आजकल जहां भी देखो वहीं पर कोरोना और केवल कोरोना की चर्चा है .अखबार, व्हाट्सएप मैसेज, जहां देखो वहीं कोरोना।
यह सही है कि कोरोना एक खतरनाक बीमारी है, एवं इसका प्रसार बड़ी तीव्र गति से होता है - परंतु यह भी सही है कि इस बीमारी के कारण वर्तमान में जो मृत्यु दर है उससे कहीं अधिक अन्य बीमारियों से भी मृत्यु हो जाती है, हो सकता है इससे अधिक तो एक्सीडेंट के कारण है मृत्यु हो जाती हैं।
मैं यह महसूस कर रहा हूं कि हमने कोरोना के भूत को अपने स्वयं पर एवं अपने आसपास के आभामंडल पर जरूरत से ज्यादा ओढ़ लिया है। यहां मेरा इस महामारी के प्रति लापरवाह होने या इसको कम आंकने का बिल्कुल भी आशय नहीं है परंतु यह समझ लेना आवश्यक है कि जब तक इस बीमारी के लिए कोई वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक हमें कोरोना के साथ ही जिंदगी जीने का तरीका अपनाना पड़ेगा।
किसी भी स्थान पर कोरोना पॉजिटिव आ जाना ऐसा कतई नहीं है की उस जगह की अधिकांश व्यक्तियों की मृत्यु तय है। अखबार में हमारी नज़र यही ढूंढती है कि मेरे मोहल्ले, मेरे गांव या मेरे शहर में तो कोई पोज़िटिव नहीं आ गया? यदि ऐसा पढ़ने को मिल जाता है तो शायद एक डर मन में आ जाता है और स्वयं के परिवार के अलावा अन्य सभी इसके लिए दोषी लगते हैं।
यही भावना गलत है। यह बीमारी कोई भी व्यक्ति जानबूझकर ना तो ग्रहण करता है, और ना ही जानबूझकर इसका प्रसार करता है। हमने इतिहास में पढ़ा है कि कठिन समय में लोग एक दूसरे की मदद करते हैं। यह भी एक ऐसा ही कठिन समय है जिसमे हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। जो जितना पढ़ा लिखा है या जो जितना आर्थिक रूप से सक्षम है वह यह मदद करने में भी सक्षम है। .यदि आपके आस-पास कोई कोरोना पॉजिटिव आ जाता है तो दुश्मन मानना बहुत बड़ी गलती होगी। हम अपने पड़ोस में आए कोरोना पॉजिटिव की और कुछ नहीं तो भावनात्मक हमदर्दी दिखाकर उसकी मदद कर सकते हैं।
यदि हम भविष्य की तरफ देखें तो जब तक कोरोना वैक्सीन नहीं आ जाता, तब तक ज़िंदगी एवं कोरोना साथ-साथ चलेंगे। कोई भी एक दूसरे के लिए नहीं रुकेगा। अतः जब भी लॉक डाउन खुलेगा उसके बाद भी कोरोना नहीं रुकेगा। कोरोना पॉजिटिव की सूचना उसके बाद भी जगह-जगह से आएगी और यह भी मुमकिन है की ज्यादा केसेस आएं क्यूंकि कहीं ना कहीं लॉकडाउन ही एक कारण है की हिंदुस्तान में पॉज़िटिव मामले दूसरे देशों के मुकाबले कम हैं।
अतः हम कोरोना और जिंदगी को साथ-साथ चलाने के लिए जो दिनचर्या और आदतों में बदलाव करना है उसके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए एवं उनका पालन अभी से करना चाहिए।
मैं इस विषय पर विशेषज्ञ नहीं हूं, परंतु थोड़ा बहुत पढ़ कर जो समझ में आया है, इसमे यह है कि फेस पर फेस मास्क लगाना, बार-बार हाथ धोना, बिना वजह कही बाहर ना आना जाना, बिना वजह एक दूसरे से संपर्क, अधिकाधिक कार्यों का बिना एक दूसरे से मिले ही निष्पादन करना, आदि आदतों को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना होगा।
हो सकता है कुछ समय बाद घर के गेट पर, सार्वजनिक स्थानों पर, मंदिरों के गेट पर हाथ धोने के लिए पानी एवं साबुन की व्यवस्था अनिवार्य हो जाए। इसी तरह और भी कई उपाय आपको स्वयं के स्तर पर उचित लगेंगे और आप स्वयं ही उनको लागू करने लग जाएंगे।
परंतु यह स्थिति तब होगी जब हम हमारे दिमाग से इस कोरोना के भूत को उतारेंगे एवं इससे लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार होंगे। अभी हम कोरोना के कारण मानसिक रूप से मातम की स्थिति में हैं। जब घर में मातम होता है तो हमारा स्वयं का दिमाग नहीं चलता है एवं हमारे निकट संबंधी एवं परिचित कुछ दिनों के लिए मातम वाले घर की सारी व्यवस्था सारे निर्णय आदि संभाल लेते हैं और पगड़ी की रस्म के उपरांत स्वयं घर के लोग संभाल लेते हैं।
अभी हम कोरोना के कारण मातम की स्थिति में है एवं जब तक हम इस कोरोना से डरेंगे, इसके भूत को अपने ऊपर सवार रखेंगे, तब तक आपके द्वारा लिए जाने वाले निर्णय आप द्वारा नहीं लिए जाएंगे एवं हम हमारे द्वारा निर्णय के स्थान पर अन्य को यह निर्णय लेने के लिए अधिकृत करेंगे जो उचित नहीं है।
यदि हमारे पड़ोस में कोरोना पॉजिटिव पाया गया है, तो हम स्वयं ही स्वेच्छा से जनता कर्फ्यू लगाकर उस एरिया में इसका प्रसार को रोक सकते हैं। इस दौरान संक्रमण संक्रमण वाले व्यक्ति स्वयं ही अधिकारियों को सूचित करें स्वयं का टेस्ट कराने के लिए आगे आएं तो उस क्षेत्र में सरकारी लॉक डाउन घोषणा की कहां आवश्यकता है जो कि वर्तमान में हम ऐसा नहीं कर रहे हैं तो सरकार को ऐसा करना पड़ रहा है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है. इस देश के संविधान में सभी शक्तियां केवल और केवल हम में समाहित हैं अतः हम सभी इस कोरोना के भूत की पगड़ी की रस्म अदा कर मातम का अंत करें एवं हमारी शक्तियों का हम ही उपयोग करें इसके लिए हम सब जितनी जल्दी तैयार होंगे उतना अच्छा होगा।
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