एशिया पेसिफिक मलेरिया उन्मूलन नेटवर्क (एपमेन), बैंकॉक, थाईलैंड एवम मलेरिया कंसोर्शियम, लंदन, यूके तथा मोहनलाल सुखाड़िया विश्विद्यालय उदयपुर के प्राणी शास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहे मलेरिया वाहक सर्वेक्षण एवम उन्मूलन विषय पर 15 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्राणी शास्त्र विभाग की उन्नत जैविक अनुसंधान और विश्लेषण प्रयोगशाला में प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम की समन्वयक एवम विभागाध्यक्ष प्रो आरती प्रसाद ने बताया कि प्राणी शास्त्र विभाग में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से जनस्वास्थ्य किटविज्ञान की अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशाला निर्मित की गयी है जो कि वाहक जनित बीमारी के क्षेत्र में काम आने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रदान किए गए उपकरणो द्वारा सुसज्जित है। प्रो प्रसाद ने बताया कि विभाग द्वारा जनस्वास्थ्य किटविज्ञान के क्षेत्र में किए जा रहे समाजोपयोगी कार्यो को पहचानते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इन उपकरणों को डोरस्टेप पर भेजा गया है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे सप्ताह में फील्ड में प्रतिभागियों द्वारा एकत्रित किए गए वाहक मच्छरों की कुंजी द्वारा पहचान की विधि व्याख्यान द्वारा प्रतिभागियों को दी गयी। इसके बाद प्राणी शास्त्र विभाग की उन्नत जैविक अनुसंधान और विश्लेषण प्रयोगशाला में प्रतिभागियों को आज सूक्ष्मदर्शी एवम हेण्ड लेन्स द्वारा मच्छरों को पहचानने की विधि के बारे में हस्तगत प्रशिक्षण प्रदान किया गया। प्रतिभागियों को मच्छरों की पहचान का प्रायोगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक एवम विभागाध्यक्ष प्रो आरती प्रसाद, तमिलनाडु की एंटोमोलॉजिकल सोसायटी के रिटायर्ड चीफ एंटोमोलॉजिस्ट डॉ आर असोकन एवम गुजरात के पूर्व स्टेट एंटोमोलॉजिस्ट पी टी जोशी ने मलेरिया रोगवाहक मच्छर एनोफिलीज स्टीफेन्साई, एनोफिलीज सब्पिकटस, एनोफिलीज क्यूलिसिफेसिज, एनोफिलीज मिनिमस को सूक्ष्मदर्शी एवम हैंड लेन्स द्वारा कुंजी के प्रयोग से पहचानने का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया।
प्रो प्रसाद ने बताया कि मलेरिया उन्मूलन के क्षेत्र में कार्य करते समय फील्ड में मलेरिया रोगवाहक मच्छरों के साथ अन्य बीमारियों के वाहक मच्छरो के साथ ऐसे मच्छर भी प्राप्त होते है जो किसी भी बीमारी के वाहक नही होते है एवम कई बार कोई एक मच्छर किसी एक क्षेत्र में रोगवाहक की तरह कार्य करता है तो वही मच्छर किसी अन्य क्षेत्र में रोगवाहक की तरह कार्य नही करता है। इन मच्छरों की पहचान हेतु इनके प्रत्येक भाग को सूक्ष्मता से पहचानना बेहद आवश्यक होता है। अतः इनको पहचानने का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रतिभागियों को देना अत्यंत आवश्यक है। विभाग में विकसित जनस्वास्थ्य किटविज्ञान प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरण मच्छरों को पहचानने में बेहद उपयोगी है। प्रतिभागियों को इस तरह की प्रयोगशाला में कार्य करने से एक नया अनुभव प्राप्त हुआ। यह प्रायोगिक प्रशिक्षण 15 जुलाई तक विभाग की प्रयोगशाला में चलेगा।
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