उदयपुर के पहले शाही म्यूजिक बैंड के घराने का इतिहास


उदयपुर के पहले शाही म्यूजिक बैंड के घराने का इतिहास 
 

शाही दरबार बैंड थे महाराणा के पर्सनल परफॉर्मर 

 
shahi darbar band

उदयपुर, 15 दिसंबर 2023। हर शहर की अपनी एक खास फिज़ा होती है। हमारे शहर उदयपुर की भी है और आज अपने इस खास शहर के एक खास बैंड के बारे में आपको बताएंगे। हिंदुस्तानी शादी बिना घोड़ी और बिना बैंड के पूरी नहीं होती। जब-जब सैयां घोड़ी पे सवार होते हैं, उनकी शान में चार चांद लगाते हैं बैंड वाले। शादियों के अवसर पर बैंड-बाजा बजते किसने नहीं देखा है लेकिन हममें से शायद ही किसी ने ब्रास बैंडवालों से कभी बातचीत की होगी। जब भी शादियों में उन्हें बुक किया होगा, पैसे के मोल भाव पर ही बात हुई होगी उस से आगे की नहीं। उदयपुर टाइम्स टीम ने पहली बार अपने शहर के बैंडवालों का इतिहास जाना।

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शाही दरबार बैंड

उदयपुर के "शाही दरबार बैंड" वालों की कहानी शुरू होती है कासम खां साहब से, कहते हैं कासम खां साहब ने ही उदयपुर शहर के पहले बैंड की नींव रखी थी।

कासम खां साहब
कासम खां साहब

इस आलेख में हम आपको बताएंगे एक शाही इतिहास के बारे

उदयपुर टाइम्स टीम ने जब "शाही दरबार बैंड" के संचालक मोहसिन खां से बात की तो उन्होंने बताया की उनके पूर्वज भीलवाड़ा के रहने वाले थे। वे बताते है की उनके परदादा कासम खां साहब के साथ उनके चचेरे भाई व स्टाफ के कुछ मेंबर्स भीलवाड़ा से उदयपुर के सिटी पैलेस में एक शादी समारोह में सात दिनों तक ढोल व बैंड-बाजे बजाने के लिए आए थे।
 

अमीर

मोहसिन खां बताते हैं कि उनके परदादा-कासम खां साहब कुछ दिनों के लिए उदयपुर रूक गए। वे बताते की उस समय बेलगाड़ियों का दौर था, तो सभी लोग उस पर सफ़र करते थे और देखते ही देखते कासम खां साहब (परदादा) उस समय के महाराणा भूपाल सिंह के पर्सनल परफॉर्मर बन गए। मोहसिन खां बताते हैं कि कासम खां साहब हारमोनियम, फ्लूट व शहनाई (Clarinet) जैसे संगीत वाद्ययंत्रों को बजाने के साथ मांड गाया करते थे। वे हारमोनियम के साथ मांड गायकी करते थे (मांड गायन शैली का राजस्थान सबसे लोकप्रिय राजस्थानी लोक गीतकेसरिया बालम)

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1930 में स्थापित हुआ था बैंड

शाही दरबार बैंड की स्थापना 1930 में कासम खां साहब द्वारा की गई थी। वे महाराणा भूपाल सिंह के दरबार हॉल में उनके पर्सनल परफॉर्मर बन चुके थे। महाराणा भूपाल सिंह ने कासम खां साहब से खुश होकर उन्हें भेंट स्वरूप 5 बैंड मेंबर्स के साथ संगीत वाद्ययंत्र तोहफ़े में दिया और महाराणा भूपाल सिंह ने ही कासम खां साहब के बैंड को एक महत्वकांक्षी नाम भी दिया था- "The Kadmi Darbar Bhupal Music Band" मोहसिन खां बताते है कि आज भी उनके पास 1930 में जो बैंड स्थापित किया गया था उसका ताम्र पत्र (प्रशस्ति-पत्र) मौजूद हैं जिसे महाराणा ने खुद उनको ये दिया था ताकि वे अपने बैंड का संचालन कर सके।

MAHARANA
महाराणा भूपाल सिंह

 अब जानते हैं अमीर खां साहब के बारे में

अमीर
अमीर खां साहब

1989 में "दरबार म्यूजिक बैंड" की स्थापना हुई।

अमीर खां साहब
अमीर खां साहब

मोहसिन खां बताते हैं कि 1989 में उनके परदादा (कासम खां साहब) के बाद उनके "दादा अमीर खां साहब" ने इस बैंड का संचालन करते थे। अमीर खां साहब ने बैंड का नाम बदलकर "दरबार म्यूजिक बैंड" रख दिया जो की इस बैंड का दूसरा नाम था।

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अमीर खां साहब
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अमीर खां साहब जल तरंग बजाते हुए ।

मोहसिन खां बताते हैं कि उनके दादा अमीर खां साहब एक मशहूर जल तरंग, हारमोनियम, फ्लूट, शहनाई वुडविंड ( Clarinet) और कठपुतली शो में संगीत के एक बहु-वाद्य कलाकार थे। अमीर खां साहब भारतीय लोक कला मंडल में सीनियर आर्टिस्ट के तौर पर वहां के सीनियर आर्टिस्ट ग्रुप में काम भी किया करते थे ।

अमीर
अमीर खां साहब

अमीर खां साहब ने 52 देशों में अपने संगीत की प्रस्तुतियां दी थीं। मोहसिन खां बताते हैं कि उनके दादा अमीर खां साहब को संगीत में उत्कृष्टता के लिए वर्ष 1971 में "शाह ऑफ़ ईरान" द्वारा सम्मानित किया गया था ।

ज्ञानी ज़ैल सिंह
ज्ञानी ज़ैल सिंह

वर्ष 1985 में अमीर खां साहब को भारत के सातवें राष्ट्रपति "ज्ञानी ज़ैल सिंह" ने भी अमीर खां साहब की संगीत में शानदार प्रस्तुति के लिए उन्हें सम्मानित किया था। इसके साथ ही भारत के दूसरे "प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री" ने भी अमीर खां साहब को उनकी बेहतरीन प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया था। 

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री
अमीर खां साहब पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ
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अमीर खां साहब

बड़ी होली में अमीर खां साहब
बड़ी होली में अमीर खां साहब

मोहसिन खां बताते हैं कि ओल्ड सिटी में जैन मंदिर (मोची बाज़ार) के नीचे आज भी उनकी पुरानी दुकान "दरबार बैंड" के नाम से मौजूद हैं।

जानते हैं मोहम्मद सलीम खां साहब के बारे में

सलीम खां साहब जब 14 वर्ष के थे।  14
सलीम खां साहब जब 14 वर्ष के थे।

1990 से अभी तक 

मशहूर दिग्गज शहनाई वादक "अमीर खां साहब" के बाद उनके बेटे "सलीम खां साहब" ने 1990 में बैंड का नाम बदलकर "शाही दरबार बैंड" कर दिया जो अभी तक चल रहा है। यह इस बैंड का तीसरा नाम है। सलीम खां साहब ने भी भारतीय लोक कला मंडल में जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर 5-6 साल तक प्रस्तुति दी थी। उन्होंने इंडिया टूर के दौरान अलग-अलग स्टेट में अपने संगीत बेहतरीन प्रस्तुतीयां दी थी।

पहली
सलीम खां साहब

सलीम खां साहब ने वर्ष 1999 में उदयपुर के सिटी पैलेस में हुई "पहली शाही शादी" में शाही दरबार बैंड के 51 मेंबर्स के समूह के साथ प्रस्तुति दी थी। इसके अलावा शाही दरबार बैंड ने जग मंदिर पैलेस में वर्ष 2003 में बॉलीवुड इंडस्ट्री की 90 के दशक में अपनी हिट फिल्मों से पहचानी जाने वाली रवीना टंडन की भव्य शादी में भी सलीम खां साहब ने अपने बैंड के मेंबर्स के साथ शानदार प्रस्तुति दी थी ।  

रवीना टंडन की शादी में सलीम खां साहब का फतेह पोल में
रवीना टंडन की शादी में सलीम खां साहब फतेह पोल से निकलती बारात

गलियाकोट की मस्जिद के उद्घाटन समारोह में मोहम्मद सलीम खां ने विशिष्ट अतिथि भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत और डॉ. सैयदना बुरहानुद्दीन मौला के सम्मान में सलीम खां साहब ने विशेष प्रस्तुति दी थी । 

उप राष्टपति भैरोंसिंह शेखावत
उप राष्टपति भैरोंसिंह शेखावत के साथ सलीम खां साहब 

अब जानते है चौथी पीढ़ी के बारे में 

शाही दरबार बैंड
शाही दरबार बैंड

तीन दशक लंबे इतिहास वाला बैंड अब "चौथी पीढ़ी" द्वारा चलाया जाता है।

4 th Generation
4 th Generation

सलीम खां साहब के तीन बेटे है। बड़े वाले बेटे का नाम जावेद खां, मास्टर वसीम खां और सबसे छोटे बेटे का नाम मोहसिन खां है। ये तीनों भाई अपने पापा के साथ मिलकर उनके शाही दरबार बैंड का संचालन करते है। आप इनकी इंस्टाग्राम पेज shahidarbarband पर भी देख सकते है। 

इनके यहाँ आपकों हर तरह के बैंड के ऑप्शन मिलेंगे जेसे की :-

ब्रास बैंड,ट्रॉली बैंड,शाही लवाज़मे, वेलकम बैंड, बैगपाइपर बैंड, राजस्थानी लोक नृत्य, बग्गी, गोड़ी, ऊंट व हाथी, लंगा ग्रुप, डोली व पालकी, कालबेलिया ग्रुप निम्न बैंड की सुविधाएं है।

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