आज हम बच्चों को अति सुरक्षा का कवच पहना रहे हैं जो उन्हें भविष्य व असली जिंदगी के लिए तैयार नहीं कर रहा है। ऐसे बच्चे थोड़ी सी निराशा में ही टूट जाते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सभी सचेत रहता हैं पर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अनभिज्ञता बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। जिस प्रकार शरीर कभी ना कभी अस्वस्थ हो सकता है, ठीक उसी प्रकार हमारा मन भी कभी कभार अस्वस्थ हो जाता है। जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य एवं अस्वस्थता को जाना जा सकता है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य और उसकी अस्वस्थता को भी पहचाना जा सकता है।
जब कोई शारीरिक रूप से अस्वस्थ होता है तो अनेक लक्षण उसके शरीर एवं व्यवहार में दिखने लगते हैं। उसकी कार्यक्षमता घट जाती है, दुर्बलता का अनुभव होता है। लक्षणों के आधार पर ही पता लगता है कि किस प्रकार की शारीरिक अस्वस्थता है और उसके अनुसार उपचार किया जाता है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ होता है तो उसके आंतरिक एवं बाह्य व्यवहार में परिवर्तन नजर आता है। अक्सर हम उन लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं जो मानसिक अस्वस्थता के बढ़ने का कारण बन जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य खराब होने से व्यक्ति के मानसिक, भावात्मक, क्रिया प्रधान कार्य प्रभावित होते हैं। जैसे बिना कारण अत्यधिक चिंतित रहना , अत्यधिक डर लगना जिसका कोई कारण प्रतीत नहीं होता, दूसरों की अत्यधिक निंदा करना,असभ्य भाषा प्रयुक्त करना, असामाजिक व अवांछनीय व्यवहार करना, संवेगात्मक तनाव अनुभव करना। किसी व्यक्ति के व्यवहार में इस तरह के परिवर्तन मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के संकेत माने जाते हैं।
जिस प्रकार शारीरिक अस्वस्थता सामान्य ( सिर दर्द या पेट दर्द) से लेकर गंभीर रोग तक हो सकते हैं ठीक उसी प्रकार मानसिक अस्वस्थता कम अथवा अधिक हो सकती है।
मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
- कठिन व तनावपूर्ण परिस्थिति में टूट जाते हैं या असंतुलित हो जाते हैं।
- स्वयं की क्षमताओं पर विश्वास नहीं रहता है।
- अपने संवेगों तथा भावों पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, अत्यधिक क्रोधित होना उनकी आदत बन जाती है।
- स्वयं को परिवार पर भार समझते हैं, स्वयं को महत्वपूर्ण नहीं मानते।
- दूसरों के विचारों की कद्र नहीं करते हैं।
- क्रियाशीलता कम हो जाती है।
- सभी की आलोचना करते हैं।
- रचनात्मकता तथा सृजनात्मकता में रुचि नहीं रहती है।
- मन में जोश, उल्लास व उमंग का अभाव हो जाता है।
- उद्देश्यहीन जीवन व्यतीत करने लगते हैं। उद्देश्य विहीन हैं अतः उसे प्राप्त करने की उत्कंठा भी नहीं रहती है।
- कुसमायोजित होते हैं, किसी के साथ सामंजस्य नहीं बैठता है।
- अकेले रहना पसंद करते हैं, उदास व निराश ,उखड़े उखड़े रहते हैं।
- स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है तथा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां
- परिवार के किसी सदस्य के मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव आने पर परिजन इसे छिपाने का प्रयास करते हैं। संभवत इसका कारण समाज में व्याप्त कलंक है ,इसे पागलपन से जोड़ दिया जाता है।
- सामान्य व्यक्तियों की मानसिक अस्वस्थता के प्रति अनभिज्ञता,जिससे मानसिक अस्वस्थता वाले व्यक्ति के लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और यह गंभीर मानसिक रोग के रूप में तब्दील हो जाता है।
- मानसिक अस्वस्थता को देवी प्रकोप या कोई परा शक्ति की हवा लगने के रूप में लिया जाता है। उपचार के लिए भी देवरों में ले जाया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप रोग और गहरा होता चला जाता है।
- मानसिक अस्वस्थता के कुछ लक्षण शरीर पर नजर आते हैं जिसे मनोशारिक रोग कहते हैं जैसे हिस्टीरिया के दौरे।
- परिजन फिजीशियन के पास ले जाते हैं, विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं, सब रिपोर्ट सामान्य आती है। फिजिशियन शरीर का इलाज करते हैं, मन का इलाज नहीं होने से मानसिक स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो पाता है।
- मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति भी स्वयं को सामान्य ही मानता है। अतः सहयोग नहीं करता है।
मानसिक अस्वस्थता के कारण
वैसे हर व्यक्ति के जीवन में अलग- अलग परिस्थितियां होती हैं। सभी को जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। कुछ लोग संघर्ष के लिए बचपन से ही तैयार किए जाते हैं और उनका 'स्व' मजबूत होता है वहीं कुछ लोगों का 'स्व' कमजोर होता है जो जिंदगी के छोटे से तूफान में ही असंतुलित हो जाते हैं। पहले लोगों को कई अभावों में रहना पड़ता था पर फिर भी वे जिंदगी में मजबूती से खड़े रहे, ना उन्होंने मूल्यों के साथ समझौता किया, ना वे टूटे।
आज हम बच्चों को अति सुरक्षा का कवच पहना रहे हैं जो उन्हें भविष्य व असली जिंदगी के लिए तैयार नहीं कर रहा है। ऐसे बच्चे थोड़ी सी निराशा में ही टूट जाते हैं। इसी कारण मानसिक अस्वस्थता बहुत तेजी से बढ़ रही है।
सामान्य कारण निम्नलिखित हैं
- जैविक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएं: भूख प्यास, नींद व यौन आदि जैविक आवश्यकताएं हैं, लंबे समय तक इनकी सतत पूर्ति नहीं होने पर शरीर के साथ मन भी अस्वस्थ हो जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएं होती है जैसे सुरक्षा, प्यार,किसी का होने की इच्छा,आत्म सम्मान आदि की पूर्ति ना होने पर भी व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ होने लगता है।
- परिवार: परिवार में माता पिता का आपस में झगड़ा, अलग हो जाना, संयुक्त परिवार, संयुक्त परिवार में आपसी झगड़े, माता पिता में से किसी एक को या दोनों को खो देना, आर्थिक तंगी, माता या पिता का अत्यधिक सख्त होना ,टोकना, अत्यधिक डांटना, अन्य बच्चों के साथ तुलना व पक्षपात, सौतेली मां का दुर्व्यवहार, माता-पिता का एक दूसरे से दूर रहना - ये स्थितियां बच्चे में असुरक्षा का भाव पैदा कर देती हैं। बाल्यावस्था के ये अनुभव बड़े होने तक बने रहते हैं।
- विद्यालय- महाविद्यालय: कभी-कभी विद्यालय और महाविद्यालयों में साथियों द्वारा चिढाए जाने से कुछ बच्चे क्षुब्ध हो जाते हैं। हालांकि जिन का "स्व" मज़बूत होता है वे इस परिस्थिति से निपट लेते हैं जबकि जिनका स्व कमजोर होता है वे घबरा जाते हैं। कभी-कभी अध्यापकों का सख्त रवैया बच्चों को मानसिक रूप से अस्वस्थ बना देता है। पढ़ाई का अत्यधिक बोझ तथा अध्यापक की नीरस शैली बच्चों को उबाऊ लगती है और धीरे-धीरे उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ बना देती है।
- स्पर्धा: आजकल प्रवेश से लेकर नौकरी तक सब चीज में स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। बार-बार की असफलता व्यक्ति को मानसिक रूप से तोड़ देती है।
- बेरोजगारी: लंबे समय तक रोजगार के तलाश करने के बावजूद रोजगार नहीं मिलता है तो व्यक्ति के अंदर बेहद निराशा घर कर जाती है और उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ बना देती है।
- प्रेम प्रसंग: प्रेम प्रसंग में असफलता युवाओं को मानसिक रूप से अस्वस्थ व रोगी बना देती है ।
- स्वतंत्रता: हालांकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः सामाजिक बंधनों में तो रहना ही पड़ता है पर हर व्यक्ति को एक सीमा के पश्चात स्वतंत्रता आवश्यक है। किसी व्यक्ति पर अत्यधिक बंधन उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ बना देता है।
- उच्च आकांक्षाएं: सपने ऐसे संजोने चाहिए जिन्हें पूर्ण करना संभव है। अत्यधिक उच्च आकांक्षाएं( स्वयं की या माता-पिता द्वारा थोपी गई) जो पूर्ण नहीं हो पाती वे मानसिक रूप से अस्वस्थ बनाती हैं। व्यक्ति एक मानसिक द्वंद्व की स्थिति में फंस सा जाता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए क्या करें?
जब मन पर किसी भी कारण से कोई बोझ या द्वन्द्व के स्थिति होती है तब मन अस्वस्थ होता है। अतः अचेतन में दबी इन दमित इच्छाओं को किसी भी तरह से बाहर लाकर मन को स्वस्थ रखा जा सकता है।
- हर उम्र में खेलें: खेल व्यक्ति को संघर्ष करना सिखाती है, मजबूत बनाती है। अचेतन में स्थित दमित इच्छाएं, संघर्ष व द्वन्द खेल के माध्यम से बाहर आ जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए खेल सर्वोत्तम माध्यम है।
- लिखें: कविता, कहानी या अपनी पीड़ा को सामान्य शब्दों में लिखकर मन के बोझ को हल्का किया जा सकता है।
- गायन: अपने पसंद के गाने गाकर मन को स्वस्थ्य रख सकते हैं। जब हमारा मन उदास होता है उस दिन हमें गंभीर गाने गाना व सुनना अच्छा लगता है।
- नृत्य: नृत्य किसी अच्छी थेरेपी से कम नहीं है। नृत्य के माध्यम से अचेतन में दमित इच्छाएं बाहर आ जाती हैं।
- खुले वातावरण में घूमना, व्यायाम व योग: जैसे ही हम खुले वातावरण ले जाते हैं, विभिन्न वस्तुओं को देखते हैं तो हमारा मन हल्का महसूस करने लगता है। योग के माध्यम से हम अंतः मनन करते हैं।
- गार्डनिंग: विशेष तौर से फूलों के पौधों को लगाना, निहारना,पानी देना। यानी प्रकृति के नजदीक जाने से मन फूलों की तरह खिल उठता है ।
- हॉबी: चित्रकारी, सिलाई ,साज सज्जा या अन्य कोई भी कार्य जिसमें आनंद की अनुभूति हो,मन को भी आनंदित कर देता है।
- गपशप: मित्रों के साथ गपशप का आनंद इसीलिए आता है क्योंकि यह गपशप मन को तरोताजा कर देती है। गपशप के माध्यम से कहीं ना कहीं हम अपने अचेतन में बसी दमित इच्छाओं को बाहर निकाल देते हैं।
- अकेले में बोल कर: कई बार रास्ते में राहगीर को अपने आप से बोलते ,यहां तक की चेहरे के हाव भाव में भी परिवर्तन होते देखा जाता है।बड़बड़ा कर मन के बोझ को हल्का किया जा सकता है।
हर व्यक्ति उपरोक्त किसी भी प्रकार के कार्य में अपने आप को कुछ समय व्यस्त रखें तो मानसिक अस्वस्थता जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। किसी व्यक्ति को स्वयं में या घर में किसी परिजन में मानसिक अस्वस्थता के लक्षण नजर आए तो छुपाने की बजाय जल्द से जल्द मनोचिकित्सक की राय लेना श्रेयस्कर रहता है।
डॉ सुषमा तलेसरा
मनोवैज्ञानिक