मौत का नहीं... इन्हें चुनाव प्रचार ख़त्म होने का इंतज़ार था

मौत का नहीं... इन्हें चुनाव प्रचार ख़त्म होने का इंतज़ार था

संयोग या प्रयोग- आज से चुनाव प्रचार समाप्त, कल 6 बजे से राज्य में नाइट कर्फ्यू  

 
मौत का नहीं... इन्हें चुनाव प्रचार ख़त्म होने का इंतज़ार था

प्रचार समाप्त होते ही जागा कोरोना समाप्त करने का जज़्बा

कोरोना के बढ़ते कहर के बीच राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कल 16 अप्रैल से सभी शहरों में शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाने का आदेश दे दिया है।  साथ ही कड़े प्रतिबंध लागू करने का संकेत भी दिया है।  और दिया जाना भी ज़रूरी है क्योंकि कोरोना की वर्तमान लहर खतरनाक है।  ऐसे में राज्य सरकार का शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक का कर्फ्यू का फैसला बिलकुल दुरुस्त है। संयोगवश राज्य के आगामी उपचुनाव के प्रचार का आज आखिरी दिन है।  और कल शाम से कर्फ्यू की शुरुआत। अब यह तो सरकार ही जाने की यह एक महज़ संयोग है या प्रयोग ? लगता है सरकार का कोरोना समाप्ति का जज़्बा चुनाव प्रचार समाप्त होते ही अचानक से जाग उठा है। 

कोरोना के बढ़ते हाहाकार के बीच ही कल राज्य सरकार ने RBSE बोर्ड की परीक्षाओ को स्थगित कर दी।  क्योंकि बच्चो के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। ज़िंदा रहे तो परीक्षा बाद में भी हो जाएगी।  लेकिन चुनाव प्रचार में बाधा नहीं आनी चाहिए। क्योंकि 'चुनाव प्रचार महोत्सव' ही तो देश का सबसे बड़ा महोत्सव है। फिर चाहे इस 'चुनाव प्रचार महोत्सव' के चलते खुद प्रत्याशी पॉजिटिव क्यों न आ जाये। प्रचार नहीं थमना चाहिए। यहीं से हमें पता लगता है हमारे देश के 'नेता' तथाकथित जनहित' के लिए चुनाव जीतने के लिए कितना बड़ा त्याग कर सकते है।  

चिकित्सा विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि राज्य में सामाजिक-धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को सीमित करने, कर्फ्यू का समय बढ़ाने, विवाह एवं अन्य समारोह में लोगों की संख्या कम करने साथ ही लॉकडाउन के समान कड़े एवं प्रभावी कदम उठाना जरूरी है। बिलकुल ज़रूरी है लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों के सुझाव भी 'सामाजिक-धार्मिक-गतिविधियों' तक ही सिमित रह गए 'राजनैतिक गतिविधियों' पर सुझाव देना उनके बूते के बाहर है। 

यह हालात सिर्फ हमारे राज्य के ही नहीं है। सम्पूर्ण देश ऐसी दोगली मानसिकता के चलते एक तरफ कोरोना की मार झेल रहा है जहाँ उसके पास न कोरोना से लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन है न संभावित लॉकडाउन से निपटने की तैयारी। फिर से महानगरों से मज़दूरों का पलायन शुरू हो चूका है। अस्पताल के बाहर कहीं रेमेडीसीवीर के लिए तो कहीं भर्ती के लिए लगी हुई लाइन, भयावह होती जा रही है देश की तस्वीर। लेकिन इसी देश में बंगाल, आसाम, तमिलनाडु में चुनाव के चलते जनता अपने अपने 'नेताओ' के पीछे लाइन लगा के खड़ी है तो उत्तराखंड के हरिद्वार में धार्मिक आस्था के चलते उमड़ पड़ी है। लेकिन सरकार को कोई चिंता नहीं सरकार को इन भीड़ में 'वोट बैंक' नज़र आ रहा है।        

कोरोना के केस बढ़ भी गए तो सरकार को अधिक चितिंत होने की आवश्यकता नहीं। सरकार के लिए आप सिर्फ एक वोट या आंकड़े से ज़्यादा कुछ नहीं। अभी तो चुनावी रैली का हिस्सा बनिये और वोट दीजिये क्योंकि वोट सबसे ज़रूरी है। इतना ज़रूरी की कोई कोरोना संक्रमित भी अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहे तो सरकार उसे पीपीई किट पहनाकर मतदान करवाने को लेकर कटिबद्ध है। भले ही बाद में उसके परिजन पीपीई किट पहनकर उनकी अंतिम यात्रा सम्पन्न करे । सरकार व्यस्त है राज्यों के चुनाव करवाने में, येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने में , उसके लिए चाहे जनता कोरोना से मरे या चुनावी हिंसा में मरे कोई फर्क नहीं पड़ता। नेता को हर हाल में कुर्सी चाहिए। चाहे उस कुर्सी के नीचे कितने ही बेकसूरों की लाशें दबी हो संवेदनहीन सरकारों को कोई मतलब नहीं। 

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