राज्य की धर्मपरायण जनता के लिए कोई अच्छी खबर नहीं की कोरोना के खतरे को देखते हुए प्रदेश सरकार ने सभी तरह के धार्मिक आयोजनों (जुलूस, मेला, शोभायात्रा व अन्य भीड़ जुटने वाले कार्यक्रम) पर रोक लगा दी है। सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा भी प्रतिबंधित रहेगी। वहीँ 21 जुलाई को ईद-उल-जुहा पर सार्वजनिक नमाज और सार्वजनिक इबादत पर भी रोक लगा दी है। गृह विभाग की गाइडलाइन के मुताबिक हर धर्म के उन धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक रहेगी, जिसमें भीड़ जुटती है। जैन धर्म के चातुर्मास के दौरान भी भीड़भाड़ वाले धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक लगाई गई है।
महामारी के इस दौर में ऐसे धार्मिक आयोजनो और त्यौहारों पर रोक लगाना उचित ही है। ज़िन्दगी रही तो तीज त्यौहार तो अगले साल भी मना लेंगे यदि कोरोना की मेहरबानी कम हो जाये तो वैसे भी तीज त्यौहारों की मिठास तभी अच्छी लगती जब जेब भरी हुई हो।। जेब में आग तो कुछ दिनों पहले लगा लॉकडाउन और कछुआ चाल चलते व्यापार धंधो से वैसे ही लगी पड़ी है। ऊपर से पेट्रोल डीज़ल, एलपीजी सिलेंडर्स की कीमतों ने आग में घी डाल रखा है। बढ़ती हुई पेट्रोल डीज़ल की कीमतें धुंआधार नाबाद बल्लेबाज़ की तरह शतक पार करता हुआ डबल शतक की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में जनता त्यौहार मनाएगी तो भी कैसे ?
चलिए अब मुद्दे पर आते है सरकार ने धार्मिक आयोजनों पर तो रोक लगा दी लेकिन राजनैतिक त्यौहारों पर कब रोक लगाएगी ? कहीं पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते दामों के विरोध में रैली का त्यौहार तो कहीं किसी और विरोध में रैली का त्यौहार। और इन त्यौहारो के मनाने वाले न प्रशासन की सुनते है न पुलिस की। हालाँकि पुलिस प्रशासन इन त्यौहारों को रोकने में कितनी सक्षम है यह तो जनता जानती ही है। सवाल यह है की इन त्यौहारों को रोकेगा कौन ? सरकार स्वयं भी बढ़चढ़कर इन त्यौहारों में हिस्सा लेती है। जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का।
इधर, सरकार ने महामारी के चलते 10th बोर्ड और 12th बोर्ड की परीक्षा टाल दी जबकि उचित सोशल डिस्टेंसिंग के साथ छात्रों के केरियर की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस परीक्षा को आयोजित किया जा सकता था। लेकिन साहब यह परीक्षा है कोई चुनाव नहीं। चुनाव होता तो लोकतंत्र की रक्षा की खातिर सरकार कुछ भी कर गुज़रती और लोकतंत्र के इस पावन त्यौहार का आयोजन हर हाल में सम्पन्न करवाती।
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