25 साल से लापता व्यक्ति को लोन आवंटित

25 साल से लापता व्यक्ति को लोन आवंटित 

वीरपुरा जयसमंद सहकारी समिति में फर्जीवाड़ा
 
25 साल से लापता व्यक्ति को लोन आवंटित
ग्रामीणों का आरोप 'सहकारी समिति के व्यवस्थापक दोनों पुत्रो और सहयोगियों के साथ मिलकर कर रहे फ़र्ज़ीवाडा'  
 

उदयपुर 25 जुलाई 2020। सरकार ने किसानो को राहत देने के लिए सहकारी समितियों के माध्यम से किसानो को ऋण उपलब्ध करवाने की योजना चलाई जिसके तहत जिले में हज़ारो किसानो को करोड़ो रूपये का ऋण आवंटन किया गया। लेकिन ग्रामीण सहकारी समितियों द्वारा फर्जीवाड़ा कर गलत तरीके से लोन उठाकर सरकार को चूना लगाया जा रहा है। 

ऐसा ही एक मामला जिले सराड़ा तहसील के जयसमंद वीरपुरा सहकारी समिति में सामने आया जहाँ 25 साल से लापता व्यक्ति के कागज़ो के आधार पर समिति के व्यवस्थापक ने अपने पुत्र का फोटो लगाकर लोन उठा लिया। 

क्या है मामला 

श्यामपुरा गांव की वीरपुरा जयसमंद सहकारी समिति ने पिछले 25 साल से लापता रमेश वैष्णव नामक व्यक्ति के नाम से फ़र्ज़ी लोन स्वीकृत कर लिया गया। जबकि फोटो में रमेश वैष्णव के बजाय सहकारी समिति के व्यवस्थापक मोड़ीदास वैष्णव के पुत्र जितेंद्र वैष्णव का है जी की सलूम्बर तहसील में कार्यरत है। इसी प्रकार प्रार्थना पत्र में आवेदक रमेश वैष्णव का नॉमिनी स्थान पर मोड़ीदास वैष्णव के दूसरे पुत्र कपिल वैष्णव को बनाया गया है जो की सराड़ा तहसील में कार्यरत है। 

ग्रामीणों का आरोप है की व्यवस्थापक अपने सहयोगियो और बेटो के साथ मिलकर फ़र्ज़ी लोन आवंटन करवा रहे है। कई किसानो के नाम लोन चल रहे होते है लेकिन किसानो को पता ही नहीं चलता। ग्रामीणों ने इस बाबत लोन देने वाली बैंक, सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के महाप्रबंधक, सहकारी विभाग के पंजीयक, और सभी अधिकारियो को प्रार्थना पत्र देकर उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ पत्र लिखकर लोन के नाम पर हो रहे घोटाले की तरफ ध्यान खींचा है। 

ज़िम्मेदारो को चाहिए की उक्त मामले में जांच कर कृषको को उसका अधिकार दिलवाये और भ्रष्ट व्यवस्थापकों के खिलाफ कार्यवाही हो, जो गरीब किसानो को उनके अशिक्षित होने का फायदा उठाकर उनके नाम से लोन डकार जाते है।  ज़ाहिर है यह कोई एक मामला नहीं है और न ही कोई पहला मामला है । ऐसे सैंकड़ो मामले हर गांव तहसील में पाए जाते है। इसकी व्यापक जांच होनी चाहिए।    

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले गोविन्द पटेल ने बताया की व्यवस्थापक एवं उनकी टीम, किसानो की पास बुक और लोन के कागज़ात अपने पास ही रख देते है ताकि गरीब किसानो को वास्तविकता का पता न चले। 

ऐसे होता है खेल 

गोविन्द पटेल ने बताया की व्यवस्थापक और उनकी टीम गरीब किसानो को राहत राशि देने के नाम किसानो के नाम लोन करवा कर खुद डकार जाते है, चूँकि लोन किसानो के खाते में आता है तो यह लोग किसानो से विड्राल फॉर्म पर साइन करवा कर राशि उनके बैंक खाते से निकलवा कर किसानो को महज़ कुछ रूपये दे देते है, और लोन की राशि अपने पास रख लेते है। सरकार बाद में किसानो को राहत देने के लिए अक्सर यह ऋण की राशि माफ़ कर देती है। इस प्रकार किसानो को दी गई राशि से यह बिचौलिये भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे है।  

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