जोशीमठ और सम्मेद शिखर की स्थिति के बाद अरावली रेंज से चारो ओर से घिरी हुई लेकसिटी यानी की हमारा शहर उदयपुर जो की विश्व में अपनी खूबसूरती और डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए जाना जाता है उसकी स्थिति भी क्या एसी ही हो सकती है? शहर में लगातार डेवलपमेंट के नाम पर पहाड़ों के काटे जाने और पर्यटकों को लुभाने के लिए आए दिन कोई न कोई नए प्रोजेक्ट शुरू करने के नाम पर पहाड़ों को काटा जाना कितना सही है ?
हाल ही में शहर के नीमच माता मंदिर की पहाड़ी पर शुरू हुए रोपवे के काम के बारे में जब उदयपुर टाइम्स की टीम ने शहर के एक प्रकृति प्रेमी और जागरूक नागरिक शांति लाल मेहता से बात की तो उन्होंने कहा “में इस रोप वे के मामले बिलकुल विरोध में हूँ, क्यूँकि यह हमारे आस्था का केंद्र है, इस पहाड़ी पर कोई बहुत बड़ी ऊंचाई नहीं है केवल 350 मीटर ही है, जिस पर लोग आसानी से चढ़ जाते हैं।
दयालाल सोनी ,डॉ. आर. के अग्रवाल ने मिलकर काफी अच्छा काम करवाया, रेम्प बनवाया जिस से लोगो को ऊपर जाने में आसानी हो, ऊपर जाने की जो बात है तो जो श्रद्धालु है वो तो जाएगा ही केवल इतनी सी ऊंचाई के लिए रूप वे बनाना सरासर गलत है। लेकिन मेरे इतने विरोध के बाद भी रोपवे के काम को चालू रखा, मेने जनहित याचिका (पी.आई.एल) भी लगाई लेकिन वो भी ख़ारिज हो गई।
डीएलसी रेट पर ज़मीन दी, नीलामी होती तो अधिक पैसा आता
शांतिलाल मेहता का कहना है की इन्होने डीएलसी रेट पर जमीन क्यों ली ? इस जमीन की बाजार दर पर नीलामी की जानी चाहिए थी जिस से जो पैसा आता वो जन हित में लगता विकास में लगता, लेकिन किसी कंपनी को फायदा देने के लिए यह सब किया गया।
शिक्षा विभाग की भूमि पर व्यवसायिक कार्य क्यों?
जब इसी जगह एससीआईआरटी ने महिलाओं के लिए हॉस्टल बनाना चाहा था तब यूआईटी ने मना कर दिया की की यह एक झील निषिद्ध क्षेत्र है यहाँ कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता है, और उसी कारण से हॉस्टल को नीमच माता मंदिर की सीडियों के पास बनाया गया। अगर उस समय ये झील निषिद्ध क्षेत्र था तो अब यह उस क्षेत्र से बाहर कैसे आ गया? अब अगर यह झील निषिद्ध क्षेत्र से बाहर आया है तो जरुर कोई गड़बड़ी की गई है।
वन विभाग के पास कोई जानकारी नहीं
पूर्व में एससीआईआरटी में कार्यरत शांतिलाल मेहता ने बताया कि उन्होंने वन विभाग को भी कई पत्र लिखे लेकिन वन विभाग ने जवाब में कहा की इस बारे में कोई फ़ाइल उनके सामने नहीं आई है और इसकी स्वीकृति वन विभाग ने जारी नहीं की है। यही नहीं वन विभाग को तो इस क्षेत्र में वन्य जीवों के आवागमन की जानकारी भी नहीं है और न ही विभाग द्वारा कोई पानी का टेंक बनाया गया है। और ये सभी जवाब विभाग द्वारा लिखित में दिया गया है।
उसके बाद इसका भूमि पूजन भी हो गया, अच्छी बात है लेकिन अगर बिना स्वीकृति के भूमि पूजन हुआ तो क्या ये गलत नहीं है ? उन्होंने कहा कि मैं उदयपुर का रहने वाला हूँ इसी मिट्टी में पला बड़ा हुआ हूं, सालो से मैं नीमच माता मंदिर जाता रहा हूँ, यहाँ पर हजारों मोर थे, लेकिन जब मैंने यह मुद्दा उठाया तो वन विभाग ने कहा की यहाँ कोई मोर है ही नहीं। साथ ही अन्य कई पशु पक्षी यहाँ इस पहाड़ी में रहते है, तो कही न कहीं इन्होने पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने की कोशिश की है।
प्रकृति प्रेमी शांतिलाल मेहता ने बताया की इन्होने कहा था की पेड़ लगाये जाएंगे, पेनाल्टी भी जमा करवाई और बावजूद उसके इन्होने एक बड़ा नीम का पेड़ काट दिया जिसकी एफआई आर अंबामाता थाने में दर्ज हुई है। इसके अलावा जो पेड़ काटे गए है उसको भी वन विभाग द्वारा कम ज्यादा करके बताया गया है इसका कोई सही रिकॉर्ड नहीं है, साथ ही जितने भी पेड़ कटे है उनको इन्होने पेड़ बताया ही नहीं है झाड़ियाँ बताई है।
तो इसी वजह से उनके मन में पीड़ा है की इस रोप वे के बनाने से पर्यावरण को नुक्सान होगा, जितने जीव जंतु रहने वाले हैं वो सभी डिस्टर्ब हो जाएंगे जैसा की यहाँ पैंथर का आवागमन है लेकिन विभाग वाले लोग नहीं मानते है, जब की हाल ही में पंचवटी, परशुराम कॉलोनी, रेलवे ट्रेनिंग स्कूल अदि इलाकों में पैंथर का मूवमेंट देखा गया है लेकिन ये इसको स्वीकार इस लिए नहीं कर रहे है क्यों की इनको ये (रोप वे) का काम करना है।
आस पास के लोगों की क्या प्रतिक्रिया है ?
शांतिलाल मेहता ने बताया कि आस पास के लोग बहुत भयभीत है। ऐसा लगता है की उनको डराया गया है। उन्होंने कहा की मैं सोचता हूँ कोई न कोई भू माफिया इसमें शामिल है जिसने इस इलाके के लोगों को बहुत भयभीत कर रखा है, क्षेत्र के कई लोग इस रोपवे के खिलाफ है लेकिन कहते है की जो हो रहा है सो हो रहा है क्या कर सकते है? अगर सरकार ये काम कर रही है तो हम क्या कर सकते है ? इस पर मैं उन्हें समझाता हूँ की इस काम में सरकार का कोई लेना देना नहीं है इसमें कुछ निजी पार्टियाँ शामिल है और ये काम केवल बिजनस के लिए हो रहा है और नुक्सान हो रहा है लेकिन आमलोग बहुत भयभीत है , पहले तो लोग भू माफियाओं से बहुत डरते है साथ ही ये लोग सोचते है की अगर उन्होंने यूआईटी का विरोध किया तो उन्हें जमीन का का पट्टा नहीं मिलेगा और अगर कोई भूमि 90 बी में करवानी होगी तो नहीं होगी। उन्होंने आरोप लगाया की यूआईटी वाले बहुत गड़बड़ करते है।
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