अन्य शारीरिक परिवर्तनों की तरह ये भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस दौरान होने वाली परेशानियों और उसके सर्वतोन्मुखी नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए परिवारजनों और संगी साथियों का सहानुभूति नहीं अपितु परानुभूति की भावना के साथ महिला के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए ताकि वह एक सुखद, सहज और सफल जीवन जी सके।
रजोनिवृत्ति महिलाओं की उम्र से संबंधित शारीरिक परिवर्तन सम्बन्धी चरणों में से एक है। इसके जैविक पहलुओं विशेष रूप से इसके अंतःस्रावी आधार के बारे में अनेक शोध और जानकारी उपलब्ध है, फिर भी विभिन्न संस्कृतियों और जलवायु के बीच इसकी परिवर्तनशीलता के कारण इसके मनोसामाजिक पहलूओं पर संवेदनशीलता के क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना शेष है।
प्रजनन आयु या प्रजनन क्षमता के अनुरूप मासिक धर्म की अवधि उनके जीवन का लगभग आधा हिस्सा है; इसलिए, प्रजनन क्षमता या प्रजनन जीवन संबंधों में तनाव का एक स्रोत हो सकता है,जहां बड़े परिवार को सफलता का प्रतीक माना जाता है। मनोवैज्ञानिक कारक जैसे व्यक्तिगत या अंतर-मानसिक (व्यक्तित्व, आत्म-सम्मान, और मुकाबला कौशल) और इंट्रा-साइकिक (रिश्ते के मुद्दे और सामाजिक समर्थन) पेरिमेनोपॉज़ल अवधि की शुरुआत तथा कुछ मानसिक स्थितियां हैं जैसे कि चिंता, अवसादग्रस्तता विकार और प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक सिंड्रोम, जो प्रीमेनोपॉज़ल अवधि से संबंधित हैं, जिन पर गहन शोध किया जाना चाहिए। औषधीय उपचार शुरू करने से पहले, जटिलताओं से बचने के लिए जीवन शैली में संशोधन की पेशकश की जानी चाहिए।
वर्तमान युग में बढ़ी हुई जीवन प्रत्याशा के साथ, महिलाओं को रजोनिवृत्ति की अवधि बढ़ गई है जो उनके जीवन का लगभग एक तिहाई है। विश्व स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, रजोनिवृत्ति अवधि के दौरान महिलाएं उच्च स्तर के तनाव का सामना करती हैं।
महिलाओं के रजोनिवृति सम्बन्धी कठिनाईयों के मद्देनज़र महाराणा प्रताप कृषि एवम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक सामुदायिक एवम व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय, उदयपुर के मानव विकास एवम पारिवारिक अध्ययन विभाग की अध्यक्षा डॉ गायत्री तिवारी द्वारा विद्यावाचस्पति की एक छात्रा कृष्णप्रिया साहू द्वारा 300 महिलाओं पर एक शोध करवाया गया। इस शोध का उद्देश्य रजोनिवृत्त समस्याओं के लिए मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रबंधन तकनीकों का अध्ययन करना था।
अध्ययन में उदयपुर शहर की 40-50 वर्ष की आयु की 300 महिलाएं (150 कामकाजी और 150 गैर-कामकाजी) शामिल थीं। वर्तमान अध्ययन के लिए जानकारी प्राप्त करने हेतु एक मानकीकृत प्रश्नावली बनाई गई (जिसका प्रकाशन नेशनल साइकोलॉजिकल कारपोरेशन,आगरा द्वारा किया गया)।
63.33 प्रतिशत कामकाजी और 48.0 प्रतिशत गैरकामकाजी महिलाओं ने बताया कि वे रजोनिवृत्ति के लिए पूरक आहार ले रही थीं जो कैल्शियम, विटामिन-डी और फाइबर से भरपूर थे। अधिकांश कार्यरत (96.67%) और गैर कामकाजी (79.33%) महिलाओं ने बताया की वे रजोनिवृत्ति के लक्षणों और प्रभाव की आवृत्ति को कम करने के लिए व्यायाम करती हैं।
महिलाओं ने बताया कि वे हॉट फ़्लैश को कम करने के लिए गर्म और भीड़-भाड़ वाली जगहों, गर्म और मसालेदार भोजन से परहेज करती हैं। अन्य जटिलताओं को कम करने के लिए पर्याप्त नींद और दैनिक गतिविधियाँ, दूध, दही और पनीर का सेवन, नियमित व्यायाम और कैल्शियम की गोली या सिरप का प्रयोग करती हैं। आश्चर्जनक तथ्य यह रहा की दोनों ही वर्ग की महिलाओं द्वारा इस सन्दर्भ में कोई रूटीन चेकअप नहीं करवाया गया। मेनोपॉज़ के कारण तनाव को प्रबंधित करने के लिए व्यायाम, स्नेहीजनों से संवाद करना, ध्यान, पर्याप्त नींद को भी अन्य तकनीकों के रूप में रिपोर्ट किया गया।
अन्य शारीरिक परिवर्तनों की तरह ये भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस दौरान होने वाली परेशानियों और उसके सर्वतोन्मुखी नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए परिवारजनों और संगी साथियों का सहानुभूति नहीं अपितु परानुभूति की भावना के साथ महिला के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए ताकि वह एक सुखद, सहज और सफल जीवन जी सके।
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