उदयपुर, 25 दिसंबर। राजस्थान के उदयपुर शहर में कड़ाके की ठंड पड़ने के साथ ही हर वर्ष पूरे विश्व में 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस को बहुत धूमधाम और आस्था के साथ मनाया जाता है। क्रिसमस पर्व की तैयारी में उदयपुर भी पीछे नहीं है। ऐसे में क्रिसमस को लेकर शानदार तैयारियां की गई है। सैंटा क्लॉज, क्रिसमस ट्री, केक और जिंगल बेल का गीत इस त्योहार की अनूठी पहचान हैं। इस दिन चर्च में प्रार्थना सभाएं होती हैं।
शहर की दुकानें सैंटा क्लॉज़, क्रिसमस ट्री, स्टार और तोहफों से सज़ी हैं। बाज़ार में इस वर्ष एक से बढ़ कर एक गिफ्ट आयटम बिक रहे हैं। खूबसूरत डिज़ाइन के ट्री की खूब मांग है। जिंगल बेल लिखे एक से एक खूबसूरत स्टार भी बिक रहे हैं। दुकानदारों ने बच्चों के सैंटा क्लॉज़ के ड्रेस विशेष तौर पर मंगाए हैं। क्रिसमस को लेकर शहर के होटल सज चुके हैं साथ ही गिरजा घरों में कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं। क्रिसमस के दिन को खास बनाने के लिए रेस्टोरेंट, स्कूलों को खास तरीके से सज़ाया गया है। चर्च व घरों में भी रोचक सज़ावट की गई हैं।
सबसे पुराना उदयपुर का प्राचीन चर्च
'चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया' के नाम से मशहूर यह चर्च उदयपुर का सबसे पुराना चर्च है। जिसका निर्माण वर्ष 1877 में किया गया था। इससे 'शेफर्ड मेमोरियल चर्च' के नाम से भी जाना जाता है। डॉ. जेम्स शेफर्ड के नाम पर इसका निर्माण किया गया था। चर्च के बाहर एरिया में क्रिसमस ट्री सजाया गया है। इसके साथ ही कैंडल लाइट के लिए प्लेटफॉर्म भी लगाया गया है। कैरोल सिंगिंग का कार्यक्रम भी होता है जिसमें समूह में लोग खुशी से गीत गाते हैं।
शेफर्ड मेमोरियल चर्च के 'फादर अविनाश मेसी' से जब Udaipurtimes Team ने बात करी तो उन्होंने बताया की 'Lord Jesus Christ' के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। वे बताते है की चौथी सदी के आसपास कॉन्स्टेंटाइन नाम के राजा थे। उन्होंने Christianity को एक धर्म बनाया था। उनके समय से ही क्रिसमस पर्व को दिसंबर की 25वीं तारीख को मनाया जाता हैं। उन्होंने ही इस पर्व को क्रिसमस नाम से घोषित किया था। 'फादर अविनाश मेसी' बताते हैं कि इससे पहले कोई परमांटेंट डे नही मनाया जाता था। क्यूंकि इससे पहले jewish कैलेंडर हुआ करता था। इसके बाद इंग्लिश कैलेंडर स्टार्ट किया गया था और इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है।
क्रिसमस स्टार
'फादर अविनाश मेसी' बताते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार, क्रिसमस स्टार के अलग-अलग अर्थ हैं, वे बताते हैं कि अधिकांश ईसाई मानते हैं की एस्ट्रोलॉजर ने स्टार देखा और स्टार को देख कर उन्हें पाता चल गया कि एक राजा की पैदाइश हुई है। और एस्ट्रोलॉजर ने उस समय स्टार को फ़ॉलो करते-करते उस जगह पहुंच गए जहां राजा की पैदाइश हुई थी। इसी कारण स्टार की भी मान्यता है। फादर बताते है कि क्रिसमस वीक में ईसाई समाज के अलग अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें स्पोर्ट्स, कल्चरल प्रोग्राम आदि शामिल होते हैं।
क्रिसमस केक है विशेष
इसके साथ ही क्रिसमस में सबसे खास केक है जिसे लेकर उदयपुर की विभिन्न होटलों, रिसोर्ट तक में होने वाले कार्यक्रमों को लेकर विशेष रूप से केक बनाए जाने के ऑर्डर भी दिए गए है। क्रिसमस को लेकर गिरजा घरों में कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं खास तरह के केक को काटकर जश्न मनाने के बाद इसे बांटने की परंपरा है।
'फादर अविनाश मेसी' ने बताया कि जेसे केक में जो मिठास होती है, उसी तरह से वो मिठास हम सभी में बनी रहे। उसी तरह केक को सभी में बँटा जाता है।
क्रिसमस ट्री की क्या मान्यता है?
'फादर अविनाश मेसी' ने बताया कि कुछ लोगों का मानना है कि क्रिसमस ट्री बुरी आत्माओं से उन्हें बचाता है। वहीं, कुछ लोग सदाबहार क्रिसमस ट्री को जीवन में सकारात्मकता, पुनर्जन्म और सहनशक्ति का प्रतिनिधि मानते हैं। इसे सुंदर तरह से सजाया जाता है। वे बताते हैं कि क्रिसमस ट्री सजाने का ट्रेंड क्वीन विक्टोरिया से चला आ रहा है। इस मौके पर 'ताज़ अरावली रिसॉर्ट एंड स्पा' ने 111 फीट लंबा क्रिसमस ट्री तैयार किया है। इनका दावा है कि ये भारत का अब तक का सबसे ज्यादा उंचाई वाला क्रिसमस ट्री है। इसे बनाने में करीब एक महीने का समय लगा। रिसॉर्ट में 50 लोगों की इन-हाउस टीम ने इसे तैयार किया है। रंग बिरंगी लाइटिंग से जगमग यह क्रिसमस ट्री बेहद आकर्षण का केन्द्र रहा।
सैंटा क्लॉज आखिर थे कौन ?
लाल और सफेद रंग की पोशाक, सफेद बाल, बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला एक बुजुर्ग और कंधे पर गिफ्ट्स से भरा झोला टांगे सेंटा क्लॉज हर साल बच्चों को उपहार देकर इस पर्व की खुशी दोगुनी कर देते हैं। आइए जानते हैं कौन थे सैंटा क्लॉज और कैसे शुरू हुई क्रिसमस पर गिफ्ट देने की परंपरा।
सैंटा क्लॉज़ को 'सेंट निकोलस' के नाम से जाना जाता है। सेंट निकोलस एक ऐसी ऐतिहासिक आकृति हैं, जो hagiographical कहानियों में मिलती है। इस सफेद दाढ़ी वाले खुशमिजाज आदमी की कहानी 280 ईस्वी के दौरान तुर्की में शुरू होती है। सेंट निकोलस, जरूरतमंद और बीमारों की मदद करने के लिए घूमा करते थे। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति का इस्तेमाल वंचितों की सहायता के लिए किया।
बताया जाता है कि सेंट निकोलस मध्यरात्रि में जब सब गहरी नींद में सो रहे होते थे, तब निकलते थे और जाकर गरीबों के घर उपहार और उनके बच्चों के लिए खाने-पीने का सामान रख आया करते थे। अपनी खास पोशाक पहनकर तोहफे देने जाते थे, ताकि कोई उन्हें पहचान न सके। उनकी मृत्यु के बाद भी लोगों ने इस परंपरा को खत्म नहीं होने दिया। तब से आम लोग भी उनकी तरह कपड़े पहनकर रात में बच्चों को उपहार देने लगे।
Sabu Cherain से जब UdaipurTimes Team ने बात करी तो उन्होंने बताया कि क्रिसमस पर घरों में घरों को साफ-सुथरा करने के साथ ही क्रिसमस ट्री को सजाया गया। वहीं स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए गए। वैसे लोग अपनी पसंद के हिसाब से फ्लेवर चुनते हैं। इसमें चेरी केक, प्लम केक, ड्राइफ्रूट केक, चॉकलेट प्लम केक आदि बनाए जाते हैं। इसी तरह क्रिसमस ब्राउनी,क्रिसमस कुकीज,चॉकलेट जिंजरब्रेड कुकीज यह सब भी घरों में बनाए जाते हैं।
St.Gregorios School के टीचर Sabu Cherain ने Udaipurtimes Team को बताया कि हर साल की तरह St.Gregorios School में 23 दिसंबर को क्रिसमस का पर्व बड़ी ही धूम धाम से मनाया गया। क्रिसमस महोत्सव के अवसर पर छात्र छात्राओं ने एक से बढ़कर एक रंगारंग सांस्कृति कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। इस मौके पर विद्यालय की छात्र छात्राओं ने 'lord Jesus Christ' के जन्म दिवस पर आधारित लघु नाटिका का भावपूर्ण मंचन किया।
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