वंदे भारत काल में गुजरे ज़माने के भाप के इंजिन


वंदे भारत काल में गुजरे ज़माने के भाप के इंजिन

यादों के झुरमट से ......
 
गुजरा हुआ जमाना आता नहीं  दोबारा  हाफिज खुदा तुम्हारा             “तनवीर नक़वी

मैं उतना बड़ा नहीं हूं, ठीक है कि मैं अपने साठ के दशक के मध्य में या उससे अधिक उम्र का होने का दावा कर सकता हूं. सेवानिवृत्ति के बाद, मुझे अपने मूल स्थान में जाने और कम से कम एक महीने तक रहने की अधूरी इच्छा थी, जो अभी पूरी नहीं हुई . कुछ बुनियादी कारणों से भी ऐसा संभव नहीं हुआ है. 

सबसे पहले, मेरे पूर्वजो का घर सुनसान है, मेरे भाई-बहनों ने मूल निवासी को छोड़ दिया है और घर बंद है. बस कुछ सप्ताहांतों पर, कभी-कभार ऐसे जाते है, मसलन वह जगह एक पिकनिक स्थल है जो बीती सदी की यादों से लबरेज है. मैं एक मेगा शहर में स्थायी रूप से रहता हूँ व पारिवारिक स्थिति ऐसी है कि मेरी अर्धांगिनी को इतनी लंबी अवधि के लिए यह शहरी आवास स्थान छोड़ कर मेरा साथ देने में कोई दिलचस्पी नहीं है. एक छोटा सा अवसर, जो कभी कभार मुझे मिलता है, मैं वहां हो आता हूँ जिसमे इस परित्यक्त घर को छू कर वापस लौट आने का क्रम जारी रहता है. यह किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं होता.

कुछ दिनों पहले, IRCTC पर टिकट बुक करते समय, मैं अपने एक पड़ोसी जगदीशजी जाट को याद कर बैठा, जो एक स्टीम लोको के पायलट थे. उनके अन्य साथी और एक अन्य पड़ोसी एक टेक चंद लोहार थे, उनकी सेवानिवृत्ति के कुछ पहले 9644 अहमदाबाद-उदयपुर रात्रि कालीन एक्सप्रेस के भाप इंजन के पटरी से उतरने से अपनी जान गंवा दी. मानसून का मौसम था और जिसमे चट्टानों के अचानक ढहने के कारण एक दुर्घटना के साथ हुई और उनका उनका इंजिन पार्टी से उल्ट गया. यह वाकया हिम्मतनगर से कुछ 15 से 20 किलोमीटर दूर शामलाजी रोड मार्ग पर हुआ था. यह जुलाई 1994 का समय था.

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मेरे एक बचपन के दोस्त, पड़ोसी और एक वायु सेना के सहकर्मी, जो मेरे मूल पर ही रहते है और मैं दशकों से नियमित रूप से उसके साथ बातचीत कर रहा हूं. यादों के झरोखे में जगदीश काका जो एक सेवानिवृत्त लोको-पायलट है को याद करने के बाद, मैंने गोपाल ( वायु सेना के सहयोगी) से कहा कि मेरी बात जगदीश काका से कराएं. जगदीश काका अब 87 साल के हैं और अपने घर से रेलवे स्टेशन के लिए नियमित रूप से शाम की सैर पर जाते है, जहां वह प्लेटफॉर्म नंबर 1 के दोनों छोरों को छूते हुवे वापस अपने घर लौट जाते है. हर दिन कुल छह किलोमीटर कि उनकी पैदल यात्रा। इस भरी पूरी उम्र में वे एकदम सचेत और कार्यशील है . कल, ऐसा हुआ कि गोपाल उदयपुर से लौटा और ट्रेन से उतरा और स्टेशन से निकलते समय संयोगवश वह जगदीश काका से मुलाकात हो गई.

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उसने तुरंत मुझे फोन किया और मुझे सूचित किया कि मैं काका से क्या पूछना चाहता हूं? काका सेलफोन के दूसरे छोर पर थे. शिष्टाचार और अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद, मैंने अपने कथन के साथ एक प्रश्न उठाया कि मीटर-गेज दिनों में भाप के इंजिन जो उपयोग में आते थे वे YP और YG श्रृंखला के थे. लेकिन, मुझे याद नहीं है कि कौन सी भाप का इंजिन जो आकार में छोटा था और खामलीघाट से मारवाड़ जंक्शन के बीच घाट सेक्शन में प्रयोग में लाया जाता था, जिसकी शक्ति गजब कि थी और घाट सेक्शन के चढ़ाई बखूबी तय करता था. उन्होंने तुरंत बताया कि यह टेल्को द्वारा भारत में बनाया गया रग श्रृंखला का जर्मन-मूल का इंजिन था. इस तरह के भाप के इंजिन बहुत कम ही बने थे और घाट सेक्शन में प्रयुक्त होते थे. इनका विनिर्माण 1972 के बाद नहीं हुआ. मेरे गृहनगर मावली जंक्शन का स्टीम या कोयले का लोको शेड 1996 में बंद हो गया और उसी साल जगदीश काका सेवा निवृत हो गए . उन्होंने कहा कि वह 1936 में पैदा हुए हैं और यह स्टेशन 1930 में मावली जंक्शन - मारवाड़ जंक्शन लाइन के उद्घाटन के साथ एक जंक्शन बन गया. देर शाम, उन्होंने उस स्टीम इंजिन का एक चित्र साझा किया, जो संयोगवश उनका अपना संग्रह नहीं है, बल्कि अन्य स्रोतों से उनके द्वारा प्राप्त किया गया है. सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि जगदीश काका अब 87 वर्ष के है परन्तु स्वास्त्य और ठीक है और अभी भी अपने रेलवे स्टेशन से जुड़े हुवे हैं, जिसे वह हर दिन अपनी शाम की अपनी वाक में छूते है.

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स्टीम इंजन लोको-शेड 1899 में मावली में स्थापित किया गया था और 1997 में डीजल इंजिन की शुरूआत के दौरान फुलेरा के उप-लोको-शेड के रूप में परिवर्तित हो गया. बाद में, जब फुलेरा को पूरी तरह से बीजी लाइन स्टेशन में बदल दिया गया था, तो शायद मावली राजस्थान में एकमात्र एमजी डीजल लोको-शेड था, जिसकी मावली - मारवाड़ रेल सेवा हेतु आवश्यकता थी. इस खंड में 24 घंटे में दो जोड़ी ट्रेनें थीं, लेकिन बाद में केवल एक जोड़ी ट्रेन में कमी आई और वर्तमान में एक जोड़ा ट्रैन इस खंड पर परिचालित है वह भी विशेष गाड़ी की श्रेणी जो की साधारण सेवा होते हुवे मेल / एक्सप्रेस का किराया वसूला जाता है . यह भारतीय रेल द्वारा अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से मुहं मोड़ने सा है. कुल जमा 151 किलोमीटर का सफर कोई साढ़े छह घंटे से अधिक से जहाँ औसत गति कोई 23 किलोमीटर प्रति घंटा. यह गाड़ी खामलीघाट से फुलाद तक अरावली की सुरम्य घाटियों के रावली- टाटगढ़ अभ्यारण से गुजरती है.प्रकृति का सुरम्य और नयनाभिराम नजारा देखने से यह यात्रा एक अविस्मरणीय होती है.

Mavli Jn - Bari Sadri The Bygone Era, History of  Indian Railway Udaipur Railway Station, Mavli Junction

आज मावली जंक्शन में 51 रेल गाड़ियां गुजरती है, उनमें से 29 दैनिक हैं और 21 अन्य साप्ताहिक या हफ्ते में तीन दिन वाली रेलगाड़ियां है. वर्तमान में दक्षिण भारत को जोड़ने वाली गाड़ियां लगभग शून्य है. अतीत में, इस अनूठे स्टेशन में सुबह 6:00 बजे से 10:50 बजे तक और शाम को 17:00 बजे से 21:15 घंटे तक ट्रेन का समय था. भाप के इंजिन लम्बी और तेज सीटी आपको सुबह में जगाएगी और रात 21:15 घंटे में आखिरी सीटी देगी शायद यह कहते हुवे कि आपके बिस्तर में जाने का समय हो गया है। 

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अंग्रेजी राज के समय मेवाड़ रियासत के प्रयास में इस सेक्शन के रेल लाइन का इतिहास कुछ इस तरह से है-
a ) बेड़च जंक्शन ( चित्तौरगढ़) से देबारी मार्ग 1.8.1995 से परिचालन में आया;
b ) 15.8.1898 से प्रभावी, चित्तौड़गढ़ तक 
c ) 25.8.1895 से राणा प्रताप नगर तक देबारी से
d ) 1.11.1930 के प्रभाव से मावली से कांकरोली तक बाद में 1942 में मारवाड़ तक बढ़ा;
e ) मावली से खेरोदा तक 15.1.1948 के प्रभाव से बाद में 1952 में बड़ी सादड़ी तक बढ़ा.
f ) पहली एक्सप्रेस ट्रैन (मग) चेतक एक्सप्रेस मार्च, 1976 में आरम्भ हुई .

(A YP Steam Power at RPZ.)

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गुजरे ज़माने की ट्रेनें इस प्रकार से थीं-

931-932 यात्री चित्तौड़गढ़- अहमदाबाद और वापसी .
9943-9944 एक्सप्रेस ओवरनाइट एक्सप्रेस उदयपुर सिटी से अहमदाबाद और वापस
9615-9616 चेतक एक्सप्रेस उदयपुर सिटी से दिल्ली सराय रोहिला और वापस
251-252 यात्री जोधपुर से उदयपुर शहर और वापस
217-218 यात्री उदयपुर शहर से चित्तौड़गढ़ और वापस
221 और 222 यात्री उदयपुर शहर जोधपुर और वापस
219 और 220 यात्री उदयपुर सिटी से मारवाड़ जंक्शन .
227-228 मिक्स @ मावली से बड़ी सादड़ी और वापस
भारतीय रेल में “ मिक्स ट्रेन ” की अवधारणा थी, जो यात्री सह माल गाड़ी थी. इस मार्ग पर एक रात्रिकालीन सेवा भी सेवा भी थी. ट्रेन का किराया 10 किमी रु. 2 / -, 25 किमी तक था रु.4 / -, 40 किमी तक रु.7 / - और 60 किलोमीटर तक रु। 9/- ( वर्ष 1989 )

(A YP steam Power at Udaipur City)

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(First super train Garib Nawaz Exp Ex UDZ-JP)

मावली अपनी रबड़ी-पूड़ी के लिए अद्वितीय था. किसी भी रेलगाड़ी के आगमन पर, रबड़ी-पूड़ी विक्रेताओं के नॉनस्टॉप स्वर सुने जाते थे . यहाँ ट्रेनें क्रॉसिंग के कारण 15 मिनट और उससे अधिक समय तक रुकती थीं और एक ट्रेन से दूसरी ट्रेन में जोधपुर-महू और जोधपुर-खंडावा जैसी सेक्शनल कोच के शंटिंग के कारण गाड़ियां का ठहराव लम्बा होता था. कई लाइसेंसधारी ठेलागाड़ियाँ और कुछ जलपान स्टाल भी थे. ये स्टॉल वर्ष 1937 में अस्तित्व में आए और इनके अग्रणी स्वर्गीय श्री जगनाथजी खत्री थे जो पाकिस्तान स्वतंत्रता पूर्व आ गए थे. अब द्रुतगामी मेल / एक्सप्रेस ट्रेनों की शुरुआत के साथ, ठहराव केवल दो मिनट का होता है और और वार्षिक लाइसेंस शुल्क बढ़ाने के साथ, इन रिफ्रेशमेंट स्टालों ने अपना व्यवसाय खो दिया है. लॉक डाउन के समय इन पर और शुल्क चढ़ा और आज एक भी रिफ्रेशमेंट स्टाल नहीं है. हालांकि, कुछ ठेलागाड़ियाँ अभी भी सेवा में हैं और कोई भी बीते ज़माने कि प्रसिद्ध रबड़ी का स्वाद ले
सकता है.

Super  Train Garib  Nawaz Express Udaipur City to Jaipur MG Era

यहाँ केएम अग्रवाल एंड संस नामक एक पुस्तक स्टाल भी थी जो अब मल्टिपल स्टाल के रूप में आज भी है. पूरे भारतीय रेल में ए एच व्हीलर एंड कंपनी के बुक स्टॉल हुआ करते थे, लेकिन नीमच , चित्तौडग़ढ़, मावली और उदयपुर सिटी में, बुक स्टॉल केएम अग्रवाल एंड के स्वामित्व के थे. यह परिवार मूलतः टोंक का है.

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गति और ट्रेनों की संख्या में तेजी से वृद्धि के साथ, मीटर गेज युग की ये यादें फीकी पड़ गई हैं. हम तेजी से और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. शीघ्र ही एक वंदे- भारत को सेवा में आ रही है. लेकिन स्टीम इंजन और मीटर गेज ट्रेनों के शानदार एक युग जो बीत गया उसे याद करने के लिए कोई नहीं है.

गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा
हाफिज खुदा तुम्हारा 'तनवीर नक़वी'

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