MLSU में नई शिक्षा निति पर 155 वेबिनार रचा इतिहास


MLSU में नई शिक्षा निति पर 155 वेबिनार रचा इतिहास

राज्यपाल कलराज मिश्र रहे मौजूद

 
MLSU में नई शिक्षा निति पर 155 वेबिनार रचा इतिहास

राज्यपाल ने नई शिक्षा नीति को व्यावहारिक एवं नई तकनीक को आत्मसात करने वाली बताया।

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय  ने नई शिक्षा नीति पर व्यापक विचार विमर्श एवं जागरूकता के लिए बुधवार को एक साथ एक दिन में 155 वेबिनार आयोजित करके एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया। महात्मा गांधी नेशनल रूरल एजुकेशन, उच्च शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से ये आयोजन किया गया।  वेबिनार 2 सत्रों में हुआ।

सुबह के सत्र में मुख्य वक्ता के तौर पर राज्यपाल कलराज मिश्र ने उद्बोधन दिया जबकि दोपहर के सत्र में 154 इकाइयों द्वारा अलग अलग लिंक के जरिये अलग अलग वक्ताओं ने सम्बोधित किया। मुख्य सत्र में राज्यपाल मिश्र ने इस प्रकार के नवीन प्रयोग वाले आयोजन के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अमेरिका सिंह को बधाई दी। 

राज्यपाल ने नई शिक्षा नीति को व्यावहारिक एवं नई तकनीक को आत्मसात करने वाली बताया। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों में आत्मविश्वास का सृजन करने वाली है,भारतीय मूल्य एवं मानवीय मूल्यों को ग्रहण करते हुए कैसे आगे बढ़ा जा सकता है इसको दिशा प्रदान करने वाली है। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा नीति का व्यवहारिक स्वरूप कैसे बने और उसके अनुकूल कार्यक्रम की रचना की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी भी शिक्षण संस्थान की पहचान वहां की सुंदर  इमारतों एवं सुविधाओं से नहीं होती बल्कि चिंतन परंपरा से होती है। शिक्षा की सफलता का पैमाना भारतीय संस्कृति के जीवन ठीक मूल्यों से ओतप्रोत मानव निर्माण है।

राज्यपाल ने आचार्य का अर्थ बताते हुए कहा कि आचार्य का अर्थ है कि विद्यार्थियों में अपने आचरण के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जाएं जिससे वह संस्कारों की सीख ले सके। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को गढ़ना है। शिक्षा केवल औपचारिक नहीं है बल्कि इसका संबंध व्यक्तित्व के निर्माण से भी  है। इससे विद्यार्थियों में मौलिक सोचने की शक्ति विकसित होती  है।अनौपचारिक संबंध बहुत बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है। औपचारिक संबंधों में सामान्यतः व्यक्ति को सोच समझकर कार्य करना पड़ता है लेकिन अनौपचारिक संबंधों में व्यक्ति की सहज क्रियाओं का आभास होता है एवं कहां सुधार किया जा सकता है इसकी अनुभूति होती है। विद्यार्थियों को संस्कार मिलता रहे यही इसका (शिक्षा नीति)  उद्देश्य है।

केंद्र सरकार द्वारा इस शिक्षा नीति का निर्माण 676 जिलों, 6600 विकास खंडों एवं 250000 गांवों तथा शिक्षकों एवं सामान्य व्यक्तियों से विचार-विमर्श करके किया गया है। स्वतंत्रता के पश्चात संभवत यह पहली शिक्षा नीति है जिसमें इतने वृहद स्तर पर लोगों की सहभागिता सुनिश्चित की गई है। इस शिक्षा नीति में सभी पाठ्यक्रम एवं पाठ्यतर गतिविधियों के साथ-साथ व्यवसायिक एवं गैर व्यवसायिक विषयों की खोज को अनुमति देने वाली लचीली पद्धति रखी गई है।

राज्यपाल ने कहा कि 34 वर्ष बाद आई यह शिक्षा नीति विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की विचारधारा का पोषण करने एवं भारत के दीर्घकालीन विकास में विद्यार्थियों की महत्ती भूमिका तय करने वाली   है। यह भारतीय जनमानस की भावनाओं, अपेक्षाओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाली है। राज्यपाल ने मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया और विश्वविद्यालयों को इस और आशा व्यक्त की कि विश्वविद्यालय इस और कार्यरत होंगे। 

इस शिक्षा नीति का महत्व बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि इसमें विद्यार्थियों को विज्ञान, कला  एवं संस्कृति के साथ भारतीय विचारधारा के संस्कारों से संबद्ध अध्ययन की स्वतंत्रता दी गई है।  शिक्षा में विद्यार्थी की स्वयं की रुचि महत्वपूर्ण होती है और इसी से कालांतर में उसका सर्वांगीण विकास होता है। राज्यपाल ने बताया कि नई शिक्षा नीति विद्यार्थी केंद्रित है और इसमें यह स्पष्ट है कि न तो किसी भाषा को विद्यार्थियों पर थोपा जाएगा और ना ही किसी भाषा का विरोध किया जाएगा।

नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने के प्रावधान के संबंध में राज्यपाल ने कहा कियह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे ही भारतीय भाषाओं का वास्तविक संरक्षण एवं संवर्धन हो सकेगा। बच्चा जिस भाषा में अपने घर में अपने माता-पिता से संवाद करता है उसी भाषा में बेहतर शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ सकता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे विद्यार्थी अपने परिवेश से जुड़ा रहता है और बाद में जो शिक्षा वह अर्जित करता है वह उसके जीवन भर काम आती है।

राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों से आग्रह किया कि वे अपने यहां विज्ञान, तकनीकी एवं अन्य पाठ्यक्रमों को अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी में भी विकसित करें साथ ही ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान को अधिक से अधिक मातृभाषा में लाने के प्रयास करें। इससे हम अपनी परंपरा एवं संस्कृति के साथ उपलब्ध ज्ञान की धरोहर को भविष्य में और बेहतर ढंग से संरक्षित कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति में कला एवं संस्कृति की समझ बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। राज्यपाल ने प्राचीन ग्रंथों जैसे वेद पुराण उपनिषद से ज्ञानार्जन पर जोर दिया है।

नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों को अपना विषय चुनने की स्वतंत्रता देती है। इससे विद्यार्थियों पर अन्य विषय पढ़ने का दबाव नहीं होगा जिससे वे अपने मनपसंद विषय चुन सकेंगे। इससे विद्यार्थियों में न सिर्फ आत्मविश्वास पैदा होगा बल्कि वे समाज को कुछ देने योग्य बन सकेंगे।राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं संस्था प्रधानों से कला, संस्कृति एवं साहित्य से जुड़े अतिथि व्याख्याताओं को बुलाने एवं विद्यार्थियों को उनसे रूबरू कराने का अनुरोध किया। नियमित पाठ्यक्रम को रुचिकर बनाने के लिए उसमें कला एवं संस्कृति के आयाम जोड़े जाएं।

विश्वविद्यालयों को चाहिए कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मंशा को समझते हुए आधुनिक समय की मांग के अनुरूप अपने यहां ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में भी विकसित करें, वर्चुअल लैब स्थापित करें तथा राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम में अपनी अभी से भागीदारी सुनिश्चित करें। शिक्षा से देश का भविष्य तैयार होता है इसलिए स्वाभाविक है कि शिक्षा में सकल घरेलू उत्पाद का अधिक हिस्सा खर्च होना चाहिए। इसलिए इस नीति में जीडीपी का 6% शिक्षा में खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।उच्च शिक्षा में शोध के स्तर में गुणात्मक वृद्धि भी जरूरी है। इस नीति में मजबूत अनुसंधान में संस्कृति के लिए शीर्ष निकाय के रूप में 1 नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना की बात की गई।  एनआरएफ का विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना है।

राज्यपाल ने शोध  की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि जहां नवाचार एवं अनुसंधान तथा विकास नहीं है वहां हम आगे नहीं बढ़ सकते। विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे शोध की ऐसी संस्कृति विकसित करें जहां विद्यार्थी अनेक किताबों के संदर्भ से एक किताब तैयार करने की सोच बजाए अपने अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर मौलिक कार्य करने के लिए प्रवृत्त हो। भारत में पहली बार शोध की संस्कृति का विकास करने के लिए किसी निकाय का गठन किए जाने की बात हुई है।

राज्यपाल ने कहा कि मुझे बताया गया है कि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर अपनी आवश्यकताओं को समझने के लिए लगातार वर्चुअल संवाद कर रहा है। इसी क्रम में आज नई शिक्षा नीति पर 4 जिलों के 100 से अधिक महाविद्यालयों में 20 विषयों पर वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है। यह काफी महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय की इस कार्यप्रणाली से छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं अभिभावकों में विश्वास उत्पन्न होगा और अपनी क्षमताओं के आकलन के लिए वे भविष्य में एक माध्यम तैयार कर सकेंगे।

सुखाड़िया विश्वविद्यालय द्वारा अपने 184 संबंध महाविद्यालयों में वरिष्ठ एल्युमीनाई को सलाहकार बनाने की पहल की राज्यपाल ने प्रशंसा की तथा इसे अच्छा कदम बताया। राज्यपाल ने कहा कि सुखाड़िया विश्वविद्यालय एक ही दिन में परीक्षा करवाने एवं परिणाम घोषित करने की दिशा में भी काम करने जा रहा है यदि यह प्रयोग सफल होता है तो अन्य विश्वविद्यालयों के लिए अनुकरणीय कार्य होगा।इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अमेरिका सिंह ने राज्यपाल कलराज मिश्र का स्वागत करते हुए उक्त वेबिनार की विस्तार से जानकारी दी। 

शिक्षा विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ अल्पना सिंह के साथ ही महात्मा गांधी नेशनल रूरल एजुकेशन के डॉ प्रसन्न कुमार व अनिल कुमार दुबे ने भी विचार व्यक्त किये।दोपहर के सत्र में विश्वविद्यालय के संगठक महाविद्यालयों के सभी विभागों एवं संभाग के संबद्ध महाविद्यालयों की ओर से एक साथ एक समय में अलग-अलग गूगल लिंक पर नई शिक्षा नीति पर वेबिनार का आयोजन हुआ। इन में देशभर के अपने-अपने क्षेत्रों के शिक्षाविदों ने  विचार व्यक्त किए एवं विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से सीधा संवाद किया। एक साथ 155 वेबिनार एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड है जो कीर्तिमान के रूप में दर्ज हो गया है।

इससे पूर्व केरल राज्य ने एक साथ 74 वेबिनार एक साथ करके रिकार्ड बनाया था जिसे सुखाडिया विश्वविद्यालय ने बुधवार को तोड़ दिया।: इस भव्य आयोजन के लिए कुलपति प्रो अमेरिका सिंह ने सभी निजी एवम सरकारी महाविद्यालयों के अधिष्ठताओं, प्राचार्यों, प्रबंधको, शिक्षकों, प्रतिभागियों एवं तकनीकी कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया है।

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