विश्व में बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के संकट के कई दुष्परिणाम आए दिन देखने को मिल रहे हैं और इससे हमारा देश भी अछुता नहीं है। पूरे देश में ग्लोबल वार्मिंग और विकास के नाम पर बरसों से प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा सामने आ रहा है।
ऐसी ही बहुचर्चित घटना हाल ही में 6000 फिट की उचाई पर उत्तराखंड के चमोली ज़िले में बसे जोशीमठ संकट के दौरान सामने आई है, जिसने पुरे देश को झंझोड़ के रख दिया। जोशीमठ में इस साल के शुरुआत में अचानक सडकों और घर की दिवारों में क्रेक आने से लोग मुसीबत में आ गए और प्रशासन को उन्हे वहाँ से निकाल कर शेल्टर होम में शिफ्ट करना पड़ा। बात की जाए इन हालातों के पीछे छुपे कारणों की तो सबसे बड़ा कारण है जो अब तक सामने आया है वो है विकास और पर्यटन के नाम पर प्रक्रति के साथ छेडछाड़ चाहे वो किसी भी तरीके से की गई हो। जोशीमठ में जो कुछ हुआ है, उसे देखते हुए विकास के पक्ष में दिया जाने वाला तर्क बुरी तरह विफल हो गया है।
हमारा शहर उदयपुर भी जोशीमठ की तरह ही चारों तरफ से अरावली की सुंदर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। उदयपुर विश्वभर में अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है और हमेशा से घरेलू और विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बना रहा है, तो हालात यहाँ भी इसी तरह का संकेत दे रहे हैं। पहले तो उदयपुर संभाग के राजसमंद में संगमरमर की वजह से बेतरतीब माइनिंग, मेवाड़ के दक्षिण क्षेत्र में सोप्स्टोन की माइनिंग के वजह से जमीन और पहाड़ दोनों ही नेस्तोनाबूद कर दिए गए हैं।
आधुनिकता की और बढ़ने की रेस में अब इन पहाड़ियों की उन्नति के नाम पर दिन ब दिन काटा जा रहा है, जिस से यहाँ का वातावरण काफी हद तक प्रभावित हो गया है। इस पर बढ़ता ट्रैफिक जहाँ शहर की सड़कों और सार्वजनिक स्थल पर लोकल गाड़ियों से ज़्यादा पर्यटक की गाडियाँ देखी जा रही है। पर्यटन को बढ़ावा देने की होड़ में शहर के मौजूदा आधारभूत संरचना (infrastructure) और क्षमता को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है और आए दिन डेवलपमेंट के नाम पर कोई न कोई प्रोजेक्ट लाया जा रहा है। बेशक तरक्की ज़रुरी है लेकिन क्या महज तरक्की के नाम पर शहर की सुंदरता और रिसोर्सेज को दांव पर लगाया जा सकता है।
ऐसा ही एक प्रोजेक्ट हालही में उदयपुर के देवाली इलाके में पहाड़ी पर बने विश्वप्रसिद्ध नीमचमाता मंदिर के समीप शुरू किया गया है, जहाँ UIT द्वारा एक रोप-वे बनाए जाने का प्रोजेक्ट शुरु कर दिया गया है। उदयपुर में पर्यटन के नाम पर पहाड़ों को काट कर होटल, पार्क एवं नीमचमाता मंदिर जैसी संकड़ी जगह पर केबल कार का प्रोजेक्ट यह दर्शाता है की पर्यटन और विकास के नाम पर सरकार और सरकारी एजेंसियाँ प्रकृति को लेकर उदासीन है।
आपको बता दें की इसी के साथ यह शहर का दूसरा रोपवे है, क्यों की इससे पूर्व शहर के दक्षिणी क्षेत्र में शहरकोट के समीप करणी माता मंदिर पर एक रोप वे पहले ही संचालित है जिस से पर्यटकों के आकर्षण और सुविधा के नाम पर बनाया गया है। इस परियोजना से होने वाली क्षति और वहां मौजद कचरा इसकी हकीकत खुद ही बयां कर रहा है।
सबसे बड़ा सवाल नीमचमाता मंदिर लाखों धर्म प्रेमियों की आस्था से भी जुड़ा हुआ है। रोपवे प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद नीमचमाता मंदिर एक टूरिस्ट स्पॉट बन जाएगा। क्या इस प्रकार आस्था के स्थान को टूरिस्ट स्पॉट बनाया जाना तर्कसंगत है? जैसा की हाल ही में जैन समाज के प्रयासों से सम्मेदशिखर को टूरिस्ट स्पॉट बनने से रोका गया उसी प्रकार नीमचमाता के लिए भी उदयपुर की जनता को आगे नहीं आना चाहिए?
नीमचमाता मंदिर की पहाड़ी की दूसरी तरफ वन विभाग की भूमि है जहाँ वन्य जीव भी निवास करते है वहां पर रोपवे प्रोजेक्ट के बाद वन्यजीवों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा? एक तरफ जहाँ वन विभाग वृक्षारोपण को बढ़ावा देता नहीं थकता वहीँ पर रोपवे के नाम पर हरियाली और घने वृक्षों की बर्बादी पर चुप्पी क्यों साधे हुए है ?
रोपवे के ज़रिये टूरिस्ट स्पॉट बनने के बाद मंदिर जैसी जगहों पर प्री वेडिंग शूट और अन्य गतिविधियां भी प्रारम्भ हो जाएगी वहीँ बड़ी संख्या में पर्यटकों की वजह से प्लास्टिक और कचरे के ढेर क्या मंदिर की पवित्रता को बर्बाद नहीं करेगी?
नीमचमाता मंदिर की पहाड़ी से सटे नीमच माता स्कीम और देवाली में करीब 1000 मकानों की बस्ती है। नीचे एक स्कूल भी है। रोपवे प्रोजेक्ट का सीधा सीधा असर उस बस्ती पर पड़ेगा। जबकि करणी माता मंदिर की पहाड़ी पर जहाँ रोपवे बनाया गया है वहां कोई बस्ती नहीं बसी हुई है।
उदयपुर टाइम्स ने इन्ही सब मुद्दों के चलते नीमचमाता रोप वे प्रोजेक्ट के मुद्दे पर पर्यावरण प्रेमियों, स्थानीय निवासियों के साथ ही धर्मप्रेमियों की भी राय जानने की कोशिश शुरू की है। आप भी इन सब पर अपनी राय हमें (admin@udaipurtimes.com) भेज सकते है।
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