उदयपुर। यूं तो आपने रंगों के त्यौहार होली को अलग अलग अंदाज़ और परम्पराओ से मनाते हुए देखा होगा लेकिन आज हम आपको उस एतिहासिक होली के बारे में बताएँगे जो पूरी दुनिया में अनूठी है।
यह होली मेनारिया ब्राह्मण के शौर्य और पराक्रम की निशानी है। उदयपुर से करीब पचास किलोमीटर दूर स्थित मेनार गाँव में होली के दुसरे दिन अनूठे अंदाज़ में इस रंगों के त्यौहार को मनाया जाता है।
पिछले चार सौ सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार आज भी इस गाँव में होली बारूद से खेली जाती हे। गाँव के लोग होली के दुसरे दिन जमरा बीज के मौके पर पारंपरिक वेशभूषा में आधी रात को गाँव के चौपाल पर इकठा होकर जमकर बारूद की होली खेलते है। परम्परागत रूप से इस बारूद की होली को अगर देखे तो लगता है की होली की जगह दिवाली मनाई जा रही है।
इस दिन सभी ग्रामीण न सिर्फ आतिशबाज़ी करते है बल्कि बन्दूको से हवाई फायर कर इस दिन को एतिहासिक बनाते है। एक एक कर सैंकडो बंदुकों से हवाई फायर किये जाते हैं आज इन धमाकों के बीच ग्रामीण नाचते गाते और खुशियॉं मनाते नजर आते है।
इस होली की खास बात यह हैं कि इस जश्न में शामिल होने के लिये देश के विभिन्न प्रांतों से ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी इलाके में मेनार गॉंव के निवासी मौजुद हो इस दिन वे गॉंव में जरूर आते है।
बारूद की इस होली को देखने के लिये सैंकडो लोग जमा होते हें तो गॉंव के हर व्यक्ति आज के दिन के लिये विशेष तेयारी करता है। एक समय तो ऐसा भी आता हैं कि ग्रामीणों के दो गुट आमने सामने खडे होकर हवाई फायर करते हुए जश्न मनाते नजर आते है।
ग्रामीणों का मानना हे की मुग़ल काल में महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह के समय मेनारिया ब्रह्माण ने मेवाड़ राज्य पर हो रहे आक्रमणकारियों का कुशल रणनीति के साथ युद्ध कर मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी और इसी दिन की याद में इस त्यौहार को इस अलग अंदाज़ में मनाते हुए सभी ग्रामवासी पूरी रात बन्दूको से फायर और आग उगलती आतिशबाजी कर जश्न मनाते है।
इसके साथ ही होली के दिन खेले जाने वाला पारंपरिक गेर नृत्य भी ग्रामीण खेलते हे और उसमे भी अलग ही अंदाज़ से तलवारों से इस नृत्य को किया जाता हे। इस अनोखी होली का गवाह बनने के लिए ग्रामीणों के अलावा आस पास के गाँव के लोग और दूर दराज़ से दर्शक भी वहा पूरी रात मजा लेते हे। बंदुकों के धमाकों के साथ साथ तोप भी छोडी जाती हैं तो लाखों रूपये के पटाखे भी जलाये जाते है।
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