साप्ताहिक राउंडअप- कोरोना, निर्भया दोषियों को फांसी और एमपी का राजनैतिक नाटक

साप्ताहिक राउंडअप- कोरोना, निर्भया दोषियों को फांसी और एमपी का राजनैतिक नाटक 
 

आर्टिकल : महेंद्र के. कोठारी, अहमदाबाद
 
साप्ताहिक राउंडअप- कोरोना, निर्भया दोषियों को फांसी और एमपी का राजनैतिक नाटक

COVID-19 और जनता कर्फ्यू।

निर्भया दोषियों को फांसी।

समय से पहले एमपी सरकार का पतन।

मार्च, 2020 का महीना लंबे समय तक याद रखा जाएगा। सप्ताह का समापन कल (रविवार) को हुआ है। इस सप्ताह में कई असामान्य घटनाएँ देखने को मिलीं जो आने वाले लम्बे समय तक याद रहेगी। 

COVID- 19: पहली बार चीन के वुहान शहर में दिसंबर 19 में रिपोर्ट की गई, आज इस बीमारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। और अब समुदाय में फैलने का खतरा मंडरा रहा है। संकट की इस घड़ी में केवल यह आदर्श वाक्य कि समस्या की रोकथाम इलाज से बेहतर है। हम एक घनी आबादी वाला देश हैं और एक अनुशासित दृष्टिकोण ही हमें बचा सकता है। स्पेन, इटली और ईरान के हालिया अनुभव विश्व समुदाय का मार्गदर्शन करने के लिए पर्याप्त हैं कि इसे रोकना होगा और लापरवाही विनाशकारी है। 

इस बीमारी की भयावहता ने प्रशासन को राष्ट्रव्यापी, स्वघोषित बंद का आह्वान करने या जनता कर्फ्यू लगाने का आह्वान किया। नागरिकों ने अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन बखूबी किया है, जैसा कि मीडिया और अन्य स्रोत पर देखा जा सकता है, यह एक बड़ी सफलता रही है क्योंकि हमने इस नारे का पालन किया कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। 

अगला सप्ताह भारत के लिए महत्वपूर्ण है। हमें कोविड-19 के विस्तार को रोकना होगा और यह तभी हासिल किया जा सकता है जब हम अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों और सख्ती से पालन करें की क्या करें व क्या नहीं करें। हमारे पास सीमित चिकित्सा संसाधन हैं और कोई भी निश्चित दवा इस महामारी के खिलाफ ज्ञात नहीं हैं और इसलिए महामारी को दूर करने के लिए रोकथाम सबसे अच्छा विकल्प है।

हवाई सेवा प्रदात्ता कंपनियों ने अपनी सेवाएं वापस ले ली हैं, भारतीय रेल अभी भी रुकी हुई है। बसें सड़क से दूर हैं। रेल की पटरियां मेरे जीवन का हिस्सा है, मेरा घर जो पटरियों के करीब है। जहाँ से गुजरते रेल इंजन की सीटी व धड़धड़ाती हुई गुजरने वाली रेल गाड़ियां जीवन का हिस्सा है। सारी रेल पटरियां सुनसान हो गयी। जैसे की समय ठहर सा गया है। रेल सेवाओं में व्यवधान एक बड़ी हड़ताल के रूप में 1974 में ही देखा गया था, जब दिवंगत समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज ने 1974 में 'रेल से बेहतर जेल'; के नारे के साथ रेल हड़ताल का आह्वान किया था। उनके आह्वान को रेल कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त था और यह 1974 में एशिया के प्रमुख रेलवे हड़ताल थी। 

स्थिति को नियंत्रित करने के प्रयासों में भारत सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई थी और अब यह इतिहास है। आज का रेल व्यवधान पूरी तरह से एक अलग कारण से है, जहाँ 31 मार्च, 2020 तक सेवाएं निलंबित रहेंगी। मैंने अपने बाल्यकाल में 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान स्व-नियंत्रित ब्लैक आउट का अनुभव किया था। रात के समय 'ब्लैकआउट' लागू किया गया था और हमारे घर की खिड़कियों से किसी भी प्रकाश को घुसना प्रतिबंधित था। हम मोटे कागज द्वारा खिड़कियों के शीशों को ढंकते थे और कम से कम बिजली के बल्बों का इस्तेमाल करते थे। उन दिनों ट्यूबलाइट नहीं थीं। घर के खुले आंगन में, कोई दीपक नहीं जलाया गया था। सभी की सुरक्षा के लिए संकट की घड़ी में यह अभ्यास स्व-अनुशासित था। 

इस हफ्ते का जनता कर्फ्यू उस गुजरे कल की याद दिलाता है. राजनैतिक बंद व हड़ताल जनतंत्र का अभिन्न हिस्सा है पर आज का बंद सर्वथा एक भिन्न कारण से हुआ। सबकी सुरक्षा व कोराना वायरस के संभावित प्रकोप के बचने के लिए. नितांत अलग व अभूतपूर्व। इस कर्फ्यू ने 1965 और 1971 की एक याद जरूर दिलाई है। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे बंद हैं और समय की आवश्यकता यही है की एक दूसरे से सामान्य व वांछित दुरी बनाये रखे, बस। महामारी के संभावित प्रसार से सुरक्षित रखना लक्ष्य है व अभिवादन का भारतीय तरीका अपनाएं की हाथ जोड़ कर नमस्कार। गर्मजोशी से हाथ मिलाने से बचें। 

प्रमुख शहरों और मेट्रो शहरों में आज निवास दिन के समय में निर्जन रहते हैं और जीवन की तेज गति के साथ काम करने वाले परिवार और उनके बच्चे सायं में ही मिलते हैं। रविवार को हमेशा कई आवश्यकताओं की पूर्ति में चला जाता है और खुशी के कुछ पल लिए लालसा दूर की कौड़ी बनी रहती है। यह रविवार अलग था, जहां हर कोई इनडोर था। कल्पना से परे। आशा है कि हम इस अवसर पर और संयुक्त रूप से उठेंगे और गंभीर कोरोना -19 के खतरे को दूर करेंगे। पहले से ही खराब स्थिति में रहने वाली अर्थव्यवस्था के बचाव के लिए सभी के सयुंक्त प्रयास की आवश्यकता है और हम इसे खराब से बुरी स्थिति में जाने से बचा सकते हैं। यह तभी संभव है, जब हम घातक कोरोना -19 के सामुदायिक प्रसार को रोक दें।

निर्भया अपराधियों को फांसी दी गई: लंबी लड़ाई के बाद निर्भया

सामूहिक बलात्कार मामले के चार दोषियों को 20 मार्च, 2020 को फांसी दे दी गई। फांसी से बचने और देरी करने के लिए अंतिम मिनट की रणनीति विफल रही। दिल्ली की प्रसिद्ध तिहाड़ जेल ने पहली बार एक साथ चार दोषियों को एक साथ फांसी की सज़ा दी गयी। चलती बस में क्रूर बलात्कार और फिजियोथेरेपिस्ट की हत्या के सात साल से अधिक समय के बाद कानूनी कार्यवाही के बाद यह संभव हुआ। उन्होंने जो अपराध किया वह एक राष्ट्रीय शर्म थी और हमारी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, महिला सुरक्षा का सवाल एक बड़ी चिंता का विषय बन गया।

चार दोषियों की फांसी ने एक बड़ा संदेश दिया कि न्याय में देरी हो सकती है लेकिन न्याय अवश्य है । उनको फांसी की सजा सभ्य समाज में सुरक्षा के प्रति हमारी जिम्मेदारी व अपराधी तत्वों के लिए एक सबक है. भारतीय सभ्यता व संस्कृति की महान थातियों व नारी के सामान दर्जे व सम्मान को विश्वास दिलाने के प्रति यह निर्णय समाज में नया विश्वास स्थापित करता हुआ प्रतीत होता है। 

म.प्र. में समय से पहले सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस: ​​मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस्तीफे के साथ 10 दिनों से चल रही बहस शुक्रवार को समाप्त हो गई। फ्लोर टेस्ट के लिए शीर्ष अदालत के आदेश के बाद, सरकार ने विश्वास मत से पूर्व ही अल्पमत के भय से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। पूरा प्रकरण जनतांत्रिक व्यवस्था में हमारी आस्था को कमजोर करता है। विधायक सबसे असुरक्षित नागरिक हैं, जिन्हें संभावित राजनैतिक अपहरण से बचने के लिए दूसरे राज्यों में शरण लेनी पड़ी। एक निर्वाचित सरकार दलबदल और वफादारी के बदलने के कारण गिर सकती है। यह मतदान द्वारा प्राप्त आदेश की अवहेलना व मतदान की महत्ता को कम करता है। 

दलबदल विरोधी कानून की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है। इस प्रकरण से हमारे लोकतंत्र में मतपेटी के माध्यम से आए फैसले को कमजोर किया है।  सभी में यह एक महत्वपूर्ण सप्ताह था, जिसने हमें कई जिम्मेदारियां सौंपी और हमें एक नागरिक व देशवासी के रूप में अपने कर्तव्य के प्रति पुनः समर्पित होकर एक महामारी के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए प्रेरित किया है ।
 

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