होता है। कीटों को लाख कीट, या Laccifer Lacca, Carteria Lacca and Tachycardia कहा जाता हैं। लाख कीट कुछ पेड़ों पर पनपते है, जो भारत, बर्मा, इंडोनेशिया तथा थाइलैंड में उपजते हैं।
लाख की चूड़ियां बनाने की प्रक्रिया
ये बात ग़ौर करने लायक़ है कि आज भी लाख की चूड़ियां हाथों से ही बनाईं जाती हैं। आज भी सदियों पुरानी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। उसे बदला नहीं गया है और पूरी प्रक्रिया में कहीं भी मशीन का प्रयोग नहीं होता है। वही पूराना बढ़िया हुनर और औज़ारों का इस्तेमाल होता है।
चूड़ी बनाने के लिये रंगीन रोल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और फिर से उन्हें रोल कर दिया जाता है। खांचे वाले लकड़ी के औज़ार खली से फिर रंगीन छोटे हिस्से को दबाया जाता है। इस प्रक्रिया से लाख एक संकरे खांचे का रुप ले लेता है। इसके बाद इसका लूप तैयार किया जाता है। इसे कोयले पर एक बार फिर गर्म किया जाता है। दस्तकार लाख की तैयार चूड़ी को सही साइज़ और आकार देने के लिये उसे लकड़ी की खराद पर चढ़ाते हैं। इसे चमकाने के लिये मुलायम कपड़ों से रगड़ा जाता है। इन तमाम प्रक्रियाओं के बाद लाख की रंगीन चूड़ी बन जाती है और पहनने वाली की कलाई की शोभा बढ़ाने के लिए तैयार हो जाती है।
इन चूड़ियों के विभिन्न प्रकार और डिज़ाइन होते हैं। एक चूड़ी बनाने में कितना समय लगेगा वह इस बात पर निर्भर करता है कि चूड़ी किस प्रकार की होगी और उस पर सजावट कैसी होगी। औसतन बारह चूड़ियां बनाने में छह से सात घंटे लग जाते हैं। कुछ रंगीन चूड़िया साधारण होती हैं जबकि कुछ अलंकृत होती हैं। चूड़ियों की सज्जा में छोटे क़ीमती नग और कांच के टुकड़े इस्तेमाल किये जाते हैं। चूड़ी पर महीन साजसज्जा सुई से की जाती है। इन सब प्रक्रिया के बाद ये चूड़ियां मार्केट में जाने के लिए तैयार होती है। इनके यहाँ कांच की चूड़ियां, ब्रास, प्लास्टिक व तरह-तरह की चूड़ियां मिलती हैं।
महाभारत की एक रोचक कथा
महाभारत की एक रोचक कथा के अनुसार कौरवों के राजा दुर्योधन ने एक वास्तुकार को ऐसा महल बनाने का आदेश दिया था जहां पांडवों को ख़त्म किया जा सके। वास्तुकार ने इस काम के लिये लाख का महल बनाया, जिसे लाक्षागृह के नाम से जाना गया। लाख चूंकि तेज़ी से आग पकड़ लेता है। इसलिये सोचा गया था कि महल में आग लगने के बाद पांडव बाहर नहीं निकल पाएंगे। लेकिन पांडवों को इस साजिश का पहले ही पता चल गया था और उनके लिये महल से बाहर निकलने का एक गुप्त मार्ग बना दिया गया था।
शिव और पार्वती के साथ भी एक रोचक लोक कथा जुड़ी हुई है
इसी तरह हिंदू पुराण में शिवजी और पार्वती के साथ भी एक रोचक लोक कथा जुड़ी हुई है जिससे लाख की चूड़ियों के महत्व के बारे में पता चलता है। कहा जाता है कि शिवजी और पार्वती के विवाह के दौरान पार्वती के लिये चूडियां बनाने के उद्देश्य से चूड़ियां बनाने वाला एक समुदाय बनाया गया जिसे लखेड़ा कहते थे। विवाह के अवसर पर शिवजी ने ये चूड़ियां उपहार के रुप में पार्वती को दीं। तभी से विवाहित महिलाओं या दुल्हनों में लाख की चूड़ियां पहनने का रिवाज़ शुरु हो गया।
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