मेवाड़ राजस्थान का ही नहीं भारत का ताज

मेवाड़ राजस्थान का ही नहीं भारत का ताज

धार्मिक और स्मारक संबंध आहार परिसर को उदयपुर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण विरासत घटक बनाते हैं-कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह

 
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प्राचीन सभ्यता एक ऐसा विषय है जो छात्रों को दुनिया की बेहतर समझ रखने में मदद करता है : कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह

प्रबंध अध्ययन संकाय एवं टूरिज्म व होटल मैनेजमेंट प्रोग्राम, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के अंतर्गत विद्यार्थियों के लिए एक गेस्ट लेक्चर का आयोजन किया गया l कार्यक्रम के अंतर्गत कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए रिसोर्स पर्सन भारतीय राष्ट्रीय न्यास के प्रोफेसर फ्री ललित पांडे जी ने छात्र छात्राओं को राजस्थान में प्रारंभिक ग्राम बस्ती के बारे मे बताया कि मेवाड राजस्थान का ही नहीं भारत का ताज हैl

उन्होंने बताया कि आज के विद्यार्थी बिल्ड हेरिटेज के बारे में बात करते हैं, उन्हीं के बारे में जानते हैं। जबकि उन्हें अरावली फुटहिल्स को खोजना और घुमना चाहिए, नेचुरल  फ्लोरा और फोना को देखना चाहिए। हमारा इतिहास 5700 साल से भी पुराना है, जिसका सबूत 130 सेटलमेंट से मिलता है  जो कि उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, बूंदी और टोंक में है। बहुत सारे पुरातात्विक  सर्वेक्षण किए गए हैं, आहड़ चत्रीखेडा मरमी बालाथल और ओजियाना और पंचमाता के सर्वेक्षण से पता चलता है कि मेवाड़ के लोग पहले किसान थे और वह लोग तांबा गलाने के बारे में भी जानते थे।  कार्यक्रम के मुख्य वक्ता ललित पांडे जी ने विद्यार्थियों को कुछ चित्र भी दिखाए जिसमें धातु के बने हथियार और गहने थे जो उस समय के थे और अंत में उन्होंने यही सुझाव दिया कि हमें अपने इतिहास के बारे में पता होना चाहिए यह सब बातें छात्र छात्राओं ने बड़े ही ध्यान से सुनिए और अपने 5700 साल पुराने इतिहास को जाना l
 

राष्ट्रीय इकाई योजना की प्रोग्राम ऑफिसर एवं टूरिज्म डिपार्टमेंट के पाठ्यक्रम निदेशक प्रोफेसर मीरा माथुर ने बताया कि आहर परिसर मेवाड़ राजवंश के शाही संरक्षण में उनके पूर्वजों की स्मृति में निर्मित एक अनूठी संरचना है जो पाश्चात्य विरासत को बखूबी से शहीद हुए हैं, प्रोफेसर माथुर ने पाश्चात्य विरासत संरक्षण पर बल देते हुए बताया कि धार्मिक और स्मारक संबंध आहर परिसर को उदयपुर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण विरासत घटक बनाते हैंl  प्रोफेसर मीरा माथुर ने बताया कि आहड़ संस्कृति मुख्य रूप से राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में अरावली के पूर्वी हिस्से में और बनास नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे चट्टानी और मैदानों क्षेत्रों में विकसित हुई जिसका उल्लेख विद्यार्थियों को उनके सर्वांगीण विकास के लिए किया जाना चाहिए l

प्रोफेसर हनुमान प्रसाद निदेशक प्रबंध अध्ययन एवं फैकल्टी चेयरमैन ने बताया कि भारत में मेवाड़ क्षेत्र यानी दक्षिण पूर्वी राजस्थान पृथ्वी की उत्पत्ति के स्वतंत्र विकास को समझने के लिए दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक के रूप में विकसित हो रहा है l प्रोफेसर सी.आर. सुथार- समन्वयक राष्ट्रीय इकाई योजना मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय ने बताया कि आहर पाश्चात्य संस्कृति की अमूल्य धरोहर है,  प्रोफेसर सुथार ने बताया कि आहर लोग गेहूं एवं जौ का उत्पादन करते थे और यहां तक की हड़प्पा वासियों से भी पहले थे वह मिट्टी के बर्तन बनाने में कुशल थे और उन्हें पानी एवं भोजन के भंडारण में कोई समस्या नहीं थी, इस तरह के उदाहरण हमारी पाश्चात्य संस्कृति की अमूल्यता को बताने के लिए काफी पर्याप्त हैं l कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने सक्रियता से भाग लिया एवं अपनी पाश्चात्य संस्कृति के बारे में इतिहास को बारीकी से जाना l इस अवसर पर प्रबंधन संकाय का अन्य स्टाफ  भी उपस्थित था।

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