सीबीएएम के माध्यम से कार्बन टैक्स की शुरुआत से भारत जैसे विकासशील देशों पर विपरीत प्रभाव: प्रो. शूरवीर भाणावत

सीबीएएम के माध्यम से कार्बन टैक्स की शुरुआत से भारत जैसे विकासशील देशों पर विपरीत प्रभाव: प्रो. शूरवीर भाणावत

लेखा एवं व्यवसायिक सांख्यिकी विभाग में यूरोपियन यूनियन की सीबीएएम स्कीम पर परिचर्चा

 
Carbon Tax

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के लेखा एवं व्यवसायिक सांख्यिकी विभाग में हाल ही में घोषित यूरोपियन यूनियन की “कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसकी शुरुआत कार्बन मार्केट में शोध कर रही शोधार्थी सुश्री प्रभुती राठौर ने अपना प्रमुख व्यक्तय से की। 

राठौर ने बताया कि यूरोपियन कंपनियों को एक कैप प्रदान की जाती है जिसके भीतर उन्हें अपने कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने की आवश्यकता होती है। यदि वे इस सीमा से अधिक कार्बन उत्सर्जन करते है तो,दंडित किया जाता है कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के बारे में बताते हुए कहा की यूरोपियन यूनियन को 1990 में उत्सर्जित कार्बन स्तरों की तुलना में 2030 तक 55% कम कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य की प्राप्ति के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है। इस कार्बन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय संघ ने एक कार्बन टैक्स का कराधान तंत्र पेश किया है। यह कार्बन कर यूरोपियन यूनियन में आयातित उन उत्पादों पर लगेगा जिनका उत्पादन भारत सहित किसी भी देश में जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके किया गया। 

carbon tax

लेखा एवं व्यवसायिक के विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीरसिंह भाणावत ने बताया कि यह स्कीम 1 जनवरी 2026 से यूरोपियन यूनियन में आयातित स्टील, एल्युमिनियम, फर्टिलाइजर, सीमेंट, हाइड्रोजन उत्पादों पर यह कर लगाया जाएगा। 2034 से इस सूची में नए उत्पाद जोड़े जाएंगे। आयातित माल पर कार्बन कर की मात्रा 20% से 35% होगी। 

प्रो भाणावत ने यह भी बताया की दिसंबर 2020 में 1 कार्बन क्रेडिट की कीमत 30 यूरो थी वो बढ़कर फरवरी 2023 में यह कीमत 100 यूरो हो गई। जिससे कार्बन लीकेज की समस्या पैदा हो गई है। यूरोपियन कंपनियां अपना उत्पाद विकासशील देशों में उत्पादित कर उन्हें यूरोप में पुनः आयात कर रही थी। इस तरह यह कंपनियां कार्बन प्रदूषण विकसित देशों से विकासशील देशों की तरफ हस्तांतरित कर रही थी, इसे ही कार्बन लीकेज भी कहा जाता है।तथा इसे रोकने हेतु क्रॉस बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म स्कीम को लागू किया गया। 

ब्लॉकचैन अकाउंटिंग प्रोजेक्ट की फेलो डॉ समता ऑर्डिया तथा शोधार्थी अर्जुन ने बताया की इस स्कीम का भारत पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। भारत ने 2022 में लौह, इस्पात, एल्यूमीनियम आदि का यूरोपीय संघ के देशों को 8.2 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का निर्यात किया जो भारत के कुल निर्यात का लगभग 27% है। इस तरह कार्बन टैक्स लगाकर इन उत्पादों की लागत बढ़ जाएंगी।
 

इस परिचर्चा से निम्न निष्कर्ष निकाल कर आए

  • सीबीएएम की चुनौतियों का विश्व व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यूके, यूएस आदि जैसे अन्य देश भी इस तरह की योजना लागू कर सकते हैं जो डबल्यू टी ओ तथा पेरिस एग्रीमेंट का उलंघन है।
  • विकासशील देशों को आर्थिक नुकसान तथा ग्लोबल वार्मिंग की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • विकसित देशों द्वारा अपने उपभोग को नियंत्रित करने के प्रयास का सुझाव परिचर्चा में मुख्य रहा। सभी एक स्वर में कहा की यूरोपियन नागरिकों को अपनी उपभोग संस्कृति पर नियंत्रण करना चाहिएं। 
  • भारत पर सीबीएएम के प्रभावों को कम करने के लिए भारत में एक टास्क फोर्स की स्थापना की जानी चाहिए।

 
परिचर्चा में डॉ. समता, सुश्री अमरीन, अनीमा चोर्डिया, चारु, अर्जुन, जयप्रकाश और आशुतोष उपस्थित रहे। अंत में अमरीन ने सभी शोधार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए परिचर्चा का समापन किया।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal