उदयपुर 4 मई 2020। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए राजस्थान सरकार ने राजस्थान में 21 जुलाई 2010 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी किया ताकि राज्य में प्लास्टिक से होने वाले हर प्रकार के नुकसान को रोका जा सकें, लेकिन हुआ इसका उलटा।
राज्य में प्रतिबन्ध लगे 10 साल हो जाने के बावजूद राज्य में न तो प्लास्टिक का पड़ोसी राज्यों से आना बंद हुआ और न हीं उससे होने वाले नुकसान में कोई कमी आयी। यह जानकर हैरानी होगी कि प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध होने के बावजूद प्रदेश में प्रतिवर्ष 1 लाख 4 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। इसमें चिंताजनक बात यह है कि इस कचरे में सिंगल यूज प्लास्टिक सर्वाधिक है, जो पर्यावरण के साथ इंसानों के लिए भी सबसे अधिक नुकसानदायक है। इतनी भारी मात्रा में निकल रहे प्लास्टिक कचरे ने राज्य के आदेश की धज्जियां उड़ा दी है।
उपरोक्त आंकड़ें का खुलासा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को नगर निगम और निकायों से मिली रिपोर्ट में हुआ है। प्लास्टिक वेस्ट के इन आंकड़ों हिसाब से राजस्थान प्लास्टिक उपयोग करने में देश में गुजरात और यूपी के बाद तीसरा प्रदेश है, जहां इतनी मात्रा में प्लास्टिक खपत हो रही है। जबकि प्लास्टिक कैरी पर साल 2010 से बैन है।
राजस्थान सरकार ने 2010 से प्लास्टिक कैरी बैग्स पर प्रतिबंध लगा कर राजस्थान में प्लास्टिक बैग बनाने वाली सभी इकाई बंद करवा दी गई लेकिन पिछले 10 वर्षों से कैरी बैग सभी दुकानों पर आसानी से मिल रहा है और यह पूरा माल गुजरात से बिना बिल के आ रहा है। यह संभव नहीं कि इतना होने के बावजूद संबंधित विभाग एवं प्रशासन को इसकी जानकारी न हो लेकिन इसके बावजूद अब तक कोई कारगर कार्यवाही नहीं हो की गई।
बायो डिग्री डेबल प्रोडक्ट निर्माता अशोक बोहरा ने प्रतिबंध की उड़ रही खुली धज्जियां पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यदि सरकार प्रतिबंध को सख्ती से लागू नहीं करवा सकती तो कम से कम राजस्थान में में सिंगल यूज प्लास्टिक को बनाने की इजाजत दे ताकि सरकार को जीएसटी मिलें और बेरोजगारों को रोजगार मिल सकें।
उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष सरकार को करोड़ो रूपयें के राजस्व का नुकसान हो रहा है। यदि पड़ोसी राज्य गुजरात से राज्य के मार्केट में सिंगल यूज प्लास्टिक बिना किसी रोक टोक के आसानी से बिक रहा है तो सरकार को चाहिये कि प्रतिबंध को हटाकर इसे राजस्थान में ही निर्मित कराना प्रारम्भ कर देना चाहिये ताकि लगभग 20 हजार लोगों को रोजगार मिल सकें।
आश्चर्य की बात है कि न तो स्थानीय नगर निगम, न जीएसटी विभाग और न हीं प्रदुषण विभाग कोई कार्यवाही कर पा रहा है। ये तीनों ही कुंभकर्ण की नींद सोये हुए है। राज्य में धड़ल्ले से पिछले 10 वर्षो से प्लास्टिक कैरी बैग बिना बिल के बिना इजाजत के आसानी से बिक रहे है। अपनी जिम्मेदारी से मुंह फेरते हुए जिम्मेदार सिर्फ कागजो में आंकड़े फेर बदल कर राजी हो रहे है। यहां पर न ही सरकार सुध लेती ओर न ही कोई डिपार्टमेंट।
इसके अलावा जिन राज्यों में प्रतिबंध नहीं है वहां भी मिनिमम थिकनेस 50 माइक्रोन का प्रावधान है जबकि मार्केट में 20 माइक्रोन की थैलियां बिना बिल के आसानी से उपलब्ध हो रही है।
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